क्या आपने वह ख़बर पढ़ी या सुनी थी जिसमें चीन को सुझाव दिया गया था कि वह एक-एक महिला को दो-दो पति रखने के लिए नीति लेकर आए? या फिर यह सुना कि ज़्यादा बच्चे पैदा करने के लिए चीन सरकार आर्थिक पैकेज जैसे प्रोत्साहन दे रही है। आपको ये ख़बरें अटपटी लग रही हैं न!
दरअसल, चीन आबादी असंतुलन के उथल-पुथल दौर से गुजर रहा है। पहले वन चाइल्ड पॉलिसी लाई गाई। यानी एक बच्चा रखने की इजाजत थी। ताकि जनसंख्या नियंत्रित किया जा सके। इस फ़ैसले से असंतुलन बढ़ा और हालात ख़राब हुए तो टू चाइल्ड पॉलिसी आई। यानी दो बच्चे रखने की इजाजत मिली। इससे हालात नहीं सुधरे तो अब थ्री चाइल्ड पॉलिसी। यानी एक शादीशुदा जोड़ा तीन बच्चे रख सकता है।
चीन ने सोमवार को 'तीन बच्चों की नीति' की घोषणा तब की है जब वहाँ दो बच्चे की नीति अपनाने के बाद भी जन्म दर में बढ़ोतरी नहीं दिखी। 2016 में ही वहाँ एक बच्चे की नीति को ख़त्म कर दो बच्चे की नीति पर चलना तय किया किया गया था। अब दो बच्चों से तीन बच्चों की नीति पर चलना चीन की नीति में आमूल चूल परिवर्तन की तरह है।
नीति में यह बदलाव इसलिए किया गया है क्योंकि चीन में वहाँ की बड़ी आबादी अब बुजुर्ग हो गई है। क़रीब 40 साल पहले जब चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने फ़रमान जारी किया था कि सिर्फ़ एक बच्चा पैदा करने की अनुमति होगी तो इसके दुष्प्रभाव का अंदाज़ा नहीं था। चीन की दशकों तक रखी गई ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ को इसलिए लाया गया था कि देश में तेज़ी से बढ़ती आबादी पर लगाम लगाया जाए और चीन के जीवन स्तर को ऊँचा किया जाए।
चीन में एक बच्चे का क़ानून 1980 में बनाया गया था और इसे कड़ाई के साथ लागू किया गया। उस नियम के तहत यदि एक से अधिक बच्चा पाया जाता था तो सरकारी अफ़सर और कर्मचारियों को अपनी नौकरी गँवानी पड़ती थी।
जिन महिलाओं को इस क़ानून का उल्लंघन करते पाया जाता था उनका या तो जबरन गर्भपात करा दिया जाता था या फिर भारी जुर्माना लगाया जाता था। अगर माता-पिता पर लगाया गया जुर्माना नहीं भरा जाता था तो उस बच्चे की देश की नागरिकता में गणना नहीं की जाती थी, यानी वे पैदा होते ही ग़ैरक़ानूनी घोषित कर दिए जाते थे।
हालाँकि कुछ मामलों में छूट दी गई थी। अल्पसंख्यकों पर बच्चों की संख्या की कोई पाबंदी नहीं थी। ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले हान मूल के चीनी नागरिकों को दो बच्चे की छूट थी। विक्लांग बच्चा पैदा होने पर भी छूट थी।
इस नीति से चीन ने जीवन स्तर तो सुधारा, लेकिन एक बड़ी समस्या भी मोल ले ली।
वन चाइल्ड पॉलिसी का असर जनसंख्या पर पड़ा है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2020 में चीन में प्रति दंपति बच्चों का औसत 1.3 बच्चे हैं जो कि वैश्विक औसत 2.5 से काफ़ी कम है।
अब वहाँ बूढ़े लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है और इस बुज़ुर्ग पीढ़ी को सहारा देने के लिए नौजवान आबादी की कमी हो रही है। काम करने वाले लोगों की संख्या कम होने लगी है।
जब स्थिति ख़राब होने लगी तो 2015 में वन चाइल्ड पॉलिसी को ख़त्म करने का फ़ैसला लिया गया और 2016 में उस क़ानून को ख़त्म कर दिया गया। चीनी अधिकारी क़रीब चार साल से कोशिश कर रहे हैं कि एक बच्चा की नीति के विनाशकारी असंतुलन को ख़त्म किया जाए और अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
