महामारी का ख़तरा उन लोगों के लिए भी उतना ही है, लेकिन जिस तरह से म्याँमार यानी बर्मा में सेना ने चुनी हुई सरकार को अपदस्थ कर सत्ता पर कब्जा किया है, जनता तमाम ख़तरों को नजरंदाज करते हुए सड़कों पर निकल आई है। जगह-जगह पर हुई गोलियों की बौछार के बावजूद ये लोग जिस तरह से डटे हुए हैं, वह सचमुच हैरत की बात है।

इस समय जब दिल्ली की सीमाओं पर कई महीनों से आंदोलनकारी किसान डटे हुए हैं बीजेपी नैतिक रूप से इस स्थिति में नहीं है कि बर्मा में तानाशाही के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन पर कुछ बोले। लेकिन अगर इस पर कांग्रेस पार्टी भी कुछ नहीं बोल रही तो सचमुच यह हैरत की बात ही है।
लेकिन इससे भी ज्यादा हैरत की बात वह चुप्पी है जो म्याँमार में सत्ता परिवर्तन और वहाँ हो रहे प्रदर्शनकारियों के दमन को लेकर भारत में दिखाई दे रही है।