प्रख्यात पत्रकार आशुतोष अपनी नयी किताब ‘रीक्लेमिंग भारत’ को लेकर चर्चा में हैं। प्रो. अपूर्वानंद के संयोजन में जारी ‘नेहरू डायलॉग्स’ के सिलसिले के तहत 9 मई को दिल्ली के जवाहर भवन में हुआ इस किताब का लोकार्पण और उसकी स्थापनाओं को लेकर हुई विचारोत्तेजक बहस लंबे समय तक याद की जाएगी। 2024 के लोकसभा चुनाव के बहाने यह किताब भारतीय लोकतंत्र के सामने खड़े फ़ासीवादी ख़तरे को स्पष्ट करते हुए उस भारत को रीक्लेम (फिर से हासिल करना) करने की ज़रूरत पेश करती है जो 1947 में औपनिवेशिक सत्ता से सफल संघर्ष के बाद हासिल हुआ था।
एक ज़माने में न्यूज़ चैनल के संपादक और एंकर बतौर घर-घर पहचाने जाने वाले आशुतोष आजकल टीवी बहसों में बीजेपी और आरएसएस के कड़े आलोचक बतौर नज़र आते हैं। वे उन पत्रकारों से पूरी तरह अलग हैं जो ‘बैलंस’ बनाकर चलने पर यक़ीन रखते हैं। यह किताब इन सवालों का जवाब देती है कि आशुतोष आख़िर एक ‘बेचैन आत्मा’ की तरह क्यों नज़र आते हैं। वैसे, लोकतंत्र पर यक़ीन करने वाला कोई पाठक भी वेस्टलैंड से प्रकाशित दस अध्यायों और 280 पेज वाली इस किताब को पढ़कर बेचैन ही होगा।