इमरान ख़ान अप्रैल 2022 से पाकिस्तानी सेना के विरोध में बोल रहे थे जिससे उनके समर्थकों में सेना के प्रति नाराज़गी पैदा हो रही थी। इसके कारण यह चुनाव एक तरह से राजनीतिक दलों के बीच नहीं, बल्कि सेना और तहरीक-ए-इंसाफ के बीच का मुक़ाबला बन गया था। इमरान जेल में थे, मुक़दमों में सज़ा हो चुकी थी। पार्टी का चुनाव चिह्न रद्द हो गया था। चुनावी मीटिंग पर रोक और उनके समर्थकों को जेल में ठूँसा जा रहा था।
मतदान के प्रतिशत से तीन बातें उभरकर आती हैं। पहली, पाकिस्तानियों के एक बड़े हिस्से में अब अपनी आर्मी का ख़ौफ़ नहीं रहा। दूसरी, जनता से मिले समर्थन का प्रभाव इमरान ख़ान पर चल रहे मुक़दमों पर भी पड़ सकता है और उन्हें उच्च अदालतों से रिहाई मिल सकती है। तीसरी, पाकिस्तान आर्मी इमरान पर देश छोड़कर जाने का दबाव बना सकती है जो शायद उन्हे मंज़ूर न हो। ऐसे में नए सिरे से टकराव की स्थिति पैदा होने की संभावना है।
जनरल असीम मुनीर का भविष्य
पाकिस्तान सेना प्रमुख असीम मुनीर अपनी पदोन्नति के लिए नवाज़ शरीफ़ के आभारी हैं। उनका चयन सर्वसम्मत और सहज नहीं रहा है। सेवारत जनरलों, उनके परिवार के सदस्यों और पूर्व सैनिकों का एक बड़ा वर्ग शरीफ़ परिवार से उनकी निकटता से नाराज़ है। शुरुआती दिनों में जनरल मुनीर अपने ही सहयोगियों को नियंत्रित नहीं कर सके जो इमरान ख़ान से समर्थन वापस लेने पर बँटे हुए थे। हालात तब और बदतर हो गए जब 9 मई 2023 को इमरान ख़ान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी के समर्थकों ने लाहौर कोर कमांडर हाउस, मियाँवाली एयरबेस और फैसलाबाद में आईएसआई भवन सहित 20 से अधिक सैन्य प्रतिष्ठानों और सरकारी इमारतों में तोड़फोड़ की। रावलपिंडी में सेना मुख्यालय पर भी पहली बार भीड़ ने हमला किया। सेना मूक दर्शक बनी रही और नागरिकों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप लाहौर कोर कमांडर का सार्वजानिक अपमान हुआ जो कि अभूतपूर्व था।ताज़ा चुनाव में इमरान ख़ान को मिला इतना बड़ा जन समर्थन, जो सेना की नाफ़रमानी का खुला ऐलान है, वरिष्ठ सेना कमांडरों में छुपे असंतोष को हवा दे सकता है। हालात और बिगड़े तो जनरल असीम मुनीर को पद भी छोड़ना पड़ सकता है। इस तरह के परिदृश्य पहले भी सामने आए हैं लेकिन पूरी तरह से अलग परिस्थितियों में। जनरल जहाँगीर करामत (जनवरी 96-अक्टूबर 98) ने नवाज़ शरीफ़ के साथ मतभेदों के कारण इस्तीफ़ा दे दिया था। एक अन्य जनरल आसिफ़ नवाज़ जंजुआ (अगस्त 91-जनवरी 93) की सैन्य प्रमुख रहते हुए रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी।
जनरल मुनीर के लिए आने वाले दिन क्यों मुश्किल भरे हो सकते हैं, इसके समझने के लिए हमें दो प्रांतों के चुनावी नतीजों पर भी एक नज़र डालनी होगी जहाँ इमरान के समर्थकों ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है।
पंजाब, जो पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, उसकी असेंबली में कुल 297 सीटें हैं। इनमें से नवाज़ की पार्टी को मिली 137 सीटों की तुलना में 116 सीटें जीतकर इमरान ने उनके गढ़ में सेंध लगाई है। पाकिस्तानी सेना में पंजाबियों का वर्चस्व है, इसलिए इसे जनरल असीम मुनीर के प्रति पंजाबियों के असंतोष का संकेत भी माना जा सकता है।
- अपना प्रभुत्व क़ायम रखने के लिए इमरान ख़ान और उनके सहयोगियों का और अधिक दमन
- अपनी कुर्सी बचाने के लिए इमरान के साथ मेल-मिलाप करने का प्रयास
- सैन्य प्रमुख के पद से इस्तीफ़ा देकर जनरलों के एक और समूह को उभरने देना ताकि सेना का दबदबा बना रहे।
- यदि आंतरिक स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है तो 'आवश्यकता के सिद्धांत' (Doctrine of Necessity) का हवाला देते हुए मार्शल लॉ लागू करना।
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