श्रीलंका में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और विभाजन ने कितनी गहरी पैठ बना ली है, इसे देश के सात मुसलिम मंत्रियों और दो राज्यपालों के इस्तीफ़े से समझा जा सकता है। सोमवार को इन नौ मुसलमानों ने देश के लगभग 10 प्रतिशत यानी तक़रीबन 20 लाख मुसलमानों की हिफ़ाज़त के लिए अपने-अपने पदों से हटने का फ़ैसला किया। इसकी वजह यह है कि देश के एक बड़े बौद्ध भिक्षु गलगोद अतति ज्ञानसार थेरो मुसलमान मंत्रियों और राज्यपालों को हटाने की माँग करते हुए आमरण अनशन पर बैठे हुए थे। उनके साथ एक दूसरे भिक्षु अतुरलिए रतन थेरो भी अनशन पर थे। ये दोनों भिक्षु ईस्टर रविवार को चर्च पर हुए हमलों के लिए मुसलमान मंत्रियों को ज़िम्मेदार मान रहे हैं।
ईस्टर रविवार को गिरजाघरों और होटलों पर हुए हमलों में लगभग 250 लोग मारे गए थे। आतंकवादी संगठन इसलामिक स्टेट ने इसकी ज़िम्मेदारी ली थी। शुरुआती जाँच में आईएस को ज़िम्मेदार माना गया था। इन हमलों के तार भारत से भी जुड़े पाए गए थे। कुछ दिन पहले ही भारत से राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी के अफ़सरों ने श्रीलंका का दौरा किया था।
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कैबिनेट और कैबिनेट के बाहर के मंत्री, उप मंत्री, सभी लोग इस्तीफ़ा दे देंगे। यदि इनका पद पर बने रहना मुसलमानों की सुरक्षा के आड़े आता है तो इन्हें पद से हट ही जाना चाहिए।
रऊफ़ हक़ीम, नेता, श्रीलंका मुसलिम कांग्रेस
ईस्टर हमले और उसके बाद
इससे देश के सांप्रदायिक विभाजन को समझने में मदद मिलती है। ईस्टर रविवार को हुए हमलों के बाद पूरे देश में मुसलमानों पर जगह-जगह हमले हुए, मसजिदों और मदरसों को निशाना बनाया गया, तोड़फोड़ हुई। पुलिस ने कई जगहों पर हस्तक्षेप कर इसे रोकने की कोशिश की, पर कई जगहों से ये ख़बरें भी आईं कि पुलिस चुपचाप तमाशा देखती रही, हमलों को रोकने के लिए कुछ ख़ास नहीं किया। इसके बाद कई जगहों पर बौद्ध संगठनों ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किए, बौद्ध भिक्षुओं ने मुसलमानों और मदरसों पर दोष मढ़ा। मोटे तौर पर मुसलिम संगठनों और राजनीतिक दलों का कहना है कि ईस्टर रविवार को हुए हमलों में जिन लोगों की भूमिका थी, उन्हें सज़ा दी जाए, पर इसके लिए देश के हर मुसलमान को ज़िम्मेदार न माना जाए। पर्यवेक्षकों ने इस पर चिंता जताई है कि दोनों भिक्षुओं के अनशन पर बैठने के बाद सैकड़ों की तादाद में बौद्धों ने कैंडी में प्रदर्शन किया, वे सड़कों पर उतर आए और उस मंदिर के पास पर जमा हो गए, जहाँ ये भिक्षु अनशन पर थे। बोदु बल सेना के प्रमुख ज्ञानसार थेरो ने भाषण दिया और कहा, ‘हम अपने बच्चों के भविष्य के लिए इन उग्रपंथी ताक़तों को परास्त करेंगे भले ही इसके लिए जान ही क्यों न चली जाए।’
