दुनिया भर में कोरोना पॉजिटिव लोगों की संख्या एक मिलियन यानी 10 लाख पार कर गई है। इसमें से अकेले अमेरिका में ही ढाई लाख लोग हैं। इटली, स्पेन, जर्मनी, फ़्रांस, इंग्लैंड जैसे विकसित देशों में क़रीब छह लाख लोग संक्रमित हैं। चीन में 81 हज़ार लोग। बाक़ी संक्रमित मामले दुनिया के दूसरे देशों में हैं। दुनिया भर में 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत भी हो चुकी है। तो सवाल है कि एक शहर से यह पूरी दुनिया में आख़िर कैसे पहुँच गया?
दिसंबर महीने में चीन के एक वुहान शहर में पहला मामला सामने आया था। एक देश के सिर्फ़ एक शहर में और वह भी एक व्यक्ति में। तब शायद ही किसी ने यह सोचा था कि एक से बढ़कर यह एक मिलियन तक भी पहुँच जाएगा। और पता नहीं, यह वायरस अभी और कितने मिलियन लोगों को अपनी चपेट में लेगा। जब एक पॉजिटिव केस आया था और डॉक्टर ने इस वायरस के बारे में चेताया था तब कुछ लोगों ने इसे मजाक़ में लिया था। वह डॉक्टर वुहान सेंट्रल अस्पताल में ली वेनलियांग थे जिन्होंने सबसे पहले इस वायरस के बारे में बताया था। सरकार ने तो उस डॉक्टर को प्रताड़ित तक किया था। यही वह मानसिकता या रवैया था जिससे यह वायरस एक से दूसरे में फैलता रहा। सरकार नहीं चेती। और जब तक सरकार को समझ आता तब तक इसने पूरे वुहान शहर को अपनी चपेट में ले चुका था और चीन के दूसरे शहरों तक यह फैल चुका था।
वायरस के प्रति यही रवैया दूसरे कई और देशों का रहा। इस वायरस को हलके में लिया जाता रहा। हालाँकि दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने इसको काफ़ी गंभीरता से लिया और उसने स्थिति संभाल ली। जब जनवरी के आख़िर में दक्षिण कोरिया में पहला मामला आया तो इसने ज़बरदस्त तैयारी शुरू कर दी। कोरोना की जाँच करने, सोशल डिस्टेंसिंग और संदिग्ध मरीजों को भी अलग-थलग रखने पर ज़ोर शोर से काम किया। यही कारण है कि वहाँ अब तक सिर्फ़ 10 हज़ार लोग प्रभावित हुए हैं और 174 लोगों की मौत हुई है। शुरुआत में चीन के बाद दक्षिण कोरिया ही सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ था।
लेकिन जिन देशों ने इससे सबक़ नहीं लिया वे चीन से हज़ारों किलोमीटर दूर होते हुए भी बड़ी त्रासदी को झेल रहे हैं। अमेरिका, इटली, स्पेन जर्मनी, फ़्रांस जैसे देश इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। अमेरिका दुनिया में कोरोना से सबसे ज़्यादा प्रभावित देश है। यहाँ क़रीब ढाई लाख लोग इस वायरस से संक्रमित हैं। यहाँ पिछले एक हफ़्ते में काफ़ी तेज़ी से मामले आए हैं। इसके लिए ट्रंप प्रशासन पर सवाल उठते रहे हैं। सवाल इसलिए कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रवैया इस मामले में ठीक नहीं रहा था। पहले वह कह रहे थे कि कोरोना से जितने लोग मरेंगे उससे अधिक लोग अर्थव्यवस्था चौपट होने से मरेंगे।
डोनाल्ड ट्रंप ने तो यहाँ तक कहा था कि कोरोना एक सामान्य फ्लू यानी सर्दी-जुकाम की तरह ही है जो 'चमत्कारिक ढंग से' ग़ायब हो जाएगा। हालाँकि अब मामला बढ़ने के बाद वह बदले हैं और अब कोरोना से निपटने पर ज़ोर दे रहे हैं।
इटली: 'किसे बचाएँ, किसे नहीं' की नौबत
