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इमरान खान ने रावलपिंडी आकर रणनीति क्यों बदली

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष इमरान खान की रणनीति को समझना आसान नहीं है। शनिवार देर रात रावलपिंडी के जबरदस्त जलसे को खिताब करते हुए इमरान ने कहा कि जरूरत पड़ेगी तो उनकी पार्टी सभी राज्य विधानसभाओं से भी इस्तीफे दे देगी, जहां-जहां पीटीआई की सरकार है। दूसरी महत्वपूर्ण घोषणा इमरान ने की कि अब इस लंबे मार्च को इस्लामाबाद नहीं ले जाया जा रहा है, ताकि देश की राजधानी में कोई अफरातफरी नहीं मच सके। बताते चलें कि इमरान खान की पीटीआई की सरकार पंजाब, खैबर पख्तूनवा (केपी), पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान में है।
इमरान का भाषण काफी लंबा था। लेकिन भाषण के दौरान ये दोनों घोषणाएं महत्वपूर्ण थीं। लेकिन इमरान ने यह पैंतरा क्यों बदला और इसके पीछे की क्या वजहें रही होंगीं। हालांकि सत्तारूढ़ पार्टी ने मार्च के असफल होने पर हताशा में इमरान द्वारा की गई घोषणाएं बताया है। रावलपिंडी में शनिवार रात बड़ी सभा को संबोधित करते हुए, पूर्व पीएम ने घोषणा की कि उनकी पार्टी इस "वर्तमान भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था" का हिस्सा नहीं रहेगी, जहां अरबों रुपये के भ्रष्टाचार के आरोपी बिना सजा के बच जाते हैं। हालांकि, इमरान ने स्पष्ट किया कि वह इस मामले पर सभी राज्यों के अपने चीफ मिनिस्टरों के साथ चर्चा करेंगे और इस संबंध में अंतिम फैसला पीटीआई के संसदीय दल की बैठक के बाद किया जाएगा।

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पाकिस्तान के मशहूर डॉन अखबार ने इन दोनों सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की। उसने पाकिस्तान के तमाम राजनीतिक जानकारों और रणनीतिकारों से बात की।

डॉन ने आज रविवार को लिखा है कि इमरान देश के नए सेना प्रमुख को मौका देना चाहते हैं और राजनीतिक रूप से भी प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं। ये दोनों घोषणाएं यही बताती हैं। एक तरह से नरमी का रुख अपनाकर इमरान ने नए आर्मी चीफ को एक संकेत भेजा है। शनिवार रात रावलपिंडी में जनसभा के दौरान इमरान की 'आश्चर्यजनक' घोषणाओं के बाद डॉन से बात करने वाले कई कानूनी और राजनीतिक विशेषज्ञों द्वारा किए गए विश्लेषण का सार यही था।

डॉन ने जिन लोगों से बात की, उनमें से लगभग सभी एकमत थे। उनका कहना था कि रावलपिंडी सेना का मुख्यालय है। इसे गैरीसन टाउन भी कहा जाता है। हकीकत में इमरान खान और खतरा नहीं उठा सकते। उनके पास अब और कोई विकल्प नहीं बचा है। उनके पास अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं को बताने के लिए रावलपिंडी में कुछ नहीं था। इसलिए उन्होंने अपनी घोषणाओं से समर्थकों को चौंकाने और नए आर्मी चीफ को मौका देने का फैसला किया।
पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ लेजिस्लेटिव डेवलपमेंट एंड ट्रांसपेरेंसी (पिल्डैट) के अध्यक्ष अहमद बिलाल महबूब ने महीने भर चलने वाले 'हकीकी आजादी मार्च' पर टिप्पणी करते हुए कहा कि खान के पास इस तरह की घोषणा करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। लांग मार्च के आसपास बड़े पैमाने पर प्रचार किया गया और उसका अंत यहां आकर कर दिया गया। महबूब ने कहा, अगर इमरान को यही हैरानी वाला बयान देना था, तो पार्टी नेताओं के साथ सलाह के बाद बोलते। उनके पास इसके लिए काफी समय था। 
उन्होंने कहा कि पीटीआई अध्यक्ष ने स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा कि वो विधानसभाओं को भंग कर देंगे। सिर्फ इस्तीफे से वह मकसद पूरा नहीं होगा, जो वह चाहते हैं।

महबूब ने कहा कि अगर पीटीआई सदस्य केपी और पंजाब की राज्य विधानसभाओं से इस्तीफा देने का विकल्प चुनते हैं, तो वे सरकार या सेना को चुनावों के लिए मजबूर नहीं कर पाएंगे। वास्तव में, यह वैसे ही होगा जो केंद्र में हुआ था, जहां पीटीआई सांसदों द्वारा सामूहिक इस्तीफे के बावजूद एक केंद्र सरकार शहबाज शरीफ के नेतृत्व में काम कर रही है। इसका मतलब यह है कि पीटीआई सिर्फ यह धमकी देना चाहती है कि सत्ता के गलियारों में बोलने वाले कितनी गंभीरता से उसके साथ जुड़ना चाहते हैं।
महबूब से जब इस बात को और अधिक साफ करने के लिए कहा गया, तो उन्होंने कहा- 

पाकिस्तान आर्मी का प्रमुख नया शख्स आया है तो ऐसा लगता है कि इमरान अब उनके साथ गंभीरता से जुड़ना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने नए आर्मी चीफ को भी उन्हें समझने के लिए समय दे दिया है। इस्लामाबाद की तरफ अपने लांग मार्च को न ले जाकर एक तरह से नए सेना प्रमुख की चिन्ता को कम किया है।


-अहमद बिलाल महबूब, अध्यक्ष, पिल्डैट, 27 नवंबर को डॉन में

महबूब ने कहा कि इमरान जो संदेश भेजने की कोशिश कर रहे हैं वह कुछ ऐसा है: मुझे हल्के में मत लो। मैं एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति हूँ। यही असली संदेश है। 

एक 'विरोधाभास' पर रोशनी डालते हुए, पिल्डैट प्रमुख महबूब ने कहा कि इमरान ने घोषणा की है कि पीटीआई भ्रष्ट प्रणाली का हिस्सा नहीं बनना चाहता है। अगर ऐसा है, तो राष्ट्रपति भी उसी प्रणाली का एक हिस्सा है। क्या वह भी इस्तीफा देंगे? क्या पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान विधानसभाओं में पार्टी के सदस्य भी इस्तीफा देंगे। बता दें कि पाकिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति की नियुक्ति पीटीआई सरकार के समय हुई थी और वो इमरान खान की पसंद के राष्ट्रपति हैं।

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बहरहाल, इमरान खान रावलपिंडी से वापस तो लौट रहे हैं लेकिन करीब एक महीने बाद या सर्दियां कम होने के बाद वे अपना आंदोलन फिर शुरू करेंगे। क्योंकि उन्होंने आंदोलन अभी वापस नहीं लिया है। गोलियां लगने के बाद उनका घाव पूरी तरह भरा नहीं है। एक-दो महीना पूरी तरह आराम करने के बाद वो दोबारा से सक्रिय हो सकते हैं। विश्लेषक हालांकि अपना अंदाजा लगा रहे हैं लेकिन कहीं न कहीं इमरान की खराब सेहत और बढ़ती सर्दी से भी इस मार्च को रोकने का संबंध है। 
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क़मर वहीद नक़वी
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