प्रस्ताव में राष्ट्रपति ट्रंप पर तीन आरोप लगाए गए थे।
- ट्रंप ने चुनाव हारने के बावजूद बिना किसी आधार के भारी बहुमत के साथ जीत का दावा किया।
- उन्होंने जान-बूझ कर जन-भावना भड़काने वाले बयान दिए और लोगों को चुनावी नतीजों का अनुमोदन करने के लिए हो रहे संसद के संयुक्त अधिवेशन को भंग करने के लिए उकसाया।
- ट्रंप ने अपनी हार को जीत में बदलने के लिए चुनाव अधिकारियों को धमकाने जैसे हथकंडे अपनाए।
प्रतिनिधि सभा का महाभियोग प्रस्ताव बहस और अनुमोदन के लिए संसद के प्रवर सदन सीनेट के पास भेजा जाएगा। सौ सदस्यों वाली सीनेट में पहले महाभियोग के इस प्रस्ताव पर अदालती शैली में बहस होगी और उसके बाद में मतदान होगा। मतदान में यदि दो-तिहाई सीनेटरों ने महाभियोग प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया तो महाभियोग पारित हो जाएगा और राष्ट्रपति ट्रंप को सत्ता से हटा दिया जाएगा।
इतिहास में पहली घटना
अमेरिका के इतिहास में पहली बार किसी राष्ट्रपति पर दूसरी बार महाभियोग लगाया गया है। इससे पहले 24 सितंबर 2019 को राष्ट्रपति ट्रंप पर पहला महाभियोग लगाया गया था। उस महाभियोग का आरोप था कि ट्रंप ने यूक्रेन की सरकार पर अपने चुनावी प्रतिद्वंद्वी जो बाइडन के बेटे हंटर बाइडन के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार की जाँच बैठाने का दबाव डाला था ताकि उन्हें नवंबर 2020 के चुनाव में जो बाइडन के ख़िलाफ़ बढ़त हासिल हो सके।
सीनेट में उन दिनों ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत था। इसलिए सीनेट ने महाभियोग के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। पिछले चुनाव के बाद सीनेट में रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के पास बराबर-बराबर की सीटें हो गई हैं और निर्णायक वोट उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के पास है जो सीनेट की नई सभापति हैं और डेमोक्रेटिक पार्टी की हैं।
इसलिए महाभियोग की सुनवाई के लिए सीनेट का सत्र 19 जनवरी से पहले बुलाए जाने की संभावना तो है लेकिन नए राष्ट्रपति जो बाइडन इस बात को लेकर दुविधा में हैं। पहली समस्या तो यह है कि महाभियोग को पारित करने के लिए कम-से-कम 67 सीनेटरों की ज़रूरत होगी। जबकि डेमोक्रेटिक पार्टी के पास उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को मिलाकर भी कुल 51 सीनेटर ही हैं। 6 जनवरी के संसदीय हमले से नाराज़ होने के बावजूद रिपब्लिकन पार्टी के सीनेटरों में अभी इतनी हिम्मत नहीं है कि ट्रंप के ख़िलाफ़ महाभियोग में शामिल हो सकें।
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16 सीनेटरों की ज़रूरत
सीनेट में महाभियोग पारित करने के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी को रिपब्लिकन पार्टी के कम-से-कम 16 सीनेटरों की ज़रूरत होगी। अभी तक रिपब्लिकन पार्टी के मुट्ठी भर सीनेटरों ने ही सार्वजनिक रूप से ट्रंप के कारनामों की सार्वजनिक रूप से निंदा करने की हिम्मत दिखाई है। केवल तीन रिपब्लिकन सीनेटरों ने कहा है कि वे ट्रंप को हटाने के लिए महाभियोग के पक्ष में वोट देंगे। सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी के नेता मिच मैकोनल ने संसद पर हुए हमले की और ट्रंप के बयानों की निंदा ज़रूर की है लेकिन वे महाभियोग पारित करने में मदद करेंगे इसकी उम्मीद करना अति आशावाद होगा।
