कोरोना वायरस पर आख़िरकार डोनाल्ड ट्रंप की सारी हेकड़ी निकल गई। शायद अब उन्हें कोरोना का खौफ़ समझ आ गया। वह अपने पहले के बयानों से पीछे हट गए हैं। कुछ दिन पहले तक कोरोना वायरस के ऊपर अर्थव्यवस्था को तरजीह देने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति अब लोगों की जान बचाने को प्राथमिकता दे रहे हैं। अब वह कह रहे हैं कि अर्थव्यवस्था बाद में पहले कोरोना से निपटेंगे। जो पहले कह रहे थे कि ईस्टर यानी 12 अप्रैल तक लोगों के बाहर निकलने पर पाबंदी हटाई जाएगी वह अब कह रहे हैं कि इस पाबंदी को आगे बढ़ाया जाएगा। आख़िर यह बदलाव उनमें कैसे आया? कैसे उनकी अकल ठिकाने आ गई?
दरअसल, अमेरिका उस मुहाने पर खड़ा है जहाँ लाखों की ज़िंदगियाँ ख़तरे में है। यह ख़तरा कोरोना वायरस को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के रवैये के कारण ज़्यादा है। जब पूरी दुनिया खौफ़ में थी, इटली, स्पने जैसे देशों में कोरोना पीड़ितों की लाशें बिछ रही थीं और ख़ुद अमेरिका में तेज़ी से मामले बढ़ रहे थे तो ट्रंप अजीब-अजीब दलीलें दे रहे थे। 23 मार्च को एक प्रेस वार्ता में ट्रंप कह रहे थे कि हमारा देश बंद होने के लिए थोड़े ही बना है। ट्रंप का कहना था कि कोरोना से जितने लोग मरेंगे उससे अधिक लोग अर्थव्यवस्था चौपट होने से मरेंगे। लिहाज़ा कोरोना से राष्ट्रव्यापी बंदी कोई समाधान नहीं है। और इसी आधार पर वह कह रहे थे कि ईस्टर के पहले यानी 12 अप्रैल तक अमेरिका में आवाजाही पर जो आंशिक रोक लगी है उसे हटाया जा सकता है।
तब ट्रंप कह रहे थे कि कोरोना एक सामान्य फ्लू यानी सर्दी-जुकाम की तरह ही है जो 'चमत्कारिक ढंग से' ग़ायब हो जाएगा। अमेरिका जैसे देश के राष्ट्रपति यदि कोरोना जैसे वायरस पर ऐसा नज़रिया रखेंगे तो स्थिति कितनी बुरी हो सकती है इसका अंदाज़ा भर लगाया जा सकता है। कोरोना वायरस यदि सामान्य फ्लू होता तो इतनी मौतें कैसे होतीं, यह आम आदमी भी समझ सकता है। दूसरी बड़ी बात यह है कि इस वायरस का अभी तक इलाज भी नहीं ढूँढा जा सका है।
उनके ऐसे बयान तब आ रहे थे जब 15 मार्च तक एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया था कि अमेरिका में 16 करोड़ से लेकर 21.4 करोड़ लोग संक्रमित हो सकते हैं। इस अध्ययन में यह भी पाया गया है कि दो लाख से 17 लाख लोग कोरोना संक्रमण से मर सकते हैं। अमेरिका के सेंटर्स फ़ॉर डिजीज़ कंट्रोल एंड प्रीवेन्शन (सीडीसी) ने दुनिया के कई विश्वविद्यालयों में अध्ययन करने और विशेषज्ञों की मदद लेने के बाद यह अनुमान लगाया है। यह वही समय था जब 24 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने अमेरिका में कोरोना वायरस के तेज़ी से फैलने पर चेताया था कि यूरोप के बाद अब कोरोना महामारी का केंद्र अमेरिका हो सकता है।
इतनी ख़राब स्थिति होने के बावजूद ट्र्ंप का रवैया नहीं बदल रहा था। लेकिन अब बदला है। इसके दो कारण हो सकते हैं।
- अब वायरस काफ़ी तेज़ी से फैला है और यह नियंत्रण से बाहर होता दिख रहा है।
- ट्रंप को वोट बैंक की चिंता है। अब राजनीतिक मजबूरी में वह रणनीति बदल रहे हैं।
अमेरिका में स्थिति काफ़ी ज़्यादा ख़राब हो गई है। अब सबसे ज़्यादा कोरोना पॉजिटिव केस अमेरिका में हैं। 1 लाख 64 हज़ार से भी ज़्यादा। तीन हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौतें हो गई हैं। संक्रमित लोगों की संख्या के मामले में इटली, स्पेन, चीन, जर्मनी और फ्रांस जैसे देश काफ़ी पीछे छूट गए हैं।
ट्रंप के रवैये में बदलाव का एक बड़ा कारण यह भी माना जा रहा है कि हाल में जो सर्वे आए हैं उसमें अधिकतर लोगों ने कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन यानी पाबंदी लगाए जाने का समर्थन किया है। 2016 में ट्रंप के कैंपेन के दौरान पोल करने वाले जॉन और जिम मैकलॉलिन के सर्वे में पाया गया है कि 52 फ़ीसदी लोग पूरे देश में पूरी तरह लॉकडाउन के पक्षधर हैं। 38 फ़ीसदी लोग जाँच किए जाने और पॉजिटिव लोगों को अलग-थलग रखे जाने के पक्षधर हैं।
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