इस मामले में मुसलमान पूरी तरह अलग-थलग पड़ चुके हैं, एक तरह से बौद्ध, हिन्दू और ईसाई एक साथ हो गए हैं और मुसलमानों के ख़िलाफ़ गोलबंदी कर रहे हैं।
इसे इससे समझा जा सकता है कि बौद्ध भिक्षुओं के आमरण अनशन शुरू होते ही कोलंबो कैथोलिक चर्च के प्रमुख कार्डिनल मैल्कम रंजीत कैंडी गए और उनके साथ एकजुटता दिखाई।
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हम बौद्ध भिक्षुओं के अभियान का समर्थन करते हैं क्योंकि इस मामले में अब तक न्याय नहीं हुआ है।’
कार्डिनल मैल्कम रंजीत, कोलंबो कैथोलिक चर्च के प्रमुख
तनाव आया सतह पर
द्वीप वाले इस देश में मुसलमान-बौद्ध तनाव नया नहीं है। ईस्टर रविवार के बाद दोनों समुदायों के बीच तनाव बढ़ने से सिर्फ़ वे पुरानी बातें एक बार फिर सतह पर आ गई हैं, जिनकी वजह से यह तनाव है। साल 2018 में दोनों समुदायों के बीच दंगे हुए थे, जिसमें दो लोग मार गए थे, बड़े पैमाने पर संपत्ति का नाश हुआ था। इसकी शुरुआत बिल्कुल मामूली बात से हुई थी। कैंडी ज़िले में 2 मार्च 2018 को एक सड़क दुर्घटना के बाद एक मुसलमान ट्रक ड्राइवर को स्थानीय बौद्ध सिंहली युवकों ने बुरी तरह पीटा। इसके बाद मुसलमानों की एक उत्तेजित भीड़ ने बौद्ध मंदिरों पर हमला कर दिया, जिसके जवाब में बौद्धों ने मसिजदों और मुसलमानों की दुकानों को निशाने पर लिया।
बौद्ध-मुसलमान दंगा अम्पारा, देगंगा, तेलदेनिया, ववूनिया में भी फैला। मदीना नगर, अम्बातीना और मताले में भी मसजिदों और मुसलमानों के घरों पर हमले हुए।
इसके पहले साल 2014 में बौद्ध-मुसलिम दंगे हुए थे। इस बार दंगे की शुरुआत एक बेहद मामूली घटना से हुई थी। कुछ मुसलमान युवकों ने सड़क दुर्घटना के बाद एक सिंहली बौद्ध की पिटाई की थी और उसके बाद दंगा भड़क उठा था। कालूतरा ज़िले के अलुथगाम, बेरूवला और धरगा में मुसलमानों के घरों और मसिजदों पर हमले हुए। इसके बाद दोनों समुदायों के लोगों ने एक दूसरे के घरों-दुकानों को निशाने पर लिया। इन दंगों में चार लोग मारे गए और कम से कम 80 लोग ज़ख़्मी हुए थे।
श्रीलंका के इस सांप्रदायिक बँटवारे के तार भारत से भी जुड़े हुए हैं। वहाँ के बौद्ध यह जानना चाहते थे कि भारत के 14 प्रतिशत मुसलमानों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्या रिश्ते हैं। श्रीलंका की संस्था बोदु बल सेना के लोग भारत आए और आरएसएस के साथ मिल कर कथित इसलामिक कट्टरता को रोकने के लिए एकजुट होकर काम करने की योजना बनाने पर ज़ोर दिया। अक्टूबर 2014 को दोनों संस्थाओं के शीर्ष नेताओं के बीच भारत में बैठक हुई। श्रीलंका की ओर से इस बातचीत में वही ज्ञानसार थेरो मौजूद थे, जो अभी कुछ दिन पहले आमरण अनशन पर बैठे हुए थे। इस बैठक का महत्व यह है कि इससे यह पता चलता है कि श्रीलंका के कट्टरपंथी बौद्ध अपने देश के मुसलमानों के बारे में क्या सोचते हैं।
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