चीनी राष्ट्रपति यदि अगले 15 सालों तक सत्ता में बने रहे तो चीन की अतिराष्ट्रवादी और विस्तारवादी नीतियों में और आक्रामकता देखने के लिये विश्व समुदाय को तैयार रहना होगा। राष्ट्रपति शी का और ताक़तवर होते जाना भारत के लिये भी चिंताजनक साबित होगा।
रंजीत कुमार
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी की चार दिनों तक चले सालाना अधिवेशन के बाद 29 अक्टूबर को जो नतीजे घोषित किये गए हैं उससे साफ हुआ है कि चीन की सत्ता पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पकड़ मजबूत बनी हुई है। वह पिछले आठ सालों से चीन पर शासन कर रहे हैं।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी
ताज़ा अधिवेशन को जिस शांत तरीके से उन्होंने संचालित करवाया, उससे यह भी साफ हुआ है कि कम से कम अगले 15 सालों यानी 2035 तक सत्ता पर विराजमान रहने की अपनी रणनीति पर शी ने कोई आँच नहीं आने दी है।
इस अधिवेशन के दौरान चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अगले डेढ दशक तक का विज़न-2035 जारी किया है, जिससे पता चलता है कि एक राष्ट्र के तौर पर चीनी नेता दुनिया में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका को किस तरह आगे बढ़ाने का संकल्प ले कर चलते हैं।
विज़न 2035
इस अधिवेशन के दौरान 2021- 25 के लिये 14वीं पंचवर्षीय योजना को मंजूरी दी गई है, जिसमें कहा गया है कि 2035 तक चीन को दुनिया का तकनीकी नेता बना देंगे। चीनी नेताओं का लक्ष्य है कि 2035 तक चीन को तकनीक के क्षेत्रों में अग्रणी राष्ट्र बनाएंगे और 2049 तक दुनिया का सबसे विकसित देश बन जाएगा।
ऐसे समय में जब महामारी से त्रस्त दुनिया के कई देश चीन को सबक सिखाने के लिये उससे आयात को सीमित करने का संकल्प ले रहे हैं, 14वीं पंचवर्षीय योजना के ज़रिये चीन निर्यात पर अर्थव्यवस्था की निर्भरता कम करने और घरेलू माँग बढ़ाने की रणनीति काम कर रहा है।
विज़न-2035 में कहा गया है कि 15 साल के भीतर चीन की प्रति व्यक्ति आय मौजूदा सालाना 10,261 डॉलर से बढ़ा कर 30 हज़ार डॉलर कर दी जाएगी। फिलहाल इटली और स्पेन की सालाना प्रति व्यक्ति आय इतनी ही है।
आजीवन सत्ता
आम चीनी जनता को उनका जीवन स्तर यूरोपीय देशों तक पहुँचा देने का सपना दिखाकर राष्ट्रपति शी अपना शासन काल आजीवन बनाने के लिये माओ त्से तुंग के कदमों पर चल रहे हैं। चीन पर आजीवन राज करने के लिये ही उन्होंने संविधान में दो साल पहले बदलाव कर यह तय कर दिया कि कोई नेता दो बार से अधिक राष्ट्रपति रह सकता है।
राष्ट्रपति शी 2012 के अंत में चीन की सत्ता पर विराजमान हुए थे और आजीवन पद पर रहने के लिये शी ने भ्रष्टाचार उन्मूलन के नाम पर उन राजनीतिक नेताओं और सैन्य जनरलों का सफाया करना शुरू कर दिया था, जो उनके लिये राजनीतिक चुनौती पैदा कर सकते थे।
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राष्ट्रवादी नीतियाँ
इसके साथ ही राष्ट्रपति शी ने चीनी जनता के बीच अपने को लोकप्रिय बनाने के लिये अतिराष्ट्रवादी नीतियाँ भी लागू करनी शुरू की, जिससे न केवल चीन के पड़ोसी इलाक़े बल्कि पूरी दुनिया में तनाव और चिंता पैदा हुई है।
राष्ट्रपति शी की महत्वाकांक्षी विस्तारवादी नीतियों की वजह से दक्षिण चीन सागर, ताइवान जलडमरूमध्य और हांगकांग का इलाक़ा तनावग्रस्त हुआ है। भारत- चीन सीमा के पूर्वी लद्दाख सीमांत इलाकों पर चीनी सेना ने अतिक्रमण किया।
दक्षिण चीन सागर
हांगकांग पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पकड़ मजबूत करने के लिये हांगकांग के लोगों के अधिकारों में कटौती करनी शुरू की। वहीं ताइवान के स्वतंत्र अस्तित्व को चुनौती देने के लिये सैनिक हमले की धमकियाँ देने लगे। इसके अलावा शी के शासन काल में ही दक्षिण चीन सागर में अपने सागरीय इलाक़े का विस्तार करने के लिये कृत्रिम द्वीपों का निर्माण कर वहाँ बैलिस्टिक और रक्षात्मक मिसाइलों की तैनाती की।
इन कृत्रिम द्वीपों के निर्माण के पीछे दक्षिण चीन सागर में सागरीय क्षेत्र के विस्तार के इरादों को जब पड़ोसी देशों जापान, इंडोनेशिया, वियतनाम आदि ने चुनौती दी, तो चीन ने दक्षिण चीन सागर में अपने नौसैनिक पोतों की तैनाती बढ़ा दी। इसके जवाब में अमेरिका ने भी अपने युद्धपोतों को वहाँ भेजना शुरु किया।
चीनी राष्ट्रपति यदि अगले 15 सालों तक सत्ता में बने रहे तो चीन की अतिराष्ट्रवादी और विस्तारवादी नीतियों में और आक्रामकता देखने के लिये विश्व समुदाय को तैयार रहना होगा। राष्ट्रपति शी का और ताक़तवर होते जाना भारत के लिये भी चिंताजनक है।
भारतीय सामरिक हलकों में यह आम राय है कि जब से राष्ट्रपति शी सत्तारूढ़ हुए हैं, भारत को उकसाने वाली कई नीतियाँ उन्होंने अपनाई हैं। ख़ासकर दोनों देशों के बीच विश्वास बढ़ाने वाली जो संधियाँ 1993 और इसके बाद हुईं, शी के शासनकाल में चीन ने धज्जियाँ उड़ाई हैं।
इसके मद्देनज़र भारतीय सामरिक नीति निर्माताओं को गहन मंथन करना होगा कि राष्टपति शी पर भारी पड़ने के लिये भारत को कैसी घरेलू और विदेशी रणनीति अपनानी होगी।
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रंजीत कुमार
रंजीत कुमार देश के मशहूर रक्षा विशेषज्ञ हैं। और पढ़ें »
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