यदि राजनीतिक हवा पूरी तरह ट्रंप के ख़िलाफ़ हो जाए और रिपब्लिकन सीनेटर महाभियोग में साथ देने को तैयार भी हो जाएँ तब भी स्वयं जो बाइडन ही महाभियोग को लेकर दुविधा में नज़र आते हैं।
बाइडन के सामने मुश्किल
रिपब्लिकन सीनेटरों को डोनल्ड ट्रंप को सबक सिखाने से ज़्यादा अपनी सरकार चलाने और चुनावी वादों को पूरा करने की चिंता है जिन्हें वे लोगों को एकजुट किए बिना पूरा नहीं कर सकते। 20 जनवरी को शपथ ग्रहण करते ही जो बाइडन को सबसे पहले अपनी मंत्रिपरिषद और केंद्रीय एजेंसियों के उन लोगों का सीनेट से अनुमोदन कराना होगा जिनकी नियुक्ति पर उनकी नीतियों, योजनाओं और सरकार का भविष्य टिका है। उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की वजह से नई सीनेट में भले ही उनका हिसाबी बहुमत हो लेकिन आर्थिक और सामाजिक सुधारों के मामलों पर उन्हें बार-बार रिपब्लिकन सीनेटरों के समर्थन की ज़रूरत पड़ सकती है। इसलिए वे महाभियोग के चक्कर में रिपब्लिकन सीनेटरों से वह दुश्मनी मोल लेना नहीं चाहते जो आगे जाकर उनकी नीतियों और बिलों के रास्ते में रोड़ा बने।जो बाइडन के विपरीत उनकी पार्टी के सांसदों और सीनेटरों को दो साल के भीतर अगले संसदीय चुनाव नज़र आ रहे हैं। इसलिए वे अपने समर्थकों को ख़ुश रखने के लिए ट्रंप के ख़िलाफ़ नरमी बरतते दिखाई नहीं देना चाहते और हो सके तो ट्रंप को चुनावी रास्ते से पूरी तरह हटाना चाहते हैं ताकि अगले चुनाव आसानी से जीत सकें। इसके लिए ट्रंप पर महाभियोग चलाना और उसके बाद एक प्रस्ताव पारित कर उन्हें राजनीति से प्रतिबंधित करना ज़रूरी हो जाता है।
इस प्रकार से जो बाइडन और उनकी सरकार और डेमोक्रेटिक संसदीय पार्टी दो अलग-अलग उद्देश्यों से काम कर रहे हैं। इस दुविधा का फ़ायदा उठा कर ट्रंप महाभियोग और उसके बाद लगने वाली राजनीतिक गतिविधियों की रोक, दोनों से बच सकते हैं। ट्रंप को लेकर जो बाइडन और उनकी पार्टी से कहीं बड़ी दुविधा ट्रंप की अपनी रिपब्लिकन पार्टी की है।
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रिपब्लिकन सीनेटरों की परेशानी
रिपब्लिकन पार्टी ट्रंप द्वारा जुटाए गए साढ़े सात करोड़ मतदाताओं के रिकॉर्ड तोड़ जनाधार को भी हाथ से नहीं जाने देना चाहती और ट्रंप को रास्ते से हटाना भी चाहती है। सबसे ज़्यादा परेशानी उन सांसदों और सीनेटरों को है जिनके चुनाव क्षेत्रों में डेमोक्रेटिक पार्टी का जनाधार मज़बूत है। उन्हें डर है कि यदि उन्हें संसद पर हमला कराने वाले ट्रंप के हिमायती के रूप में देखा गया तो वे जनता के रोष का निशाना बन सकते हैं और उनका राजनीतिक भविष्य खटाई में पड़ सकता है।
इसके बरक्स जिन सांसदों और सीनेटरों के चुनाव क्षेत्रों में डेमोक्रेटिक पार्टी कमज़ोर है और ट्रंपवादियों की संख्या अधिक है वे ट्रंप के ख़िलाफ़ महाभियोग में शामिल होकर अपना भविष्य दाँव पर नहीं लगाना चाहते। संसद पर हुए हमले के बाद के एक जनमत सर्वेक्षण से पता चला है कि रिपब्लिकन पार्टी के लगभग एक चौथाई समर्थक संसदीय हमले के लिए ट्रंप को सीधे तौर पर दोषी मानते हैं जबकि आधे से ज़्यादा मानते हैं कि दंगे भड़काने में उनका सीधा हाथ नहीं है। इनके अलावा करोड़ों लोग अभी भी ट्रंप को एक डेमोक्रेटिक पार्टी की साज़िश का शिकार मानते हैं और मानते हैं कि चुनाव में उन्हीं की जीत हुई है।
