इमरान खान को गिरफ्तार कर लिया गया है और पाकिस्तान के हालात बदतर हो गए हैं। पाकिस्तान तहरीके इंसाफ यानी पीटीआई और स्टेट (सरकार) के बीच ताजा दुश्मनी का मतलब है कि पहले से ही चल रहे राजनीतिक गतिरोध में बातचीत की सफलता की किसी भी उम्मीद को खत्म कर दिया गया है। आंतरिक मंत्री राणा सनाउल्लाह ने कहा है कि इमरान खान को रिएल्टी टाइकून मलिक रियाज द्वारा कथित भूमि लेनदेन से जुड़े भ्रष्टाचार की जांच के दौरान उठाया गया है।
हालाँकि, हाल के घटनाक्रम - विशेष रूप से, इमरान खान का सेना के साथ ताजा टकराव - यह बताते हैं कि उन्हें पूरी तरह से अलग वजहों से उठाया गया है। यह तथ्य कि इस्लामाबाद हाईकोर्ट के परिसर से उन्हें पकड़ने के लिए पंजाब रेंजर्स को भेजा गया था, न कि इस्लामाबाद पुलिस को। एक गलत बयानी है।
मंगलवार को इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद भड़के विरोध प्रदर्शनों की प्रकृति यह इशारा कर रही है कि जनता का गुस्सा सेना पर भी है। विभिन्न विरोध प्रदर्शनों में रिकॉर्ड किए गए वीडियो फुटेज बता रहे हैं कि लोग काफी गुस्से में थे। इससे पहले किसी की हिम्मत सेना के दफ्तर में जाकर तोड़फोड़ करने की नहीं हुई थी। इस बार पाकिस्तान की जनता ने उस रेड लाइन को क्रॉस (पार) कर लिया है।
पिछले 13 महीनों की घटनाओं में सेना का अतीत देखा जा सकता है। विशेष रूप से राजनीतिक दखल के संबंध में। पाकिस्तान के अभूतपूर्व संकट के बीच सेना तेजी से पकड़ बना रही है। द डॉन यह कहना चाहता है कि इमरान खान को सत्ता से हटाने में सेना की भूमिका और उसके बाद भ्रष्ट माध्यमों से शहबाज शरीफ की सरकार को बनने में हर जगह उसका दखल रहा है।
इमरान खान ने जब हाल ही में एक बार फिर एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी पर उनकी हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया, तो वो अच्छी तरह से जानते थे कि वह वास्तव में वर्तमान सैन्य नेतृत्व पर सीधे उंगली उठा रहे हैं।
हालाँकि, मिस्टर खान को मौजूदा परिदृश्य से हटाने से कुछ हल नहीं होगा। इसके बजाय, जैसा कि कल के विरोध प्रदर्शनों ने दिखाया है, उन्हें गिरफ्तार करने से आम लोगों और देश की सेना के बीच एक गहरी दरार आ गई है।
इमरान खान की गिरफ्तारी ने जनता को उकसा दिया है। सरकार और सेना को विवाद में डाल दिया है। यह घटनाक्रम उनकी नीतियों में और भी अधिक सार्वजनिक अविश्वास पैदा करेगा। देश एक पूर्ण डिफ़ॉल्ट के कगार पर है।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वर्तमान सैन्य नेतृत्व चाहता है कि जनता राजनीतिक इंजीनियरिंग में अपनी भूमिका को भूल जाए। सेना उन धारणाओं को दूर नहीं कर सकती है जो महीनों और वर्षों से पाकिस्तानी अवाम के दिलोदिमाग में जम गई है। अगर सरकार अवाम के साथ फिर से विश्वास कायम करना चाहती है, तो उसे भी गंभीर उपाय करने की जरूरत है। कब तक चुनाव टाले जाते रहेंगे और जनता चुप रहेगी। यह टकराव लोगों और राज्य के बीच और भी अधिक खटास पैदा करेगा।
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