फ़्रांस में पिछले दिनों जो कुछ हुआ उसने हमें अपने पास- पड़ोस के स्वरों से यह सुनिश्चित करवा दिया कि हम लगातार और बुरी तरह से रेजीमेंटेड होते चले जा रहे हैं। भारत में ग़ैर- मुसलिम समाज का बहुमत जहाँ इन घटनाओं की आलोचना में फ़्रांस के साथ खड़ा होने की जल्दी में था, वहीं मुसलिम समाज का बहुमत फ़्रांस की लानत- मलामत में और किंतु- परंतु के साथ बर्बर हत्यारों की निंदा करने की जगह बात बदलने में।