इसके लिए उन्होंने दंपतियों से कहा था कि दो बच्चों को पालना उनकी देशभक्ति का कर्तव्य है। उन्होंने टैक्स ब्रेक और हाउसिंग सब्सिडी दी। उन्होंने शिक्षा को सस्ता किया और पैतृक अवकाश लंबा करने की पेशकश की। उन्होंने गर्भपात या तलाक़ लेने को और अधिक कठिन बनाने की कोशिश की। लेकिन यह उतना कारगर नहीं रहा।
आज के जमाने की महिलाओं को अपने ख़ुद के करियर की चाह होती है। और इस तरह शादी और बच्चे के जन्म में देरी हो रही है। इससे चीजें आगे और भी जटिल हो जाती हैं। बच्चों के लालन-पालन में ख़र्च के डर से लोग ज़्यादा बच्चे पैदा नहीं करना चाहते हैं। तभी जब चीन सरकार ने तीन बच्चे की नीति की घोषणा की तो सोशल मीडिया पर लोगों ने अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ दीं। वीबो पर एक यूजर ने लिखा, 'मैं तीन बच्चे के लिए तैयार हूँ यदि आप मुझे 5 मिलियन युआन (क़रीब 5,69,97,336 रुपये) दें।'
एक बच्चे की नीति का असर लिंगानुपात पर भी पड़ा। चीन की जनसंख्या क़रीब 1 अरब 40 करोड़ है। इसमें महिलाओं से 3 करोड़ 40 लाख पुरुष ज़्यादा हैं। इसका मतलब साफ़ है कि इतने पुरुषों को शादी के लिए दुल्हनें नहीं मिलेंगी।
इस क़ानून से चीन में लड़का पैदा करने के प्रति रुझान बढ़ गया जिससे लड़कियों की भ्रूण हत्या भी बढ़ गई। ऐसा इसलिए है कि परंपरागत रूप से बेटों की चाह रही है और गर्भ में लड़की होने पर गर्भपात करा दिया जाता है। यह समस्या अब और उलझी हुई हो गई है।
अब ज़ाहिर है स्थिति ज़्यादा बिगड़ रही है तो नये तरीक़ों की खोज भी हो रही है। ऐसे में ही शंघाई में फुडन विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर येव-क्वांग एनजी ने पिछले साल महिलाओं के दो-दो पतियों को रखने का सुझाव दिया था। बिल्कुल उसी तर्ज पर जैसे एक पुरुष की दो पत्नियाँ। वैसे, ऐसे तीन लोगों की आपसी मर्ज़ी से भी ऐसा होना असामान्य सी बात लगती है, लेकिन क्या इसकी कल्पना की जा सकती है कि किसी देश में एक-एक महिला के दो-दो पति होना आम बात लगने लगे! ऐसा क़ानून बनाने का सुझाव दे दिया जाए। देश की हालत इतनी बदतर हो जाए कि सुधार के लिए एक तरह से पूरे देश की महिलाओं को दो-दो पुरुषों से शादी के लिए सरकार प्रोत्साहित करने लगे!
प्रोफ़ेसर येव-क्वांग एनजी का कहना था कि महिलाओं को कई पति रखने की अनुमति दी जाए और इस तरह उनके पास कई बच्चे होंगे। यानी ज़्यादा बच्चे पैदा करने के लिए महिलाएँ दो-दो पति रखें।
दरअसल, मलेशियाई मूल के प्रोफ़ेसर येव-क्वांग एनजी ने पिछले साल जून में एक चीनी बिज़नेस वेबसाइट पर एक नियमित कॉलम लिखा था। उन्होंने उस लेख के शीर्षक में पूछा था, ‘क्या बहुपतित्व वास्तव में एक हास्यास्पद विचार है?’
येव-क्वांग एनजी ने लिखा था, ‘मैंने पॉलेंड्री (एक से ज़्यादा पति रखना) का सुझाव नहीं दिया होता यदि लिंग अनुपात इतना गंभीर रूप से असंतुलित नहीं हुआ होता।’ लेख में उन्होंने लिखा, ‘मैं बहुपतित्व की वकालत नहीं कर रहा हूँ, मैं सिर्फ़ सुझाव दे रहा हूँ कि हमें असंतुलित लिंग अनुपात के विकल्प पर विचार करना चाहिए।’
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