अब जो असम समझौते के खंड 6 को लागू करने की बात हो रही है, उससे भी नए विवाद और टकराव शुरू होने की ज़मीन तैयार हो रही है।
दशकों पुराना विवाद
इस साल फरवरी में सरकार द्वारा नियुक्त एक समिति ने असम समझौते के खंड 6 के कार्यान्वयन के लिए अपनी सिफ़ारिशें प्रस्तुत की थीं, जो एक प्रमुख प्रावधान है और जिसको लेकर दशकों से विवाद रहा है। तब से सरकार ने रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया है।मंगलवार को उस समिति के कुछ सदस्यों - अरुणाचल प्रदेश के एडवोकेट जनरल निलय दत्त और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के तीन सदस्यों ने स्वतंत्र रूप से रिपोर्ट जारी कर दी।
असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने कहा कि उनकी सरकार असम समझौते के खंड 6 को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। असम और केंद्र सरकार दोनों इस संबंध में प्रयास कर रही हैं।
क्या है खंड 6 में?
खंड 6 असम समझौते का एक हिस्सा है जो बांग्लादेश से घुसपैठ के ख़िलाफ़ एक आंदोलन की परिणति के तौर पर सामने आया था। खंड 6 में लिखा है:“
‘असमिया लोगों की पहचान और विरासत की संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक सुरक्षा, जैसा कि उपयुक्त हो सकता है, सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषा की रक्षा और संरक्षण के लिए सुनिश्चित की जाएगी।’
खंड 6, असम समझौता
सीएए का विरोध
सीएए में अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले ग़ैर-मुसलिमों को नागरिकता देने का प्रावधान रखा गया है। असम में क़ानून का विरोध इस आशंका के साथ शुरू हुआ कि इससे 1985 के असम समझौते की अहमियत कम हो सकती है, जिसके तहत सरकार उन सभी शरणार्थियों और घुसपैठियों को पहचानने और निर्वासित करने पर सहमत हुई थी, जो 25 मार्च, 1971 के बाद पूर्वोत्तर राज्य में प्रवेश कर चुके हैं। सीएए में नई समय सीमा तय करते हुए कट- ऑफ डेट 31 दिसंबर 2014 तक निर्धारित किया गया है।असमिया की पहचान?
इस समिति को ‘असमिया लोगों’ को परिभाषित करना और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए उपाय सुझाना था। ‘असमिया लोगों’ की परिभाषा दशकों से चर्चा का विषय रही है। समिति ने प्रस्ताव दिया है कि खंड 6 के उद्देश्य के लिए असमिया लोगों की परिभाषा के लिए निम्न बिन्दुओं पर विचार किया जाए:- भारत के सभी नागरिक जो इसका हिस्सा हैं:
- असमिया समुदाय, 1 जनवरी 1951 को या उससे पहले असम के क्षेत्र में रहने वाला; या
- 1 जनवरी, 1951 को या उससे पहले असम के क्षेत्र में रहने वाला असम का कोई भी जनजातीय समुदाय;
- 1 जनवरी, 1951 को या उससे पहले असम के क्षेत्र में रहने वाला असम का कोई अन्य स्थानीय समुदाय; या
- 1 जनवरी, 1951 को या उससे पहले असम के क्षेत्र में रहने वाले भारत के अन्य सभी नागरिक;
- तथा उपरोक्त श्रेणियों के वंशज
कट-ऑफ़ डेट
असम में 80 के दशक में 6 वर्षों तक चले विदेशी बहिष्कार आंदोलन के दौरान 1951 के बाद असम में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले घुसपैठियों का पता लगाने और उनको निकालने की माँग की गई थी। लेकिन जब असम समझौता हुआ तो नागरिकता के लिए 24 मार्च, 1971 को कट-ऑफ डेट निर्धारित किया गया। असम में इसी आधार पर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को अद्यतन किया गया।असम समझौते के खंड 6 का आशय असमिया लोगों को कुछ सुरक्षा उपाय देना है, जो 1951 और 1971 के बीच असम आकर बसने वालों के लिए उपलब्ध नहीं होंगे।
समिति की विभिन्न सिफ़ारिशों में प्रमुख हैं संसद, विधानसभा और स्थानीय निकायों में असमिया लोगों के लिए सीटें आरक्षित करना; नौकरियों में आरक्षण, और भूमि अधिकार सुनिश्चित करना।
ये सिफ़ारिशें हैं :
- असम की संसदीय, विधानसभा और स्थानीय निकाय सीटें ‘असमिया लोगों’ के लिए 80 से 100% तक आरक्षित की जानी चाहिए।
- केंद्र सरकार / अर्ध-केंद्र सरकार / केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों / केंद्रीय क्षेत्र में ग्रुप 'सी' और 'डी' स्तर के पदों का (असम में) 80 से 100% तक आरक्षण होना चाहिए।
- असम सरकार और राज्य सरकार के उपक्रमों के तहत 80 से 100% नौकरियां; और निजी भागीदारी में नौकरियों का 70 से 100% तक आरक्षण होना चाहिए।
- भूमि अधिकार, ‘असमिया लोगों’ के अलावा किसी भी व्यक्ति द्वारा भूमि हस्तांतरित करने पर लगाए गए प्रतिबंधों के साथ।
- असमिया भाषा बराक घाटी, पहाड़ी जिलों और बोडोलैंड क्षेत्रीय जिलों में स्थानीय भाषाओं के उपयोग के प्रावधानों के साथ राज्य भर में आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।
- बराक घाटी ज़िलों, बीटीएडी और हिल्स जिलों के लिए विकल्प के साथ राज्य सरकार की सेवाओं में भर्ती के लिए असमिया भाषा के पेपर का अनिवार्य प्रावधान।
- बोडो, मिशिंग, कार्बी, डिमासा, कोच-राजबंशी, राभा, देउरी, तिवा, ताई और अन्य जनजातीय भाषाओं में से प्रत्येक के सर्वांगीण विकास के लिए अकादमियों की स्थापना करना।
- बराक घाटी ज़िलों, बीटीएडी और हिल्स जिलों के लिए विकल्प के साथ राज्य सरकार की सेवाओं में भर्ती के लिए असमिया भाषा के पेपर का अनिवार्य प्रावधान।
- बोडो, मिशिंग, कार्बी, डिमासा, कोच-राजबंशी, राभा, देउरी, तिवा, ताई और अन्य जनजातीय भाषाओं में से प्रत्येक के सर्वांगीण विकास के लिए अकादमियों की स्थापना करना।
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