पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव के नतीजे सामने आते ही प्रदेश भाजपा में अंदरूनी कलह लगातार तेज हो रही है। इसके साथ ही राज्य के विभिन्न इलाकों से हिंसा की ख़बरें भी आने लगी हैं। हालांकि वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद वाले हालात अभी पैदा नहीं हुए हैं। लेकिन भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं पर हमले तेज होने का आरोप लगाया है।
नतीजे सामने आने के बाद सबसे पहले पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने मुंह खोला। उन्होंने आरोप लगाया कि एक साजिश के तहत ही उनकी सीट बदल दी गई। नतीजतन उनको हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने किसी का नाम तो नहीं लिया। लेकिन निशाने पर विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ही थे। यह खुला रहस्य है कि शुभेंदु के कहने पर ही दिलीप घोष को मेदिनीपुर सीट से हटा कर बर्दवान-दुर्गापुर सीट पर भेजा गया था। मेदिनीपुर सीट पर शुभेंदु की करीबी महिला नेता अग्निमित्र पॉल को टिकट दिया गया। नतीजतन दिलीप घोष भी हार गए और अग्निमित्र भी। घोष कहते हैं कि पार्टी के गलत फैसलों ने ही यहां उसकी लुटिया डुबोई है।
घोष का कहना था कि उन्होंने पूरे पांच साल तक अपने चुनाव क्षेत्र मेदिनीपुर में काम किया था और वहां से दोबारा उनकी जीत तय थी। लेकिन मुझे हराने के लिए ही आखिरी मौके पर सीट बदल दी गई। उन्होंने सीधे तौर पर प्रदेश नेतृत्व की क्षमता औऱ कुशलता पर सवाल उठाया है।
शुभेंदु के खिलाफ विरोध की आवाज उठाने वाले नेताओं की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। बांकुड़ा जिले के विष्णुपुर सीट से जीतने वाले भाजपा नेता सौमित्र खां ने भी किसी का नाम लिए बिना पार्टी में नेतृत्व की कमजोरी की बात कही है। उनका कहना है कि तृणमूल कांग्रेस नेता अभिषेक बनर्जी की कद-काठी का कोई नेता भाजपा में नहीं है। सौमित्र कहते हैं कि हो सकता है कि तृणमूल कांग्रेस के साथ किसी नेता ने गोपनीय रूप से हाथ मिला हो। उनका प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार की ओर है।
असंतुष्ट गुट के नेताओं की दलील है कि केंद्रीय नेतृत्व ने उम्मीदवारों को टिकट देने के मामले में शुभेंदु पर आंख मूंद कर भरोसा कर गलती की है।
इस गुट के एक नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, दूसरी पार्टी से आने वाले नेताओं को टिकट देना भारी गलती थी। इसमें कोलकाता उत्तर के पूर्व तृणमूल कांग्रेस विधायक तापस कुमार राय और बशीरहाट सीट की राख पात्र का जिक्र हो रहा है। यह दोनों टिकट शुभेंदु के कहने पर ही दिए गए थे। इसी तरह चुनाव से ठीक पहले तृणमूल से लौटने वाले अर्जुन सिंह को बैरकपुर में टिकट दिया गया। वह भी हार गए। उस नेता का कहना था कि उन सीटों पर पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं को टिकट देना चाहिए था। उसके बावजूद हम भले हार जाते, कार्यकर्ताओं में एक बढ़िया संदेश तो जाता।
प्रदेश भाजपा के एक बड़े नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर दैनिक भास्कर से कहा, लगता है पार्टी ने 2021 की गलतियों से कोई सबक नहीं सीखा है। इस बार भी वही गलती दोहराई गई है।
यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि वर्ष 2021 में पार्टी ने बड़ी तादाद में दूसरे दलों से आने वाले नेताओं को टिकट दिया था। चुनाव के बाद सात विधायक तृणमूल कांग्रेस में लौट गए। इसी तरह 2019 में जीतने वाले अर्जुन सिंह ने भी तृणमूल का दामन थाम लिया था।
