कोरोना का जो नया स्ट्रेन बी.1.617 सबसे पहले भारत में मिला था उसके नाम को लेकर बार-बार उठ रहा विवाद शायद अब ख़त्म हो जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने इसका नाम 'डेल्टा वैरिएंट' तय कर दिया है। हालाँकि, इसका वैज्ञानिक नाम बी.1.617 ही रहेगा, लेकिन आम तौर पर ज़िक्र किए जाने के लिए डेल्टा वैरिएंट का इस्तेमाल किया जाएगा। 'इंडियन वैरिएंट' का नहीं। यह इसलिए कि इस नाम पर पहले आपत्ति की गई थी।
भारत सरकार ने 12 मई को बी.1.617 को 'इंडियन वैरिएंट' बुलाए जाने पर आपत्ति की थी।
तब केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस के 'इंडियन वैरिएंट' शब्द के इस्तेमाल पर चेतावनी जारी की थी और सभी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म के लिए एडवाइज़री जारी की थी। सरकार ने 'इंडियन वैरिएंट' शब्द के इस्तेमाल किए गए कंटेंट को हटाने को कहा था। सरकार की ओर से कहा गया था कि डब्ल्यूएचओ ने बी.1.617 वैरिएंट के साथ 'इंडियन वैरिएंट' नहीं जोड़ा है, इसलिए इसे 'इंडियन वैरिएंट' कहना ग़लत है।
डब्ल्यूएचओ भी लगातार यह कहता रहा है कि वायरस या उसके स्ट्रेन के किसी देश में पाए जाने पर उसकी पहचान उस देश के नाम से नहीं की जानी चाहिए।
दुनिया भर में जब कोरोना की पहली लहर ख़त्म हो रही थी और कई देशों में दूसरी लहर शुरू हो रही थी तो कोरोना के नये-नये स्ट्रेन का पता चला था। सबसे पहले यूके में नये स्ट्रेन का पता चला था। तब उसे यूके वैरिएंट कहकर बुलाया जाने लगा। फिर ऐसे ही दूसरे देशों में मिले नये वैरिएंट को दक्षिण अफ़्रीकी वैरिएंट और ब्राज़ीली वैरिएंट के रूप में इस्तेमाल किया गया। इस बीच भारत में मिले नये स्ट्रेन को 'डबल म्यूटेंट' के रूप में भी पहचाना गया। इसी बीच जब 'इंडियन वैरिएंट' का इस्तेमाल किया गया तो आपत्ति की गई।
कोरोना के नये वैरिएंट पर विवाद के बीच ही डब्ल्यूएचओ ने इसके लिए एक समूह का गठन किया था। इस समूह ने कुछ सुझाव दिए। इन सुझावों में सिफारिश की गई है कि नये वैरिएंट के लिए ग्रीक वर्णमाला के अक्षरों- अल्फा, बीटा, गामा आदि उपयोग किया जाए। समूह की ओर से कहा गया है कि यह ग़ैर-वैज्ञानिक गतिविधियों में चर्चा करने के लिए आसान और अधिक व्यावहारिक होगा।
कोरोना के बी.1.617 वैरिएंट के मामले देश के अधिकतर हिस्सों में पाए जा चुके हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में तेज़ी से फैली और ज़्यादा घातक साबित हुई दूसरी लहर के लिए यह वैरिएंट ही ज़िम्मेदार है।
भारत में जब दूसरी लहर अपने शिखर पर थी तो हर रोज़ 4 लाख से भी ज़्यादा संक्रमण के मामले रिकॉर्ड किए जा रहे थे। देश में 6 मई को सबसे ज़्यादा 4 लाख 14 हज़ार केस आए थे।
यह वह समय था जब देश में अस्तपाल बेड, दवाइयाँ और ऑक्सीजन जैसी सुविधाएँ भी कम पड़ गई थीं। ऑक्सीजन समय पर नहीं मिलने से बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुईं। अस्पतालों में तो लाइनें लगी ही थीं, श्मशानों में भी ऐसे ही हालात थे। इस बीच गंगा नदी में तैरते सैकड़ों शव मिलने की ख़बरें आईं और रेत में दफनाए गए शवों की तसवीरें भी आईं।
बी.1.617 का पहली बार पिछले साल अक्टूबर में पता चला था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अब तक 44 देशों में इस वैरिएंट के मामले आ चुके हैं। डब्ल्यूएचओ ने इस वैरिएंट को 'वैरिएंट ऑफ़ कंसर्न एट ग्लोबल लेबल' यानी विश्व स्तर पर चिंतित करने वाला वैरिएंट क़रार दिया है।
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