अमेरिकी कांग्रेस की एक स्वतंत्र अनुसंधान शाखा की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वर्ष लागू नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के कुछ प्रावधान भारतीय संविधान का उल्लंघन हो सकते हैं।
सीएए के तहत 1955 के नागरिकता अधिनियम को मोदी सरकार ने संशोधित कर दिया है। भारतीय संसद से मंजूरी मिलने के लगभग चार साल बाद मार्च 2024 में इस लागू किया गया। यह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आने वाले बिना दस्तावेज वाले गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का रास्ता खोलता है।
कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) की रिपोर्ट के अनुसार, "सीएए के प्रमुख प्रावधान - मुसलमानों को छोड़कर तीन देशों के छह धर्मों के अप्रवासियों को नागरिकता देना - भारतीय संविधान के कुछ अनुच्छेदों का उल्लंघन है।"
रिपोर्ट इस चिंता जताती है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के साथ मिलकर, सीएए भारत की मुस्लिम आबादी के अधिकारों को खतरे में डाल सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सीएए का विरोध करने वाले लोग सत्तारूढ़ भाजपा से इसलिए सावधान हैं, क्योंकि वो "हिंदू बहुसंख्यकवादी, मुस्लिम विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है। यह आधिकारिक तौर पर धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के रूप में भारत की स्थिति को खतरे में डालता है। सीएए और एनआरसी अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानदंडों और दायित्वों का उल्लंघन है।"
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सीएए को "भाजपा ने चुनाव अभियान से पहले लागू किया।" यह "बड़े पैमाने पर राजनीति से प्रेरित" है। इस बारे में आलोचकों का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में आगे कहा गया है, "...सीएए को केवल सरकार से 'अनुमोदित' धर्मों के लोगों की रक्षा के लिए डिज़ाइन किया गया है, दूसरों (मुस्लिमों) के पास इसमें कोई जगह नहीं है। यह भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार को कमजोर करेगा। एक वरिष्ठ पर्यवेक्षक के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि यह मोदी-भाजपा के बहुसंख्यकों को आगे बढ़ाने और दूसरों (मुस्लिमों) को दोयम दर्जा देने की कोशिश है।'
सीआरएस, अमेरिकी कांग्रेस की एक स्वतंत्र अनुसंधान शाखा है, और अमेरिकी संसद के निर्णय लेने में सहायता के लिए रिपोर्ट देती है। लेकिन उसकी रिपोर्ट यूएस कांग्रेस के विचार नहीं हैं। इससे पहले, बाइडेन प्रशासन ने भारत में नागरिकता संशोधन अधिनियम की अधिसूचना के संबंध में अपनी चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि वह विवादास्पद कानून को लागू करने की बारीकी से निगरानी कर रहा है।
मोदी सरकार ने सीएए से संबंधित सभी देशी-विदेशी आलोचनाओं को खारिज कर दिया है। मोदी सरकार का कहना है कि सीएए का उद्देश्य मुख्य रूप से प्रताड़ित हिन्दुओं को नागरिकता देना है। एक बयान में, केंद्र ने आश्वासन दिया था कि इस कानून की वजह से देश का कोई भी नागरिक अपनी नागरिकता नहीं खोएगा। हालांकि भारतीय विपक्षी दल भी सीएए के प्रावधानों पर शक जता चुके हैं। तमाम जन संगठनों ने मांग की है कि मोदी सरकार इसमें हर धर्म के नागरिक को शामिल करे, तभी उसका सीएए कानून सही मायना जाएगा।
भारत में सीएए और एनआरसी के खिलाफ लंबे समय तक शाहीनबाग आंदोलन चला था। मुस्लिम महिलाओं ने सड़कों पर आकर इसका विरोध किया था। हालांकि मुस्लिम महिलाएं किसी जन आंदोलन से कम ही जुड़ती हैं लेकिन सीएए के विरोध में उन्होंने जबरदस्त जागरूकता दिखाई थी। शाहीनबाग आंदोलन में बुजुर्ग मुस्लिम महिलाओं से लेकर स्कूल-कॉलेज, यूनिवर्सिटीज की लड़कियां शामिल थीं। शाहीनबाग दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पास एक इलाका है, जहां मुस्लिम महिलाएं सबसे पहले धरने पर बैठीं। इसके बाद देशभर में कस्बों, गांवों से लेकर बड़े शहरों तक असंख्य शाहीनबाग खड़े हो गए थे। देश की जानी मानी हस्तियां, जिनमें लेखक, कवि, शायर, पत्रकार, बॉलीवुड के एक्टर-एक्ट्रेस, रंगमंच के कलाकार, पेंटर आदि भी शाहीनबाग आंदोलन में खड़े हुए थे।
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