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ट्रंप की एक और चाल
ऐसे ही लोगों को उकसाने और अपने पक्ष में बनाए रखने के लिए ट्रंप ने महाभियोग के प्रयासों को एक बार फिर इतिहास का सबसे बड़ा विच-हंट बताना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि महाभियोग के इस प्रस्ताव से लोगों में रोष उमड़ रहा है जो कि अमेरिका के लिए बुरा है। इन्हीं ट्रंपवादियों में क्यूएनॉन और प्राउड ब्वॉएज जैसे अतिदक्षिणपंथी उग्रवादी संगठन भी शामिल हैं जो मानते हैं कि डोनल्ड ट्रंप डेमोक्रेटिक पार्टी, हॉलीवुड और वॉल स्ट्रीट के एक ऐसे तंत्र के शिकार हैं जो सत्ता पर गहरी जड़ें जमाए बैठा है, शैतान की पूजा करता है और बच्चों का यौन शोषण करने वाले गिरोह चलाता है।
ऐसे ही संगठनों के उग्रवादी 6 जनवरी को राजधानी में जमा हुए थे और डोनल्ड ट्रंप और उनके रिपब्लिकन समर्थकों के उकसावे पर संसद पर जा चढ़े। एफ़बीआई और सुरक्षा एजेंसियों ने लगभग 150 उग्रवादियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू कर दी है और 70 से अधिक लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया है जिनके ख़िलाफ़ राजद्रोह से लेकर हिंसा और दंगे के मामले तैयार किए जा रहे हैं।
ख़ुफ़िया एजेंसियों को पता चला है कि दंगाइयों में सेना के कुछ सेवानिवृत्त अधिकारी भी शामिल थे जिनके पास अत्याधुनिक हथियार, प्रशिक्षण और गोला-बारूद था।
ख़ुफ़िया एजेंसियों और सुरक्षा बलों को ऐसी सूचनाएँ भी मिल रही हैं कि 20 जनवरी को नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण के दिन देश के 50 राज्यों की राजधानियों और बड़े शहरों में व्यापक स्तर पर दंगे फैलाने की योजनाएँ बनाई जा रही हैं।
इनकी रोकथाम के लिए राजधानी वाशिंगटन डीसी समेत सारे राज्यों की राजधानियों में व्यापक सुरक्षा बन्दोबस्त किए जा रहे हैं। उत्तरी राज्य मिशिगन में विशेष सुरक्षा प्रबंध किए जा रहे हैं क्योंकि यहाँ पिछले अक्तूबर में राज्य की गवर्नर को बंधक बनाने का षडयंत्र विफल किया जा चुका है।
20 जनवरी को शपथ लेकर सत्ता में आ रही बाइडन-हैरिस सरकार की सबसे बड़ी चुनौती झूठ और ज़हर पर आधारित ट्रंप की राजनीति को नाकाम करने के साथ-साथ उन करोड़ों ट्रंप समर्थकों की आँखें खोलना और उन्हें राजनीतिक मुख्यधारा में लाने की कोशिश करना है जो बरसों के सोशल और दक्षिणपंथी मीडिया के मिथ्या प्रचार के फलस्वरूप पूरी तरह दिग्भ्रमित हो चुके हैं और अपनी आँखें खोलने को तैयार ही नहीं हैं।
ट्रंप के ख़िलाफ़ नाराज़गी
जहाँ तक ट्रंप की बात है तो लगता है कि संसद पर हुए हमले ने ज़्यादातर लोगों की आँखें खोल दी हैं। हमले के बाद से समझदार नेताओं से लेकर, कारोबारियों, खेल अधिकारियों और मीडिया संस्थानों ने ट्रंप और उनकी संस्थाओं से नाता तोड़ना शुरू कर दिया है। अमेरिका का न्याय विभाग भी उनके ख़िलाफ़ दंगे भड़काने का आपराधिक मुक़दमा और संसद को नुकसान पहुँचाने का दीवानी मुकदमा चलाने की सोच रहा है। हो सकता है इन सारी कोशिशों से मिथ्या प्रचार से फूले उनके प्रभाव के उस गुब्बारे की हवा स्वयं ही निकल जाए जिसने अमेरिका और पूरी दुनिया की नींद हराम कर रखी थी।
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