मेटा, अमेज़ॅन जैसी कंपनियाँ अपने स्टाफ में अलग-अलग नस्ल, जाति, रंग के कर्मचारियों को रखने के अपने कार्यक्रमों को ख़त्म क्यों कर रहे हैं? पहले अपने स्टाफ़ में ऐसी विविधता के लिए जहाँ ये कंपनियाँ अलग से पहल करती थीं, वहीं अब वे ऐसे कार्यक्रम कम कर रहे हैं। क्या इसके लिए उनपर अब कुछ दबाव है?