बात 1933 की है। आर्थिक मंदी ने अमेरिका और यूरोप की कमर तोड़ रखी थी। लोगों में असंतोष फैला हुआ था। हिटलर ने जर्मनी में नात्सी सरकार बना ली थी जो तानाशाही की ओर बढ़ रही थी। परंतु सोवियत संघ स्टालिन के नेतृत्व में चमत्कारी औद्योगिक और आर्थिक विकास के दावे कर रहा था। खेती के सामूहिकीकरण के ज़रिए यूक्रेन की मिट्टी से सोना उगने के गीत गाए जा रहे थे। दुनिया में यह संदेश जा रहा था कि साम्यवाद और समाजवाद ही मानव विकास का सही रास्ता है। पूँजीवाद तो बर्बादी की ओर ले जाता है।
गैरेथ जोन्स- जिसने स्टालिन के झूठ को बेनक़ाब किया था?
- दुनिया
- |
- |
- 29 Jan, 2022

तीन साल पहले पोलैंड की फ़िल्मकार एग्नियेश्का हॉलैंड ने गैरेथ जोन्स पर मिस्टर जोन्स नाम की एक फ़िल्म भी बनाई थी जिसे काफ़ी सराहना मिली। यह फ़िल्म संदेश देती है कि पत्रकार का पहला धर्म प्रचार और भ्रम की धुंध में छिपे तथ्यों को खोज कर उन्हें सही संदर्भ के साथ पेश करना है जिन्हें ज़रूरत पड़ने पर सत्यापित किया जा सके।
सोवियत संघ के दावे वेल्स में जन्मे और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पढ़े पत्रकार गैरेथ जोन्स के गले नहीं उतर रहे थे। गैरेथ जोन्स ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री और लिबरल पार्टी के नेता डेविड लॉयड जॉर्ज के विदेशी मामलों के सलाहकार थे और स्वतंत्र पत्रकार की हैसियत से लिखते थे। उनके पिता उद्योगपति थे जिनका इस्पात का कारख़ाना यूक्रेन में भी था इसलिए जॉन्स की यूक्रेन में विशेष दिलचस्पी थी। यूक्रेन को उसकी उपजाऊ भूमि के कारण यूरोप का धानकटोरा माना जाता था। पर वे जानते थे कि वहाँ दो-तीन वर्षों से अकाल पड़ रहा था।