loader

रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो… 

यूक्रेन के मुद्दे पर रूस और अमेरिका के बीच की तनातनी से यह साफ हो चुका है कि इसके ज़रिए मॉस्को उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (नैटो) के विस्तार के ख़िलाफ़ तो है ही, वह वाशिंगटन को चुनौती देने की स्थिति में भी है। यह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के राष्ट्रवाद और ध्वस्त हो चुके सोवियत संघ की प्रतिष्ठा को फिर से हासिल करने की कोशिश में भी फिट बैठता है। इस पूरे मामले में भारत की स्थिति खराब इसलिए है कि यदि यूरोपीय संघ या अमेरिका ने रूस पर आंशिक रूप से भी आर्थिक प्रतिबंध लगाया तो नई दिल्ली न तो इससे बच सकेगा न ही इस पर कुछ कर सकेगा।

फ़िलहाल यूक्रेन से सटी सीमा पर रूस के अपने इलाक़े में एक लाख से ज़्यादा रूसी सैनिक पूरे सैनिक साजो सामान से लैस तैनात हैं, जो किसी भी क्षण एक इशारे पर ज़ोरदार हमला बोल सकते हैं। दूसरी ओर यूक्रेन की सीमा पोलैंड और रोमानिया से भी मिलती, जो पहले से ही नैटो के सदस्य हैं। ज़ाहिर है, इन  सदस्य देशों के मार्फ़त नैटो सैनिक किसी भी क्षण यूक्रेन की सीमा पार कर रूसी सैनिकों पर हमला कर सकते हैं।

दरअसल यूक्रेन संकट के समझने के लिए मौजूदा समय में उसकी सीमाओं पर तैनात सैनिकों की मौजदूगी ही काफी है। पोलैंड किसी समय सोवियत संघ के निकटतम मित्र देशों में था और उसके नेतृत्व वाले वारसा सैन्य संधि का सदस्य भी था। इसी तरह रोमानिया भी सोवियत संघ के क़रीब और वारसा संधि का सदस्य था।

ताज़ा ख़बरें

लेकिन पोलैंड 1999 में तो रोमानिया 2004 में नैटो के सदस्य बन गए। सोवियत संघ के जमाने में ये दोनों ही देश नैटो के निशाने पर रहे होंगे और अब ये खुद नैटो के सदस्य हैं।

इसी रास्ते पर यूक्रेन चल रहा है। वह सोवियत संघ का हिस्सा तो था ही, उसके विघटन के बाद बने सीआईएस यानी कॉमनवेल्थ ऑफ़ इंडिपेंडेंट स्टेट्स का भी सदस्य था।  इतना ही नहीं, साल 2014 तक वह रूस के नज़दीक माना जाता था और इसके तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानूकोविच के साथ रूस के गहरे ताल्लुकात थे। दरअसल यानूकोविच को रूस-परस्त नीतियों की वजह से ही  पद से हटना पड़ा था।

साल 2014 में रूस ने जिस तरह अलगाववादी नेताओं के कहने पर अपनी सेना भेज कर क्रीमिया पर क़ब्जा कर लिया और रूसी संसद दूमा ने आनन फानन में प्रस्ताव पारित कर क्रीमिया को रूसी फेडरेशन का हिस्सा घोषित कर दिया, उससे यूक्रेन का परेशान होना स्वाभाविक है। उसके बाद से ही यूक्रेन के नेताओं ने मन बना लिया कि वे नेटो में शामिल हो जाएं।

मौजूदा संकट की बड़ी वजह यही है। रूस किसी कीमत पर यह नहीं चाहता है कि नैटो में यूक्रेन को दाखिला मिले। 

मॉस्को की चिंता है कि ऐसा हुआ तो रूस नैटो से घिर जाएगा। उसकी सीमा पर यूक्रेन में नैटो की सेनाएं रहेंगी और पोलैंड में नैटो के सैनिक पहले से ही हैं। लेकिन यूक्रेन की चिंता भी वाजिब है क्योंकि वह ब्लैक सी में स्थित अपने इलाक़े क्रीमिया से हाथ धो चुका है।

सवाल यह है कि यदि मौजूदा संकट किसी तरह टल भी जाए तो रूस आखिर यूक्रेन को नैटो का सदस्य बनने से कब तक और कैसे रोकेगा। पुरानी कहावत है मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काज़ी? यूक्रेन और नैटो राज़ी हों तो मॉस्को कब तक उन्हें रोके रखेगा?

