बात 1933 की है। आर्थिक मंदी ने अमेरिका और यूरोप की कमर तोड़ रखी थी। लोगों में असंतोष फैला हुआ था। हिटलर ने जर्मनी में नात्सी सरकार बना ली थी जो तानाशाही की ओर बढ़ रही थी। परंतु सोवियत संघ स्टालिन के नेतृत्व में चमत्कारी औद्योगिक और आर्थिक विकास के दावे कर रहा था। खेती के सामूहिकीकरण के ज़रिए यूक्रेन की मिट्टी से सोना उगने के गीत गाए जा रहे थे। दुनिया में यह संदेश जा रहा था कि साम्यवाद और समाजवाद ही मानव विकास का सही रास्ता है। पूँजीवाद तो बर्बादी की ओर ले जाता है।