एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन को लेकर उठे सवाल गंभीर होते जा रहे हैं। ब्रिटेन की मेडिसन और हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेग्युलेटरी एजेंसी ने पाया है कि इसकी वैक्सीन और ख़ून के थक्के जमने के बीच कोई मजबूत संपर्क है।
इस यूरोपियन मेडिसन एजेंसी ने कहा है कि हालांकि इस तरह ख़ून के थक्के जमने और प्लेटलेट्स गिर जाने के मामले बेहद कम हैं। इस एजेंसी ने 22 मार्च के बाद आए ऐसे 86 मामलों को देखा है और इनमें 18 ऐसे मामले थे, जहां पर लोगों की मौत हो गई। 4 अप्रैल तक ब्रिटेन और यूरोप में ख़ून के थक्के जमने के 222 मामले सामने आए थे। इसके बाद ब्रिटेन ने फ़ैसला लिया है कि वह इस वैक्सीन को युवाओं-व्यस्कों को नहीं लगाएगा।
महिलाओं में ज़्यादा मामले
अभी तक ऐसे जितने भी मामले आए हैं, उनमें अधिकांश 60 साल से कम उम्र की महिलाओं के हैं और ऐसा वैक्सीन की पहली डोज लेने के दो हफ़्ते के भीतर हुआ है। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि यह नहीं कहा जा सकता कि दूसरी डोज से इन लोगों पर क्या असर होगा।
इस ख़बर से सबसे ज़्यादा चिंता उन लोगों को होगी जो एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन की एक डोज ले चुके हैं और जिन्हें अब दूसरी डोज लगनी है। हालांकि नियामक इस बात को भी मानते हैं कि फिर भी ये वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी है और इसे इस्तेमाल करना है या नहीं, इसका फ़ैसला उन्होंने बाक़ी देशों पर छोड़ दिया है।
इसे देखते हुए ब्रिटेन ने बुधवार को कहा है कि ऐसे लोग जिनकी उम्र 30 साल से नीचे है, उन्हें एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन का विकल्प दिया जाना चाहिए। यूरोप के देशों की तमाम सरकारें और नियामक पूरे हालात पर पैनी निगाह रख रहे हैं और कुछ मामलों में कार्रवाई भी कर रहे हैं।
ये सारी चिंताएं सामने आने के बाद एस्ट्राजेनेका ने कहा है कि वह इन सभी मामलों में से हर एक का अलग-अलग अध्ययन कर रही है। इसके साथ ही वह नियामकों के साथ भी इस मामले को देख रही है।
एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन को लेकर चिंता इतनी है कि यूरोप के कई देशों में इसके इस्तेमाल के बाद आ रही दिक्कतों को देखते हुए दक्षिण कोरिया ने 60 साल से नीचे के लोगों को इस वैक्सीन को लगाने से मना कर दिया है। कनाडा ने भी मार्च के अंत में 55 साल से कम उम्र के लोगों को यह वैक्सीन लगाए जाने पर रोक लगा दी थी। इससे पहले कैमरून ने भी एस्ट्राजेनेका के टीके पर रोक लगा दी थी। इससे पहले भी एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन पर यूरोप के कई देशों में कुछ वक़्त के लिए रोक लगाई गई थी।
एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफ़ोर्ड ने भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया से करार किया है और लाखों लोगों को यह वैक्सीन लगाई जा रही है।
एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन का इस्तेमाल दुनिया के कई देशों में किया जा रहा है। ऐसे में अगर ब्रिटेन और यूरोपीय देशों में इस तरह की बात सामने आती है तो निश्चित रूप से दुनिया भर में तेज़ी से चल रहे टीकाकरण के कार्यक्रम को बड़ा धक्का लगेगा। क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर से दुनिया के कई देश जूझ रहे हैं और भारत में भी इस लहर में संक्रमण के मामले तेज़ रफ्तार से बढ़ रहे हैं।
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