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भारत में पेगासस जासूसी भले ही दफन हो गई, यूएस में पर्दाफाश

अमेरिका में शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में एक अदालत ने 1,400 व्हाट्सएप यूजर्स के मोबाइल-लैपटॉप को टारगेट करने के लिए इसराइली आईटी कंपनी एनएसओ ग्रुप को जिम्मेदार ठहराया। एनएसओ ग्रुप पेगासस स्पाइवेयर का निर्माता है जिसका इस्तेमाल सरकारी अधिकारियों, राजनीतिक लोगों, पत्रकारों और नागरिक समाज के अन्य लोगों की जासूसी के लिए किया जाता है। पेगासस पूरी दुनिया में इसी रूप में बदनाम है। लेकिन भारत के विपक्षी दलों का आरोप है कि इसके बावजूद भारत में उसको मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान एंट्री दी गई।

अमेरिका में सुनाये गये फैसले में अब अगला चरण नुकसान तय करना है। जो मार्च 2025 में अगली सुनवाई पर तय होगा। मेटा से जुड़े व्हाट्सएप के अक्टूबर 2019 में उत्तरी कैलिफोर्निया के अमेरिकी जिला कोर्ट में एनएसओ समूह पर मुकदमा दायर करने के पांच साल बाद यह फैसला आया। अपने फैसले में, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि व्हाट्सएप में एक बग का फायदा उठाकर, एनएसओ समूह ने प्राइवेसी का उल्लंघन किया था। धोखाधड़ी और दुरुपयोग अधिनियम (सीएफएए), एक संघीय साइबर सुरक्षा कानून कंप्यूटर, नेटवर्क और अन्य डिजिटल जानकारी तक अनधिकृत पहुंच को अपराध मानता है। इसे कैलिफ़ोर्निया में एक समान राज्य कानून जिसे कैलिफ़ोर्निया कंप्यूटर डेटा एक्सेस और धोखाधड़ी अधिनियम (सीडीएएफए) भी कहा जाता है।

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यूएस कोर्ट ने व्हाट्सएप के उस दावे पर भी फैसला सुनाया कि एनएसओ ग्रुप ने उसकी सेवा शर्तों का उल्लंघन किया। जिससे मैसेजिंग ऐप वाट्सएप को निर्णायक जीत मिली। एक पोस्ट में, व्हाट्सएप के प्रमुख विल कैथकार्ट ने लिखा, “यह फैसला गोपनीयता के लिए एक बड़ी जीत है। हमने अपना मामला पेश करने में पांच साल बिताए क्योंकि हमारा दृढ़ विश्वास है कि स्पाइवेयर कंपनियां प्रतिरक्षा के पीछे छिप नहीं सकती हैं या अपने गैरकानूनी कार्यों के लिए जवाबदेही से बच नहीं सकती हैं। 

निगरानी कंपनियों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अवैध जासूसी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। व्हाट्सएप लोगों के निजी संचार की सुरक्षा के लिए काम करना कभी बंद नहीं करेगा।


-विल कैथकार्ट, व्हाट्सएप चीफ सोर्सः वॉल स्ट्रीट जनरल

यह फैसला महत्वपूर्ण है। क्योंकि किसी भी अदालत ने अभी तक एनएसओ ग्रुप को उसके स्पाइवेयर के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया है। भारत में यह मामला अदालत तक पहुंचा लेकिन बाद में सब रफादफा हो गया। कोई नहीं जानता कि भारत में नेता विपक्ष राहुल गांधी के मोबाइल में पेगासस भेजकर उनकी निगरानी का आरोप लगा, उसका क्या हुआ। व्हाट्सएप ने आरोप लगाया था कि अप्रैल 2018 और मई 2020 के बीच, एनएसओ समूह ने "हेवेन", "ईडन" नामक इंस्टॉलेशन वैक्टर (एंट्री प्वाइंट) बनाने के लिए अपने स्रोत कोड को रिवर्स-इंजीनियरिंग और डीकंपाइल किया था। फिर "एराइज़्ड" - "हमिंगबर्ड" नामक एक हैकिंग सूट का हिस्सा जिसे एनएसओ समूह ने अपनी सूची के सरकारी ग्राहकों को बेचा था। इसके जरिए पेगासस फैलाया गया।

गंभीर रूप से, यह फैसला एनएसओ समूह के बार-बार किये जाने वाले इस दावे को खारिज करता है कि वह अपने ग्राहकों यानी तमाम देश की सरकारों, जिन्होंने स्पाइवेयर प्राप्त किया था, की हरकत या निर्णयों के लिए जिम्मेदार नहीं है। एनएसओ कहती रही है कि तमाम देशों में वहां की सरकारों ने पेगासस का इस्तेमाल कहां और कैसे किया, उसकी जिम्मेदारी में नहीं आता। लेकिन अमेरिकी अदालत ने उसके दावे और दलील को खारिज कर दिया। हालाँकि, पिछले महीने सामने आए अदालती दस्तावेज़ों में, व्हाट्सएप ने इस दावे का खंडन किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि इसकी तैनाती में पेगासस ग्राहकों की न्यूनतम भूमिका थी।

भारत में पेगासस के मामले को बहुत बेरहमी से दबाया गया था। भीमा कोरेगांव तक के एक्टिविस्टों के लैपटॉप और मोबाइल को पेगासस स्पाइवेयर के जरिये प्रभावित किया गया। एक्टिविस्ट एडवोकेट रोना विल्सन के लैपटॉप से फर्जी ईमेल भेजे गये थे।

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क़मर वहीद नक़वी
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