जून 2013 की भयंकर केदारनाथ आपदा के घाव भरे भी नहीं थे कि 7 फ़रवरी की सुबह हिमालय एक बार फिर ग़ुस्से में आ गया। शीत ऋतु में जहाँ सभी नदियाँ और ख़ास कर ग्लेशियरों पर आधारित हिमालयी नदियाँ ठण्ड से सिकुड़ जाती हैं, उनमें भयंकर बाढ़ का आना उतना ही विस्मयकारी है जितना कि केदारनाथ के ऊपर स्थाई हिमरेखा का उल्लंघन कर बादल का फटना था। शीतकाल में ग्लेशियरों के पिघलने की गति बहुत कम होने के कारण हिमालयी नदियाँ इन दिनों निर्जीव नज़र आती हैं और गर्मियाँ शुरू होते ही उनमें नये जीवन का संचार होने लगता है। लेकिन चमोली में भारत-तिब्बत सीमा से लगी नीती घाटी की धौली गंगा और ऋषि गंगा इतनी कड़ाके की ठण्ड में ही विकराल हो उठी। अलकनन्दा की इन सहायिकाओं का ऐसा विनाशकारी रौद्र रूप अपने आप में चेतावनी ही है।