इस चुनावी पराजय के बाद अब संगठन की कमजोरी एक बार फिर उभर कर सामने आ गई है। इसके साथ ही केंद्रीय नेतृत्व की ओर से तमाम फैसले थोपने को भी हार की एक बड़ी वजह माना जा रहा है।
प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता शमीक भट्टाचार्य कहते हैं कि फिलहाल हार-जीत के कारणों पर आलोचना की बजाय चुनाव बाद पार्टी के कार्यकर्ताओं को हिंसा से बचाना और पार्टी के दफ्तरों की सुरक्षा करना ही हमारी पहली प्राथमिकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिन लोकसभा क्षेत्रों में चुनावी सभा की उनमें से 12 में भाजपा उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल में कुल 23 चुनावी सभाएं की थी। साथ ही उन्होंने कोलकाता उत्तर में एक रोड शो भी किया था। लेकिन पार्टी उन इलाकों में महज सात सीटों पर पार्टी जीतने में कामयाब रही। संदेशखाली इलाके में दो-दो सभाओं के बावजूद पार्टी न तो बारासात में जीत सकी और न ही बशीरहाट में।
राज्य में जिस कोलकाता उत्तर इलाके में प्रधानमंत्री ने एकमात्र रोड शो किया था, पार्टी वहां भी नहीं जीत सकी। कुछ जगह तीन-चार केंद्रों को मिला कर साझा रैली आयोजित की गई थी।
प्रदेश भाजपा के एक नेता बताते हैं कि प्रधानमंत्री को देखने के लिए उनकी सभाओं में भीड़ भले जुटती रही, उनका भाषण हिंदी में होने के कारण लोग पूरी तरह समझ ही नहीं सके। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने स्थानीय मुद्दों की बजाय केंद्र की भारी-भरकम योजनाओं का जिक्र ही ज्यादा किया। वह सब आम लोगों के सिर के ऊपर से गुजर गया।
राज्य में हिंसा की ख़बरें
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद राज्य के विभिन्न इलाकों से छिटपुट हिंसा के आरोप सामने आ रहे हैं। वैसे, बड़ी तादाद में केंद्रीय बलों के अब भी तैनात रहने की वजह से यह हिंसा वर्ष 2021 के चुनाव बाद की हिंसा के स्तर तक नहीं पहुंची है। राज्य में दक्षिण 24-परगना जिले के भांगड़ में हिंसा के आरोप में 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। बर्दवान जिले में भाजपा के कुछ दफ्तरों में तोड़फोड़ के भी आरोप सामने आए हैं।
इसी तरह उत्तर 24-परगना जिले में भी कई स्थानों पर भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों पर हमले की खबरें आई हैं। कई कार्यकर्ताओं ने घर छोड़ कर पार्टी दफ्तर में शरण ले रखी है।
भाजपा के प्रवक्ता शमीक भट्टाचार्य आरोप लगाते हैं कि कुछ इलाकों में विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं को एक सप्ताह तक घरों से बाहर नहीं निकलने की चेतावनी दी गई है तो कहीं बाहर निकलते ही हत्या की धमकियां दी जा रही हैं।
राज्य पुलिस के एक अधिकारी बताते हैं कि कुछ इलाकों से छिटपुट हिंसा की खबरें मिल रही हैं। शिकायत पर उचित कार्रवाई की जा रही है। लेकिन ज्यादातर लोग प्राथमिकी नहीं दर्ज कराना चाहते।
उधर, भाजपा का आरोप है कि पुलिस ऐसी शिकायतों ही दर्ज नहीं कर रही है।
इस बीच, मतदान के दिन संदेशखाली में हिंसा के आरोप में पुलिस ने 22 लोगों को गिरफ्तार किया है। इनमें भाजपा के कई कार्यकर्ता भी शामिल हैं।
विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया है कि तृणमूल कांग्रेस से जुड़े असामाजिक तत्व भाजपा कार्यकर्ताओं को चुन-चुन कर निशाना बना रहे हैं।
अपनी राय बतायें