कोरोना कूटनीति!
तीन हजार से अधिक लोगों की मौत का भारी नुक़सान सहने के बाद जहाँ चीन ने अब बाकी दुनिया को कोरोना के कहर से बचाने के लिये मदद देने की कूटनीति शुरु कर दी है, वहीं भारत ने भी पहले क्षेत्रीय तौर पर और फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोरोना से निबटने की साझा रणनीति की पहल कर वाहवाही लूटी है।'सार्क' को पुनर्जीवित करने की कोशिश!
कोरोना के बहाने ही भारत ने मृतप्राय दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) में आपसी बातचीत का सिलसिला फिर शुरु कर नई जान फूंकने की कोशिश की है। इसके साथ ही भारत ने 20 विकसित और विकासशील देशों के संगठन जी-20 में भी कोरोना से निबटने के लिये आपसी तालमेल से काम करने के लिये ‘सार्क’ की तर्ज पर जी-20 शिखर वीडियो कांफ्रेंस आयोजित करने का प्रस्ताव रखा।भारत ने इसे पूरा करने का संकल्प ले कर इन देशों और बाकी दुनिया को संदेश दिया कि भारत अपने पड़ोसी देशों का संकट का साथी है।
सुनामी का कहर
इसकी एक बड़ी मिसाल भारत ने 2004 में पेश की थी, जब पूरे हिंद और प्रशांत महासागर के विशाल समुद्री इलाक़े में आए विनाशकारी समुद्री भूकम्प सुनामी से भारत ने राहत व बचाव के लिये अपने सैनिक और नागरिक संसाधन तैनात कर बीसियों देशों के करोडों लोगों को कुछ घंटे के भीतर ही राहत पहुँचा कर ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की परम्परा के मुताबिक़ अपनी क्षमता और परोपकारी नीतियों का अहसास दुनिया को कराया था।कोरोना और चीन
वहीं, दूसरे देशों की सरकारें खुले तौर पर चीन को इसके लिये ज़िम्मेदार ठहराने से बच भी रही हैं, ताकि चीन इसे लेकर उस देश से नाराज़ नहीं हो जाए। दबी ज़ुबान से कई देशों के जैव-विशेषज्ञ इसके लिये चीन को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं, लेकिन सरकारें मौन हैं और सीधी टिप्पणी से बच रही हैं।जहाँ कोरोना वायरस का नाम चीन से जोड़ने को लेकर विवाद ख़ड़ा हो गया है, वहीं चीन से सहानुभूति और एकजुटता जाहिर कर ताक़तवर चीन को खुश करने की भी कोशिशें हुई हैं।
पाक राष्ट्रपति चीन में
जब भारत सहित सारी दुनिया की सरकारें ऊहान शहर से अपने नागरिकों और छात्रों को निकालने की योजनाओं को अंजाम देने में जुटी रहीं वहीं चीन के सदाबहार दोस्त पाकिस्तान ने चीन की खुशामद में न केवल यह कह दिया कि पाकिस्तान अपने छात्रों को ऊहान शहर से नहीं निकालेगा बल्कि मार्च के दूसरे सप्ताह में अपने राष्ट्रपति डा. आरिफ अलवी को चीन भेजकर दुनिया भर में अलग थलग हुए चीन को राहत भी पहुँचाई।
ऐसे वक़्त जब चीन से सारी दुनिया दूरी बनाई हुई है, वहीं पाकिस्तान ऐसा देश बना जिसने अपने राष्ट्रपति को चीन भेजकर उसे राजनयिक मोर्चे पर अलग-थलग होने से बचाने का काम किया। पाकिस्तान के अलावा चीन के पड़ोसी मंगोलिया दूसरा देश था, जिसने चीन से सहानुभूति दिखाने और संकट के वक़्त चीन के साथ खड़ा होने का अहसास देने के लिये अपने राष्ट्रपति को चीन भेजा।
चीन-अमेरिका
दूसरी ओर कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर चीन और अमेरिका के बीच आपसी छींटाकशी भी हमने देखी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने कोरोना वायरस को ‘चीनी वायरस’ की संज्ञा दी तो चीन ने नाराज़़ हो कर कह दिया कि ऊहान शहर में अमेरिकी सेना ने ही कोरोना वायरस छोडा था। इसके बाद अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कोरोना वायरस को ‘ऊहान वायरस’ की संज्ञा देकर चीन की नाराज़गी बढ़ा दी।कोरोना और कश्मीर?
कोरोना के बहाने चीन और पाकिस्तान ने अपनी कुटिल कूटनीतिक चालें भी चलीं, जिसे भारत ने यह कहकर खारिज कर दिया कि कोरोना से बचने के लिये खड़े किये गए सहयोगी मंच का पाकिस्तान ने दुरुपयोग किया है।पाकिस्तान के राष्ट्रपति कोरोना संकट के बाद चीन से सहानुभूति दिखाने बीजिंग गए तो चीन और पाकिस्तान ने साझा बयान जारी कर भारत की जम्मू-कश्मीर नीति को लेकर भारत की निंदा करने वाला साझा बयान जारी कर दिया।
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