आतंकवादियों को मिलने वाले फ़ंड को रोकने में पाकिस्तान आख़िरी मौक़ा भी चूक गया है। अब इसके ब्लैक लिस्टेड होने यानी काली सूची में डाले जाने का ख़तरा और बढ़ गया है। यह काली सूची अंतरराष्ट्रीय संगठन फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स यानी एफ़एटीएफ़ बनाती है। एफ़एटीएफ़ ने इसके लिए पाकिस्तान को छह महीने का समय दिया था और तब यह ग्रे सूची में था। अब एफ़एटीएफ़ की अगले हफ़्ते ही बैठक है और इससे पहले इसने रिपोर्ट जारी की है। इस ताज़ा रिपोर्ट में पाकिस्तान को आतंकियों को मिलने वाली फ़ंडिंग को रोकने में अपर्याप्त क़दम उठाने की बात कही गई है। इस रिपोर्ट के बाद अब पाकिस्तान को काली सूची में डाले जाने का मतलब होगा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक सहायता का मिलना काफ़ी मुश्किल हो जाएगा। पहले से ही गहरे आर्थिक संकट में फँसे पाकिस्तान के लिए यह बुरे सपने जैसा होगा।
यह रिपोर्ट एफ़एटीएफ़ के एशिया सहयोगी, एशिया-पैसिफ़िक ग्रुप यानी एपीजी ने जारी की है। इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान ने सभी सूचीबद्ध व्यक्तियों और संस्थाओं विशेष रूप से हाफ़िज़ सईद द्वारा स्थापित आतंकी समूहों लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1267 की कार्रवाई को पूरी तरह से लागू करने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं किए हैं।
एपीजी की रिपोर्ट ने पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक और इसके बाजार नियामक को भी इसलिए खिंचाई की है कि उन्हें आतंक के वित्तपोषण की स्पष्ट समझ नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान के सामने वैध और अवैध दोनों स्रोतों से आतंक को फ़ंडिंग की चुनौती है।
रिपोर्ट के अनुसार, इसके सामने कुछ सेक्टरों में नियामक और पर्यवेक्षण कमज़ोर एक बड़ी चुनौती है।
पाकिस्तान को परेशान करने वाली यह रिपोर्ट 13 से 18 अक्टूबर के बीच एफ़एटीएफ़ की बैठक से पहले आई है। पाकिस्तान पहले से ही आतंकवादियों को फ़ंडिंग को रोकने में विफल रहने के कारण ग्रे सूची में है। ग्रे सूची का मतलब है कि उसे चेतावनी दे कर छोड़ दिया गया था और अपनी स्थिति सुधारने और बेहतर कामकाज करने के लिए समय दिया गया था। और अब इसके काली सूची में डाले जाने का ख़तरा है।
चीन अड़ंगा तो नहीं डालेगा?
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय आतंकवाद रोधी अधिकारियों का कहना है कि नई दिल्ली ने एफ़एटीएफ़ से यह उम्मीद नहीं की है कि एशिया-प्रशांत समूह की इस रिपोर्ट के निष्कर्षों के बावजूद, पाकिस्तान को ब्लैक लिस्टेड किया जाएगा। इस वर्ष एफ़एटीएफ़ अध्यक्ष की कुर्सी बीजिंग के चीनी बैंकर जियांगमिन लियू के पास है। उनके द्वारा पाकिस्तान के हितों की रक्षा के लिए अपनी ताक़त के इस्तेमाल किए जाने की संभावना है। इसके अलावा कश्मीर पर पाकिस्तान का समर्थन करने वाले तुर्की और मलेशिया भी एफ़एटीएफ़ की बैठक में पाकिस्तान की मदद कर सकते हैं। पिछली बार भी जब पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाला जा रहा था तब चीन और तुर्की ने इसका विरोध किया था। लेकिन बाद में चीन ने अपना विरोध वापस ले लिया था।
इमरान की चिंता
यही वह डर है जिससे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान चिंतित हैं। उनकी यह चिंता पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र की महासभा में भी दिखी थी। संयुक्त राष्ट्र महासभा में उन्होंने शिकायत की थी कि भारत पाकिस्तान को एफ़एटीएफ़ में ब्लैकलिस्ट करने में जुटा हुआ है जिससे उसके देश पर प्रतिबंध लग जाएगा।
इमरान ख़ान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में यह भी आरोप लगाया था कि भारत हमें आर्थिक रूप से दिवालिया करने की कोशिश कर रहा है।
यदि पाकिस्तान को काली सूची में डाल दिया गया तो विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज़ या किसी दूसरे तरह की कोई मदद पाकिस्तान को बिल्कुल नहीं मिल सकेगी। इसके अलावा मूडीज़ और स्टैंडर्ड एंड पूअर जैसी रेटिंग एजेन्सियाँ भी इसकी 'सॉवरन रेटिंग' कम कर देंगी, यानी पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को ऐसी जगह बताएगी, जहाँ निवेश सुरक्षित नहीं होगा। ऐसे में कोई पाकिस्तान में निवेश भी नहीं करेगा।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ख़राब
फ़िलहाल पाकिस्तानी की अर्थव्यवस्था ख़राब हालत में है। बड़ी मुश्किल से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष 6 अरब डॉलर के क़र्ज़ पर राजी हुआ है। पाकिस्तान पर इतना क़र्ज़ है कि उसके बजट का बड़ा हिस्सा यानी 42 फ़ीसदी तो क़र्ज़ का ब्याज चुकाने में ख़र्च हो जाता है। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार भी घटकर 8.8 अरब डॉलर पर पहुँच गया है। केंद्रीय बैंक ने चेतावनी दी है अगर बढ़ती महँगाई को नहीं रोका गया तो देश के आर्थिक हालात क़ाबू से बाहर हो जाएँगे।
एशियन डेवलपमेंट बैंक ने कहा है कि वित्त वर्ष 2019-20 में पाकिस्तान की जीडीपी विकास दर 2.8 फ़ीसदी रह सकती है। पाकिस्तान में जुलाई-अप्रैल 2019 में विदेशी निवेश 51% से ज़्यादा गिर चुका है। वित्तीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है और यह देश की कुल जीडीपी के 7.1% तक पहुँच चुका है।
ब्लैक लिस्ट किया जाना पाकिस्तान के लिए बेहद ख़तरनाक स्थिति होगी और उसके बाद दिवालियापन की नौबत ही आएगी।
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