शुक्रवार को रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन के साथ हुई बैठक आशंका के अनुरूप ही बुरी तरह नाकाम रही। ब्लिंकन ने जनीवा में हुई इस बैठक के बाद बेलाग होकर कह दिया कि अमेरिकी सेना यूक्रेन में किसी भी रूसी हमले का जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।

हालांकि लावरोव ने उन्हें यह आश्वस्त करने की कोशिश की कि मॉस्को यूक्रेन पर हमला नहीं करने जा रहा है, पर यह भी कहा कि अमेरिका को उसकी सुरक्षा चिंताओं को समझना चाहिए। 

russia ukraine conflict and impact - Satya Hindi

वे ब्लिंकन से यह आश्वासन चाहते थे कि यूक्रेन को नैटो में शामिल नहीं किया जाएगा और अमेरिका इसका एलान कर दे।

पर अमेरिकी विदेश मंत्री ने न सिर्फ इसका एलान करने से इनकार किया, यह आश्वासन देने से भी इनकार कर दिया कि नैटो का विस्तार नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि ये नीतिगत फ़ैसले हैं जो अमेरिका अपने सहयोगियों के साथ मिल कर तय करता है।

हालांकि दोनों देश इस पर राज़ी हुए कि बातचीत आगे भी जारी रहेगी, पर बातचीत जारी रहने का कोई मतलब इसलिए नहीं है कि अमेरिका नैटो विस्तार में यूक्रेन को शामिल करने के पक्ष में है।

इसके ठीक पहले यूरोपीय संघ में इस मुद्दे पर विचार विमर्श हुआ कि यदि रूस ने वाकई यूक्रेन पर हमला कर ही दिया तो क्या मॉस्को पर सीमित आर्थिक प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

दरअसल यूरोपीय संघ इस पर बंटा हुआ है। इसके  कई सदस्य देश रूस पर किसी तरह का आर्थिक प्रतिबंध नहीं चाहते क्योंकि उनके साथ मॉस्को के गहरे आर्थिक रिश्ते हैं। इसके अलावा यूरोपीय संघ के ज़्यादातर देश रूसी गैस पर बुरी तरह निर्भर हैं। इस जाड़े में यदि उन्हें रूसी गैस लेने से रोका जाए तो वे गहरे संकट में पड़ जाएंगे।

रूस ब्लैक सी के नीचे से एक गैस पाइपलाइन बना रहा है, जिसे नॉर्ड स्ट्रीम टू कहा जा रहा है। पूरा पूर्वी यूरोप इस नॉर्ड स्ट्रीम टू पर निर्भर होगा।

जर्मनी की गाड़ियों, ब्रिटेन के बिजली के उत्पाद, फ्रांस के उपभोक्ता उत्पाद, पोलैंड के बीफ़, इटली के इलेक्ट्रिकल गैजेट्स का बहुत बड़ा बाज़ार रूस है। खुद अमेरिका के सॉफ़्टवेअर, कंप्यूटर चिप, कंप्यूटर उपकरण वगैरह का बड़ा बाज़ार रूस है।

ये देश कतई नहीं चाहेंगे कि रूस को होने वाले उनके निर्यात में कमी आए। कोरोना महामारी के कारण इन देशों की अर्थव्यवस्था फटेहाल है, उसमें सुधार के लक्षण बस दिखने लगे हैं। वे ऐसे में कतई नहीं चाहेंगे कि इस तरह की कोई कार्रवाई हो।

आर्थिक प्रतिबंध के ख़िलाफ़ एक तर्क यह भी है कि उसका वह नतीजा नहीं होता है जिस उम्मीद से ये प्रतिबंध थोपे जाते हैं। लोग अमेरिका से यह सवाल भी पूछ सकते हैं कि आर्थिक प्रतिबंध लगा कर आप ईरान जैसे देश को तो झुका नहीं पाए, वह खुले आम परमाणु क्षमता बढ़ाने के काम में लगा हुआ है, फिर रूस का क्या बिगाड़ लेंगे?

russia ukraine conflict and impact - Satya Hindi

सबसे बड़ी बात यह है कि रूस पर किसी तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगने से चीन उसके साथ आ खड़ा होगा। इससे चीन के अपने आर्थिक हित भी सधेंगे और अमेरिका के ख़िलाफ़ तन कर खड़े होने से बीजिंग के राजनीतिक हित भी पूरे होंगे। यूरोपीय देश रूस से ज़्यादा अपना नुक़सान कर बैठेंगे।

फिर आप रूस को कैसे झुकाएंगे, सवाल यह है। इसका जवाब किसी के पास नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भले ही कह दिया हो कि रूस के छोटे से हमले का कड़ा विरोध किया जाएगा, पूरी दुनिया जानती है कि वे रूस से लड़ने के लिए अपने सैनिक नहीं भेजेंगे।

कई दशकों के बाद शायद यह पहला मौका है जब अमेरिकी सैनिक किसी दूर देश में बड़ी तादाद में तैनात नहीं है। अफ़गानिस्तान से सैनिक वापस बुला कर वाशिंगटन ने किसी तरह अपना गला छुड़ाया है, वह नए बवाल में क्यों फंसने जाए?

तो क्या नैटो का विस्तार नहीं होगा और यूक्रेन को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा?

