चंपाई सोरेन
बीजेपी - सरायकेला
जीत
चंपाई सोरेन
बीजेपी - सरायकेला
जीत
पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व
जीत
आज से ठीक एक महीना पहले 24 फ़रवरी को जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था तो उसने यह नहीं सोचा होगा कि 24 मार्च को भी उसे इस रूप में संघर्ष करना पड़ेगा। रूसी सैनिक यूक्रेनी सैनिकों के सामने अभी भी संघर्ष कर रहे हैं और यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा करने की तो बात ही दूर खारकीव जैसे शहरों पर भी कब्जा नहीं कर पाये हैं।
रूस (पूर्व सोवियत संघ का अहम देश) एक समय अमेरिका और नाटो के सामने दशकों तक चट्टान की तरह खड़ा रहा। नाटो के ख़िलाफ़ रूस की 'हाइब्रिड वार' तकनीक काफ़ी प्रसिद्ध है। इस तकनीक का बड़ा हिस्सा यूक्रेन में इस्तेमाल किया जा रहा है। रिपोर्ट है कि रूस ने 1.5-1.9 लाख सैनिक यूक्रेन में उतारे हैं। उन्नत हथियारों का इस्तेमाल किया है। इसके बावजूद मारियुपोल की चल रही घेराबंदी के अलावा रूसी सैनिक यूक्रेन के किसी भी बड़े शहर पर कब्ज़ा करने में विफल क्यों रहे हैं? आख़िर रूस या रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की चूक कहाँ हुई?
वैसे, रूस की ऐसी स्थिति होने के पीछे कई कारण ज़िम्मेदार माने जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि जब रूसी सेना यूक्रेन में घुसी तो उन्होंने ऐसी कल्पना कर ली थी कि उनका यूक्रेन में स्वतंत्रता सेनानी के तौर स्वागत होगा लेकिन हुआ इसके उलट। रूसी सैनिकों को यूक्रेन में जबर्दस्त लड़ाई का सामना तो करना ही पड़ा है, रूसी हमले का रूस में ही बड़ा विरोध हो रहा है।
व्लादिमीर पुतिन ने शायद ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं की होगी कि रूसी सैनिकों को इतना संघर्ष करना पड़ेगा। उन्होंने शायद यह सोचा हो कि रूसी सैनिक बिजली की गति से जाएँगे और यूक्रेन आत्मसमर्पण कर देगा और उसी गति से उनको जीत मिल जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जानिए, छह बड़े कारण जिससे मौजूदा हालात बने हैं-
रूस ने अपने अभियान की शुरुआत बड़े पैमाने पर यूक्रेनी सैन्य स्थलों को निशाना बनाकर की। लेकिन अब वह यूक्रेनी शहरों के अंदर नागरिक क्षेत्रों पर बमबारी कर रहा है। इससे यह पता चलता है कि अभियान रूसी योजना के अनुसार नहीं चल रहा है। भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान के पूर्व पायलट समीर जोशी ने टीओआई में एक लेख में लिखा है कि रूसी सैनिकों के शुरुआती हमलों से लगता है कि उनका मुख्य मक़सद यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव पर कब्जा करना, डोनबास क्षेत्र को यूक्रेन के दक्षिणी तट ओडेसा से जोड़ना और उत्तर की तरफ़ से तेज़ी से सैन्य हमला कर कीव पर कब्जा जमाना था। लेकिन उन्होंने अब तक इसमें से एक भी लक्ष्य नहीं पाया है।
रूस ने अपने पास उपलब्ध 9 लाख सैनिकों में से यूक्रेन ऑपरेशन के लिए 1. 5 लाख से 1. 9 लाख सैनिकों को तैयार किया। रसद और हथियार की सप्लाई कम पड़ने की भी ख़बरें हैं।
क्या इससे यह नहीं लगता है कि रूस ने छोटी अवधि के लिए अभियान शुरू किया था? और अब जब अभियान लंबा खींच गया है तो रूस नये सिरे से अपनी युद्ध की रणनीति पर विचार कर रहा है?
