राजनीतिक बदलाव के दौर से गुजर रहे पाकिस्तान में अस्थिरता का दौर हमेशा से रहा है, लेकिन क्या अब उस स्थिति में बदलाव आएगा? नए सेना प्रमुख बनने के बाद हालात बदलेंगे या बिगड़ेंगे? पाकिस्तान पर विशेष शृंखला में पहली, दूसरी और तीसरी कड़ी पहले ही प्रकाशित की जा चुकी है। आज पेश है इस सीरीज़ की आख़िरी कड़ी।
कई दिनों से जारी सस्पेंस को ख़त्म करते हुए पाकिस्तान की शाहबाज़ शरीफ़ सरकार ने आज अगले सेना प्रमुख के रहस्य पर से परदा हटा दिया और जनरल असीम मुनीर को देश की सेना की कमान सौंपने का फ़ैसला किया। साथ ही उसने जनरल शाहिद शमशाद मिर्ज़ा को जॉइंट चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ कमिटी का चेयरमैन भी बना दिया।
शाहबाज़ सरकार ने नए सेना प्रमुख का चयन करते समय वरिष्ठता को पैमाना बनाया है जबकि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान चाहते थे कि नए सेना चीफ़ का फ़ैसला वरिष्ठता के बजाय योग्यता के आधार पर हो और उसका निर्णय भी चुनावों के बाद आने वाली नई सरकार करे। लेकिन नए सेना प्रमुख के चयन में उनकी एक न चली और अंततः उसी व्यक्ति को नया सेना प्रमुख के रूप में चुना जिसको वे क़तई नहीं चाहते थे।
जनरल मुनीर ही वह शख़्स हैं जिन्होंने आई.एस.आई प्रमुख के पद पर रहते हुए (25 अक्टूबर 2018 –16 जून 2019) इमरान ख़ान के परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। इसकी सज़ा के तौर पर इमरान ख़ान ने जून 2019 में आई.एस.आई. के महानिदेशक पद से उनको हटा दिया था और अपने क़रीबी जनरल फ़ैज़ हमीद (17 जून 2019-19 नवंबर 2021) को उनके स्थान पर उसका नया प्रमुख बना दिया था। इमरान चाहते थे कि जनरल हमीद ही अगले आर्मी चीफ़ बनें लेकिन उनकी मंशा पूरी नहीं हुई क्योंकि मौजूदा आर्मी चीफ़ बाजवा इसके ख़िलाफ़ थे। यह मुद्दा दोनों के बीच झगड़े की जड़ बन गया और आगे चलकर न केवल जनरल हमीद को आई.एस.आई. चीफ़ का अपना पद छोड़ना पड़ा, बल्कि इमरान ख़ान को भी अपनी प्रधानमंत्री की कुर्सी से हाथ धोना पड़ा।
पिछले कुछ दिनों से जनरल बाजवा भी इमरान गुट के हमलों के शिकार हो रहे हैं। पिछले दिनों उनकी छवि बिगाड़ने का प्रयास किया गया। उनके इनकम टैक्स के डीटेल मीडिया में लीक किए गए और बताया गया कि अपने कार्यकाल में उनके परिवार की संपत्ति में किस तरह बेतहाशा वृद्धि हुई। लेकिन जनरल बाजवा ने 1965 और 1971 के युद्ध को डिफ़ेंड करते हुए जो बातें कही हैं, उनसे भी पता चलता है कि जनता में सेना की छवि कितनी धूमिल हुई है। सेना अपनी इस बिगड़ती हुई छवि को सुधार पाएगी या नहीं, यह अगले कुछ दिनों में सेना के रवैये से तय होगा, जब इमरान ख़ान और उनके सहयोगी सड़कों पर उतरेंगे।
नए सेना प्रमुख मुनीर के लिए भी आने वाले दिन चुनौती से भरे होंगे क्योंकि वे भी जानते हैं कि उन्होंने काँटों का ताज पहना है। उन्हें न केवल इमरान और उनकी पार्टी के हमलों का सामना करना है बल्कि उस सेना को भी एक रखना है जो आज की तारीख़ में एक विभाजित संगठन है। एक ऐसा संगठन जिसपर पाकिस्तान भरोसा नहीं कर सकता। सालों से झूठ की बुनियाद पर पाकिस्तान का शासन चलाने वाली आर्मी अब इतिहास के उस दोराहे पर खड़ी है जहाँ उसे एक बार फिर सत्ता अपने हाथों में लेनी पड़ेगी या फिर अपने गले में लोकतंत्र की ज़ंजीर डालनी होगी।
इमरान की ताक़त और पाकिस्तान सरकार की इच्छाशक्ति की पहली परीक्षा अब 26 नवंबर को होने वाली है जब इमरान समर्थक फिर से सड़कों पर उतरेंगे। अब जबकि नए सेना प्रमुख के रूप में उनके पुराने शत्रु चुन लिए गए हैं तो इमरान का रास्ता भी बहुत मुश्किल हो गया है। यह देखना रोचक होगा कि पाकिस्तान की राजनीति आगे क्या करवट लेती है।
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