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अफगानिस्तान-चीन में तेल खुदाई का समझौता और भारत 

अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने चीन की कंपनी के साथ तेल खुदाई समझौते पर शुक्रवार को हस्ताक्षर किए हैं। तालिबान का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहला समझौता है। ब्लूमबर्ग ने यह जानकारी दी। हालांकि इस समझौते को भारत के संदर्भ में भी समझा जाना चाहिए। अफगानिस्तान में भारत ने काफी निवेश किया है। बीच में तालिबान ने कहा भी था कि वो भारत के साथ रिश्ते बेहतर रखना चाहता है कि लेकिन जब किसी समझौते की बारी आई तो उसने चीन को महत्व दिया। तालिबान के रुख से लग रहा है कि उसका झुकाव चीन की तरफ है। इस तरह अब चीन को दो महत्वपूर्ण देश दोस्त के रूप में मिल गए हैं। ये हैं चीन और ईरान। इस एशियाई महाद्वीप की सामरिक स्थिति बदल सकती है। पाकिस्तान के ग्वादर में चीन पहले से ही पोर्ट का निर्माण कर रहा है। जिसमें तालिबान बाधा बनते थे, क्योंकि वो जगह अफगानिस्तान की सीमा पर है। अब चीन को पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट को पूरा करने में आसानी होगी।

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शिनजियांग सेंट्रल एशिया पेट्रोलियम एंड गैस कंपनी (CAPEIC) के साथ अनुबंध पर काबुल में आर्थिक मामलों के लिए तालिबान के उप प्रधान मंत्री, मुल्ला अब्दुल गनी बरादर और अफगानिस्तान में चीनी राजदूत वांग यू की मौजूदगी में हस्ताक्षर किए गए।
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यह समझौता 25 साल तक लागू रहेगा। इस दौरान चीन की कंपनी अमु दरिया बेसिन में तेल के लिए CAPEIC ड्रिलिंग होगी। यह तालिबान का पहला प्रमुख अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा सौदा है। तालिबान ने 2021 में अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया था। 
ब्लूमबर्ग के मुताबिक इस मौके पर मुल्ला गनी बरादर ने कहा - प्राकृतिक संसाधनों के मामले में, अफगानिस्तान एक समृद्ध राष्ट्र है। अन्य खनिजों के अलावा,तेल अफगान लोगों की संपत्ति है जिस पर देश की अर्थव्यवस्था भरोसा कर सकती है।  
दोनों तरफ से जारी संयुक्त प्रेस रिलीज में कहा गया कि चीनी कंपनी सालाना 150 मिलियन डॉलर तक का निवेश भी करेगी, जो तीन साल में बढ़कर 540 मिलियन डॉलर हो जाएगा और 3,000 अफगानों को रोजगार मिलेगा।
अनुमान है कि अफग़ानिस्तान में $1 ट्रिलियन से अधिक मूल्य के प्राकृतिक संसाधन जैसे प्राकृतिक गैस, तेल, तांबा और रेयर अर्थ हैं, जो दशकों की उथल-पुथल के कारण बड़े पैमाने पर अप्रयुक्त हैं। 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद, अमेरिका ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार के 7 बिलियन डॉलर से अधिक को फ्रीज कर दिया, जिससे देश में नकदी की भारी कमी हो गई। चीन, जो अफगानिस्तान के साथ 76 किमी की सीमा साझा करता है, ने उस समय कहा था कि वह अफगानिस्तान के साथ "दोस्ताना और सहकारी" संबंधों को गहरा करने के लिए तैयार है। 
तालिबान को अभी तक किसी भी देश द्वारा अफगानिस्तान की वैध सरकार के रूप में मान्यता नहीं दी गई है। हाल ही में तालिबान ने लड़कियों की उच्च शिक्षा पर रोक लगा दी है। इसका यूएन और अमेरिका ने दबे स्वर में विरोध किया। भारत सहित कुछ देश सिर्फ चिन्ता जताकर रह गए थे।
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क़मर वहीद नक़वी
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