रूस की पहली कोरोना वैक्सीन की घोषणा हुई तो दुनिया भर में खुशी की लहरें दौड़तीं उससे पहले ही संदेह के घने बादल मंडराने लगे। ये संदेह इसलिए पैदा होने शुरू हुए कि रूस की ओर से न तो बड़े स्तर पर किसी क्लिनिकल ट्रायल के बारे में बताया गया और न ही विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ को इसकी जानकारी दी गई। इंग्लैंड, अमेरिका और दूसरे कई देशों में जहाँ काफ़ी पहले ही दूसरी वैक्सीन पर तीसरे चरण के ट्रायल शुरू हो चुके हैं उससे भी पहले एकाएक से रूस की वैक्सीन टपक पड़ी। उसे भी सीधे मंजूरी तक मिल गई और रूसी राष्ट्रपति ने घोषणा कर दी कि उन्होंने अपनी बेटी को यह टीका लगवा दिया है। तो आख़िर क्या है रूस का दावा और क्यों दुनिया भर के वैज्ञानिक इस पर सवाल उठा रहे हैं? और हम भारतीयों को इस टीके से कितनी उम्मीदें रखनी चाहिए?