इटली में भी कोरोना से लड़ने के प्रति रवैया काफ़ी लचर रहा। यह विश्व में दूसरे स्थान पर है और यहाँ एक लाख 15 हज़ार से ज़्यादा पॉजिटिव केस हैं। अब तक सबसे ज़्यादा क़रीब 14 हज़ार लोगों की यहाँ मौत हो चुकी है। तो दुनिया के सबसे बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाओं वाले इस देश में आख़िर ऐसी स्थिति क्यों आ गई कि डॉक्टरों को यह चुनना पड़े कि किसको बचाने का प्रयास किया जाए? दरअसल, ऐसी स्थिति इसलिए आई कि इटली में स्थिति जब काफ़ी बिगड़ गई तो सरकार जागी। स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया गया। कई तरह की पाबंदियाँ लगाई गईं। हॉस्पिटलों को हाई अलर्ट पर रखा गया। सरकारी लापरवाही के साथ ही ऐसी भी रिपोर्टें आईं कि वायरस के फैलने के बावजूद बड़ी संख्या में लोगों ने लापरवाही बरती। वे पार्टी करते रहे, पब और रेस्त्राँ में समूहों में जाते रहे और एक-दूसरे से मिलते रहे।
स्पेन में कौन ज़िम्मेदार?
स्पेन तीसरा ऐसा देश हो गया है जहाँ एक लाख से ज़्यादा कोरोना के पॉजिटिव केस हो गए हैं। स्पेन में जहाँ 4 मार्च को सिर्फ़ 185 पॉजिटिव केस थे वहाँ अब एक लाख 12 हज़ार से भी ज़्यादा मामले आ चुके हैं। अब तक 10 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई है। यह स्थिति इसलिए आई कि इस वायरस को वहाँ के नेताओं ने इसे हल्के में लिया। मार्च की शुरुआत में यानी 8 मार्च तक स्पेन में जहाँ सिर्फ़ 625 मामले सामने आए थे तब वहाँ कई बड़े-बड़े सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मैड्रिड में रैली निकाली गई और इसमें क़रीब 1 लाख 20 हज़ार लोग शामिल हुए थे। मैड्रिड में ही शहर के सबसे बड़े स्टेडियम में क़रीब 60 हज़ार फ़ुटबॉल प्रेमी जुटे थे। स्पेन की तीसरी सबसे बड़ी और घोर दक्षिणपंथी राजनीतिक पार्टी वोक्स के क़रीब 9000 लोगों की एक बैठक हुई थी। प्रधानमंत्री पेड्रो सान्चेज़ ने शुरुआत में सामूहिक समारोहों को होने देने के निर्णय का बचाव किया था।
हालाँकि जब स्थिति बिगड़ने लगी तो बाद में उन्होंने चेतावनी दी कि स्पेन "बहुत कठिन सप्ताह से गुज़र रहा है।" तब उनके मंत्रिमंडल के दो मंत्रियों में भी कोरोना वायरस की पुष्टि हुई थी।
जर्मनी चौथे स्थान पर
जर्मनी, फ़्रांस, इंग्लैंड जैसे देशों में भी यही स्थिति रही। जर्मनी अब सबसे ज़्यादा पॉजिटिव केस के मामले में चौथे स्थान पर आ गया है। चीन से भी ऊपर। जर्मनी में 84 हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आए हैं। फ़्रांस में भी 59 हज़ार से ज़्यादा मामले आ चुके हैं। इन देशों के बारे में भी रिपोर्टों में कहा गया है कि वायरस को रोकने के लिए क़दम उठाने में देरी की गई।
अब यह वायरस लगातार फैलता जा रहा है। अब तक 204 देशों में कोरोना पॉजिटिव के मामले आ चुके हैं। चीन और दक्षिण कोरिया ने इस वायरस के फैलने पर काबू पाया है, लेकिन दूसरे देशों में हर रोज़ यह ज़्यादा तेज़ी से फैलता जा रहा है। भारत भी इनमें से एक है। देश में अब तक क़रीब 2500 से मामले आ चुके हैं और कम से कम 56 लोगों की मौत हो चुकी है।
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