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यह कई बार कहा है कि नब्बे के दशक में सोवियत संघ के ज़माने में तत्कालीन सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव को दिया गया वादा अमेरिका ने पूरा नहीं किया है। नैटो का लगातार विस्तार हुआ है।

यह सच है। चेक गणराज्य, हंगरी, पोलैंड, बुल्गारिया, रोमानिया, लातविया, लिथुआनिया, एस्टोनिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, अल्बानिया, क्रोएशिया, मॉन्टीनेग्रो और नॉर्थ मेसीडोनिया वे देश हैं जो किसी न किसी रूप में या तो रूस का हिस्सा थे या रूस के मित्र देश का हिस्सा थे या सीधे रूस के मित्र देश थे। वे अब नैटो के सदस्य हैं।

इनमें से चार देशों पोलैंड, लिथुआनिया, लातविया और एस्टोनिया की सीमाएं रूस से लगती हैं। इनमें से किसी के साथ रूस के अच्छे रिश्ते नहीं है।

रूस का कहना है कि नैटो के विस्तार और उसकी सीमा के पास नैटो की सेनाओं और सैन्य उपकरणों के रहने से रूस की सुरक्षा पर सीधा ख़तरा है।

नैटो के विस्तार में एक बड़ा पेच यह है कि उस पर होने वाले खर्च का बड़ा हिस्सा अमेरिका उठाता है। डोनल्ड ट्रंप ने यह मुद्दा उठाया था और बेलाग होकर कहा था कि दूसरे सदस्य देश ज़्यादा पैसे दें। उनका तर्क था कि सुरक्षा तो सबकी मजबूत होती है, अकेले अमेरिका की नहीं, तो वह ज़्यादा बोझ क्यों उठाए।

लेकिन स्लोवेनिया या स्लोवाकिया या नॉर्थ मेसीडोनिया जैसे छोटे देश नैटो में पैसे कैसे दें, यह सवाल भी है। वे तो नैटो में गए ही इसलिए हैं कि वह उनकी सुरक्षा की गारंटी दे।

russia ukraine conflict and impact - Satya Hindi
लिथुआनिया, लातविया और एस्टोनिया जैसे बाल्टिक देश भी नाम मात्र के ही पैसे नैटो को देते हैं। वे तो इसी बात पर इतराते हैं कि उनकी वजह से रूसी सेना पूर्वी यूरोप में दाखिल नहीं हो सकती। उनका मानना है कि वे यूरोपीय संघ के सदस्य देशों को रूसी सेना से बचाए हुए हैं, यही क्या कम है?
ऐसे में बीच का रास्ता यही है कि अमेरिका कुछ दिनों के लिए यूक्रेन को नैटो में शामिल न करे और बैक डोर चैनल से मॉस्को को इस पर आश्वस्त कर दे, भले ही खुले आम ऐसा न कहे।

ऐसा हुआ तो यह रूसी राष्ट्रपति की निजी जीत होगी और उनके रूसी राष्ट्रवाद के एजेंडे को आगे बढ़ाएगी। यूक्रेन में रूसी मूल के और रूसी भाषा बोलने वाले लोगों की तादाद यूक्रेनी मूल के लोगों से थोड़ी ही कम है।

व्लादिमीर पुतिन इसे भुना कर अपने रूसी राष्ट्रवाद को मजबूत करते रहे हैं। उन्होंने पिछले साल एक लेख लिखा था, जिसे अख़बार में छापा गया था। उन्होंने उस लेख में रूसी और यूक्रेनी दोनों को 'समान राष्ट्रीयता' बताया था। पुतिन ने यह भी कहा था कि यूक्रेन के मौजूदा नेता 'रूस विरोधी प्रोजेक्ट' चला रहे हैं।

दुनिया से और खबरें

इसे एक मामूली बात कह कर टाला जा सकता है, पर इससे पुतिन की सोच का पता चलता है। वे सोवियत संघ के गौरव को वापस भले ही न ला पाएं, पर ऐसा करने की कोशिश करते हुए दिखना चाहते हैं।

भारत के साथ दिक्क़त यह है कि वह इस मामले में कुछ नहीं कर सकता, पर वह इस प्रकरण से प्रभावित होने से बच नहीं सकता है। रूस के साथ गहरे व्यापारिक रिश्ते हैं जो हथियारों की खरीद तक सीमित नहीं है।

रूसी मदद से भारत के कई परमाणु रिएक्टर चलते हैं, रूस से तेल, प्राकृतिक गैस वगैरह तो लेता ही है। रूस को कपड़े, डायमंड, चाय, मोटर पार्ट्स, सॉफ़्टवेअर, कंप्यूटर सेवा जैसी चीजें भी देता है। रूस पर लगा प्रतिबंध भारत के लिए मुसीबत ही बनेगा। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

दुनिया से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें