नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वालों से सरकारी संपत्ति के नुक़सान की भरपाई करने से जुड़े होर्डिंग के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश सरकार बेहद अड़ियल रवैया अपनाए हुए है। वह अदालत की बात तक मानने को तैयार नहीं है। सोमवार को इस पर अदालत के फ़ैसले को मानने के बजाय उसे चुनौती देने का फ़ैसला योगी आदित्यनाथ सरकार ने कर लिया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को एक बेहद अहम फ़ैसले में कहा कि सरकार 16 मार्च तक लखनऊ की सड़कों पर लगे 57 अभियुक्तों के पोस्टर हटा ले। लेकिन सरकार ने इसे मानने से इनकार कर दिया है।
क्या है मामला?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर सोमवार शाम हुई बैठक में यह हुआ फ़ैसला लिया गया। इस बैठक में अपर मुख्य सचिव गृह, पुलिस कमिश्नर लखनऊ और ज़िलाधिकारी लखनऊ के साथ कई बड़े अधिकारियों की लोक भवन में बैठक हुई।
यह निर्णय लिया गया है कि सरकार हाई कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील करे। सरकार होली के बाद यह अपील दायर करेगी। यानी, 16 मार्च तक होर्डिंग नहीं हटाए जाएंगे।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया था। कोर्ट ने शनिवार और रविवार को मामले में सुनवाई की थी और सुनवाई के बाद फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।
सरकार को फटकार
हाई कोर्ट ने रविवार को राज्य सरकार के अधिकारियों से कहा था कि उम्मीद है आपको सदबुद्धि आएगी और होर्डिंग्स को तुरंत हटा दिया जाएगा। इन होर्डिंग्स में लोगों को नागरिकता क़ानून के विरोध में हुई हिंसा के लिये जिम्मेदार ठहराते हुए उनसे वसूली करने की बात लिखी गई है। होर्डिंग्स में लोगों की तसवीरें लगाई गई हैं और कहा गया है कि इन लोगों से 67 लाख रुपये की वसूली की जानी है।
इन होर्डिंग्स में में प्रदेश में आईजी रहे एस.आर. दारापुरी सामाजिक कार्यकर्ता व रंगकर्मी दीपक कबीर, जाने माने शिया उलेमा मौलाना सैफ अब्बास व कांग्रेस नेत्री सदफ़ ज़फ़र के भी फ़ोटो हैं। एस.आर. दारापुरी को यूपी पुलिस ने नज़रबंद कर दिया था। अदालत दारापुरी, सदफ़ ज़फ़र व दीपक कबीर को ज़मानत दे चुकी है और पुलिस उनके ख़िलाफ़ हिंसा में शामिल होने का कोई भी साक्ष्य पेश नहीं कर सकी थी।
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