रूस की एकतरफ़ा युद्ध की कार्रवाई के कारण पश्चिमी देशों की सहानुभूति यूक्रेन के पक्ष में गई। नाटो भी यूक्रेन के साथ खड़ा हुआ क्योंकि यूक्रेन और नाटो देशों की विचारधारा एक जैसी लगती रही हैं। रूस की सेना और हथियारों के आगे यूक्रेन की सेना इतने लंबे समय तक शायद डटी हुई नहीं होती यदि उसका साथ अमेरिका और उसके नेतृत्व वाले संगठन नाटो का साथ नहीं मिला होता।
नाटो के साथ से एक तो यूक्रेनी सेना का मनोबल बढ़ा और उसे काफी मात्रा में सैन्य उपकरण मिलते रहे जिससे रूसी सैनिकों से वे मुक़ाबला करते रहे। रूस को शायद यूरोपीय देशों और नाटो की ऐसी प्रतिक्रिया का अनुमान नहीं था। टीओआई में रुद्रोनील घोष ने लिखा है कि रूस ने शायद नाटो की एकता को कम करके आंका। यह संभव है कि पिछले साल अमेरिका का अफगानिस्तान से बाहर निकलना और रूसी ऊर्जा पर यूरोप की निर्भरता के कारण मास्को ने इसका ग़लत अनुमान लगा लिया हो। हो सकता है कि पुतिन ने यह देखा हो कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दौरान अमेरिका और उसके नाटो सहयोगियों के बीच कैसे ख़राब संबंध बन गए थे। उनको शायद यह लगा हो कि नाटो साथ नहीं आ पाएगा।
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने रूसी हमले के दौरान वो कर दिखाया है जिसकी कल्पना पुतिन ने तो कम से कम नहीं ही की होगी। रूस जैसे ताक़तवर देश के यूक्रेन में हमले के बाद शायद यह कई लोगों के जहन में अफगानिस्तान की घटना आई होगी। अफ़गानिस्तान में जिस तरह से अमेरिका के निकलने के साथ ही तालिबान आया, अफ़गानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति चुपके से देश छोड़कर चले गए थे।
लेकिन ज़ेलेंस्की रूसी हमले बढ़ने के साथ और आक्रामक होते गए। उन्होंने ने केवल यूक्रेनी लोगों के दिल में राष्ट्र भावना को भरा और रूसी सैनिकों से लड़ने के लिए आम नागरिकों को भी तैयार रहने को कहा, बल्कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय नेताओं को भी अपने पक्ष में किया। यूरोपीय यूनियन की संसद या अमेरिकी सांसदों को जब संबोधित किया तो वहाँ उन्हें स्टैंडिंग ओवेशन दिया गया। यह काफ़ी बड़ी बात थी।
दुनिया भर के अख़बारों में ज़ेलेंस्की की तारीफ़ हुई। ऐसा इसलिए कि रूस जैसा देश जब कीव पर हमला कर रहा था तब वह कीव में ही खड़े होकर रूसी सैनिकों के ख़िलाफ़ लड़ाई का मोर्चा संभाल रहे थे।
आक्रमण के क्रम में रूसी नेतृत्व ने यह ख़बर फैलाई कि उसने यह अभियान एक नव-नाजी शासन से यूक्रेनी नागरिकों को मुक्त करने के लिए एक कदम के रूप में शुरू किया है। लेकिन जेलेंस्की ने इस दाँव को ध्वस्त कर दिया। ज़ेलेंस्की खुद एक यूक्रेनी यहूदी हैं, जिनका परिवार उस जातीय नरसंहार से बच गया था। संघर्ष के शुरुआती दिनों में ज़ेलेंस्की ने व्यक्तिगत वीडियो डालकर और एक अन्यायपूर्ण आक्रमण के ख़िलाफ़ यूक्रेनी प्रतिरोध की कहानी बताई और इस धारणा को अपने पक्ष में कर लिया। युद्ध में इस तरह की धारणाएं बेहद अहम भूमिका निभाती हैं। जेलेंस्की ने यह घोषणा की कि यह हमला रूसी लोगों की नहीं, बल्कि रूसी राष्ट्रपति की व्यक्तिगत मंशा है। यूक्रेन हमले के ख़िलाफ़ जब रूस में प्रदर्शन हुए तो इसका भी यह संदेश गया कि पुतिन किसी की नहीं सुनते हैं।
पुतिन को इस समय जिस तरह की अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ रहा है, उसकी उम्मीद उन्हें नहीं होगी। अंतरराष्ट्रीय स्विफ्ट भुगतान प्रणाली से प्रमुख रूसी बैंकों को बाहर निकाला गया। इसका रूस पर बेहद बुरा असर पड़ना स्वभाविक था। इस कारण से वह अंतरराष्ट्रीय लेनदेन नहीं कर सकता था। भले ही विदेशी मुद्रा भंडार काफी ज़्यादा हो, लेकिन जब लेनदेन न हो तो वो किस काम का। पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंध के बाद बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भी रूसी अर्थव्यवस्था से सामूहिक पलायन किया और इससे रूस को एक बड़ा झटका लगा।
रूस की ऊर्जा पर काफ़ी ज़्यादा निर्भर जर्मनी जैसे देश भी अब अपना रुख बदल रहे हैं। इससे पता चलता है कि उनकी सरकारें अपने ही नागरिकों के दबाव में हैं कि वे कार्रवाई करें।
इस संघर्ष में रूसी सैनिकों के सामने बड़ी चुनौतियाँ हैं। भारतीय वायु सेना में पायलट रहे समीर जोशी लिखते हैं, 'रूसी सैनिकों को एक साथ कई मोर्चों पर लड़ाई लड़ना पड़ रहा है जबकि उनके पास लंबे खींच रहे युद्ध के लिए आपूर्ति व्यवस्था ठीक नहीं है। वह लिखते हैं कि रूस की वायु सेना अप्रभावी ढंग से इस्तेमाल की गई है। वह यह भी लिखते हैं कि पश्चिमी देशों से बड़े पैमाने पर दी गई जमीन से हवा में मार करने वाली हवाई सुरक्षा प्रणाली को यूक्रेनी सैनिकों ने बेहतरीन ढंग से इस्तेमाल किया है। उन्होंने रूसी लड़ाकू जहाजों, हेलीकॉप्टरों को बड़ी संख्या में मार गिराया है और रूस को काफी ज़्यादा सैनिक गँवाने पड़े हैं।
यूएस-निर्मित जेवलिन मिसाइल लॉन्चर और तुर्की लड़ाकू ड्रोन जैसे टैंक-रोधी हथियारों से लैस मोबाइल इकाइयों पर भरोसा करते हुए यूक्रेनियन बड़े रूसी मशीनीकृत काफिले को रोकने या स्थिर करने में कामयाब रहे हैं। यूक्रेनी सैनिक 2014 से डोनबास में रूस समर्थित अलगाववादियों का सामना करते रहे हैं और इस कारण उन्हें रूसी सैन्य रणनीति के बारे में काफी कुछ पता है।
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें