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ट्रंप की नीति के डर से पार्ट टाइम नौकरियाँ क्यों छोड़ रहे भारतीय छात्र?

डोनाल्ड ट्रंप की नयी नीतियों से क्या अमेरिका में रह रहे भारतीय छात्रों की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं? आख़िर उनके सामने एक नयी तरह का डर क्यों आ गया है? ट्रंप द्वारा नयी सख़्त इमिग्रेशन पॉलिसी लाए जाने के डर से अमेरिका में रह रहे छात्र पार्ट टाइम नौकरियाँ तक छोड़ने लगे हैं। अपने ख़र्च को पूरा करने के लिए उनके सामने अब कर्ज में डूबने की नौबत आ सकती है। तो सवाल है कि आख़िर ट्रंप की ऐसी नीति क्या है और इससे छात्रों को डर क्या है?

दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता संभालते ही एक के बाद एक ऐसी नीतियों की घोषणा की है जिससे अमेरिका ही नहीं, दुनिया भर में चिंताएँ पैदा हुई हैं। उन्होंने जो विवादास्पद नीतियों की घोषणा की है उसमें इमिग्रेशन पॉलिसी यानी आव्रजन नीति और जन्मजात नागरिकता की नीति भी शामिल हैं। ट्रंप के ऑर्डर पर दस्तख़त करने के बाद अमेरिका में बिना कागजों और क़ानूनी दस्तावेजों के रहने वाले अप्रवासियों को उनके देश भेजा जाएगा। अमेरिका में इस समय बिना वैध दस्तावेज के क़रीब 725000 भारतीय हैं। ट्रंप के आदेशों ने इन भारतीयों की चिंता बढ़ा दी है।

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इस बीच अमेरिका से अवैध प्रवासियों को निकालने पर अड़े राष्ट्रपति ट्रंप के अभियान को हरी झंडी मिल गई है। दरअसल, अमेरिकी कांग्रेस ने रिपब्लिकन पार्टी के उस विधेयक को मंजूरी दे दी है जो बिना दस्तावेज वाले प्रवासियों को हिरासत में रखने और उनकी प्रशासनिक व्यवस्था करने की इजाजत देता है। इस विधेयक के पक्ष में 263 वोट और इसके खिलाफ 156 वोट पड़े। 46 डेमोक्रेट्स सांसदों ने भी इस विधेयक के पक्ष में मतदान किया। इसे ट्रंप की पहली जीत के रूप में देखा जा रहा है। इस विधेयक पर राष्ट्रपति ट्रंप हस्ताक्षर करेंगे। उनके हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक क़ानून बन जाएगा। 

ट्रंप प्रशासन के इस फ़ैसले से अमेरिका में रह रहे छात्रों की चिंता काफ़ी ज़्यादा बढ़ गई है। हालाँकि, छात्रों को इसकी पहले से ही आशंका थी। यही वजह है कि 20 जनवरी को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के शपथ ग्रहण से पहले के हफ्तों में अमेरिका में कुछ अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए कई भारतीय छात्र कॉलेज के घंटों के बाद काम करते थे, लेकिन डिपोर्टेशन यानी निर्वासन के डर से उन्होंने अपना काम छोड़ दिया है। 

अमेरिकी क़ानून F-1 वीजा पर अंतरराष्ट्रीय छात्रों को कैंपस में सप्ताह में 20 घंटे तक काम करने की अनुमति देता है। हालाँकि, कई छात्र अक्सर किराए, किराने का सामान और अन्य ख़र्चों को पूरा करने के लिए रेस्तरां, गैस स्टेशनों या खुदरा दुकानों पर ऑफ-कैंपस और बिना दस्तावेज के काम करते हैं। अब उनको डर है कि ट्रंप की नयी आव्रजन नीति और सख़्ती के बाद बिना दस्तावेज के काम करने पर कार्रवाई की जा सकती है और इस आधार पर उनको डिपोर्ट किया जा सकता है। 
डिपोर्ट किए जाने की स्थिति में छात्रों की पढ़ाई चौपट हो जाएगी और जो लाखों रुपये का कर्ज लेकर विश्वविद्यालयों में प्रवेश लिया है, उसे चुकाने में भी उनके सामने एक नई चुनौती सामने आ जाएगी।
अब जब नया प्रशासन आव्रजन नीतियों पर शिकंजा कसने और सख्त नियम लागू करने का संकेत दे रहा है, तो छात्र ये पार्ट टाइम नौकरियाँ छोड़ रहे हैं क्योंकि वे अपने भविष्य को खतरे में डालने के लिए तैयार नहीं हैं। टीओआई से बातचीत में कुछ छात्रों ने कहा कि हालांकि ऐसी नौकरियाँ अमेरिका में बने रहने के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वे अपने भविष्य को जोखिम में नहीं डाल सकते, खासकर तब जब उन्होंने अमेरिकी कॉलेज में सीट पाने के लिए भारी कर्ज लिया है।
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अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार इलिनोइस के एक विश्वविद्यालय में स्नातक के छात्र ने कहा, 'मैं अपने मासिक ख़र्चों को पूरा करने के लिए कॉलेज के बाद एक छोटे से कैफे में काम करता था। मैं प्रति घंटे 7 डॉलर कमाता था और हर दिन छह घंटे काम करता था। ...पिछले सप्ताह मैंने यह सुनकर नौकरी छोड़ दी कि इमिग्रेशन अफसर अनधिकृत काम पर कार्रवाई कर सकते हैं। मैं कोई जोखिम नहीं उठा सकता, खासकर यहां अध्ययन करने के लिए 50,000 डॉलर (लगभग 42.5 लाख रुपये) उधार लेने के बाद।' 

रिपोर्ट के अनुसार न्यूयॉर्क में मास्टर की एक छात्रा ने भी इसी तरह की चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, 'हमने कार्यस्थलों पर रैंडम रूप से जाँच के बारे में बात सुनी है। इसलिए, मैंने और मेरे दोस्तों ने फ़िलहाल काम बंद करने का फ़ैसला किया है। यह मुश्किल है, लेकिन हम निर्वासन या अपने छात्र वीजा को खोने का जोखिम नहीं उठाना चाहते। मेरे माता-पिता ने मुझे यहां भेजने के लिए पहले ही बहुत त्याग किया है।' हैदराबाद की यह छात्रा भी 8 डॉलर प्रति घंटे के हिसाब से एक रेस्त्रां में काम कर रही थी। छात्रों ने कहा कि वे कुछ महीनों के बाद स्थिति को परखेंगे और फिर तय करेंगे कि काम फिर से शुरू करना है या नहीं। 

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इस बीच, वे अपनी बचत पर निर्भर हैं या भारत में अपने दोस्तों और परिवार से उधार लेकर अपना खर्च चला रहे हैं। टेक्सास में कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई कर रहे एक छात्र ने कहा, 'मैंने अपनी अधिकांश बचत पहले ही खर्च कर दी है और अपने रूममेट से छोटी-छोटी रकम उधार लेना शुरू कर दिया है। मुझे नहीं पता कि मैं इस तरह कब तक चल पाऊंगा।' उन्होंने कहा कि वह मदद के लिए अपने माता-पिता की ओर रुख करने में असहज महसूस करते हैं क्योंकि वे पहले से ही बहुत परेशान हैं। 

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है।)

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