सुधारवादी नेता मसूद डॉ. पेज़ेशकियन ने ईरान के राष्ट्रपति पद के दूसरे चरण के चुनाव में शनिवार को जीत हासिल की। उन्होंने कट्टरपंथी सईद जलीली को हराया। उन्होंने पश्चिम से संपर्क साधने और इस्लामी गणराज्य पर वर्षों से लगे प्रतिबंधों और विरोध प्रदर्शनों के बाद देश में अनिवार्य हिजाब कानून के क्रियान्वयन को आसान बनाने का वादा किया है।
हेलीकॉप्टर दुर्घटना में अति रूढ़िवादी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मृत्यु के बाद समय से पहले चुनाव कराया गया है। इस चुनाव के पहले चरण में पिछले सप्ताह ऐतिहासिक रूप से कम मतदान हुआ था। दूसरे चरण में चुनाव नतीजा निकल पाया। एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार चुनाव प्राधिकरण के प्रवक्ता मोहसेन इस्लाम ने कहा कि करीब 30 मिलियन वोटों में से पेज़ेशकियन को 17 मिलियन से अधिक वोट मिले और जलीली को 13 मिलियन से अधिक वोट मिले। उन्होंने कहा कि मतदान 49.8 प्रतिशत रहा।
पहले चरण में कम मतदान होने के बाद ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने चुनाव के महत्व पर जोर देते हुए दूसरे चरण में अधिक मतदान का आह्वान किया था। उन्होंने कहा कि पहले चरण में मतदान अपेक्षा से कम रहा था।
यह मतदान गजा युद्ध को लेकर बढ़ते क्षेत्रीय तनाव, ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर पश्चिम के साथ विवाद और प्रतिबंधों से प्रभावित ईरान की अर्थव्यवस्था की स्थिति को लेकर घरेलू असंतोष के बीच हुआ है।
भारत ईरान संबंधों पर क्या होगा असर?
पेज़ेशकियन एक अनुभवी विधिवेत्ता और हृदय शल्य चिकित्सक हैं, जिन्होंने लंबे समय से ईरान में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह के सुधारों का समर्थन किया है। उनकी जीत को बदलाव के आह्वान के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि यह उनके पूर्ववर्तियों की कट्टरपंथी नीतियों से आम नाखुशी के बाद हुआ है। हालाँकि कट्टरपंथी अभी भी बहुमत को नियंत्रित करते हैं और सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के पास अंतिम अधिकार है।
भारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक रूप से मजबूत आर्थिक संबंध रहे हैं। पेजेशकियन के राष्ट्रपति बनने के बाद इन संबंधों के और गहरा होने की संभावना है। विशेष रूप से रणनीतिक चाबहार बंदरगाह पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। यह एक ऐसी परियोजना है जिसके लिए भारत ने पहले ही भारी निवेश किया है। यह पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु है। विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान की सामान्य विदेश नीति में बदलाव की संभावना नहीं है।
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