उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की अगुवाई वाले विपक्षी गठबंधन के प्रमुख नेता ओमप्रकाश राजभर की बीजेपी से नजदीकियां बढ़ रही हैं। ओमप्रकाश राजभर को वाई श्रेणी की सुरक्षा दी गई है। बीते दिनों में ओमप्रकाश राजभर के बयानों और बीजेपी से बढ़ती उनकी नजदीकियों को देखकर साफ लगता है कि वह अब विपक्षी गठबंधन में गिने-चुने दिनों के ही मेहमान हैं।
राष्ट्रपति के चुनाव में भी ओमप्रकाश राजभर ने सत्ता पक्ष की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया था और बीते दिनों में वह अखिलेश यादव पर तमाम तरह की नुक्ताचीनी कर चुके हैं।
कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था कि अखिलेश को एसी कमरों से बाहर निकलना चाहिए। राजभर ने कहा था कि वह सपा के साथ गठबंधन को खत्म करने की दिशा में खुद कोई कदम नहीं उठाएंगे और अखिलेश यादव के द्वारा तलाक दिए जाने का इंतजार करेंगे।
अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव में जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोक दल, ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, केशव देव मौर्य के महान दल, कृष्णा पटेल के अपना दल (कमेरावादी) के साथ मिलकर एक मजबूत गठबंधन बनाया था। लेकिन यह गठबंधन विधानसभा चुनाव में जीत हासिल नहीं कर सका था।
सपा गठबंधन के एक और सहयोगी केशव देव मौर्य भी विधान परिषद चुनाव में टिकट के बंटवारे को लेकर नाराजगी जता चुके हैं और गठबंधन से दूरी बनाए हुए हैं। अखिलेश के चाचा और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव भी पूरी तरह अखिलेश के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं।
अखिलेश यादव पर सवाल
समाजवादी पार्टी ने हालांकि विधानसभा चुनाव पूरी ताकत के साथ लड़ा था और पिछली बार के मुकाबले सीटों की संख्या और वोट शेयर में इजाफा भी किया था। लेकिन उत्तर प्रदेश में चुनाव के कुछ महीने के अंदर ही जिस तरह कई नेता विपक्षी गठबंधन छोड़ने को तैयार दिखते हैं उससे अखिलेश यादव की सियासी क्षमता पर भी सवाल खड़ा होता है। सवाल यह है कि वह गठबंधन के सहयोगियों को अपने साथ रख पाने में क्यों नहीं कामयाब हो पा रहे हैं।
75 सीटों का लक्ष्य
बीजेपी की कोशिश उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव में 80 में से 75 सीटें जीतने की है। राजभर का पूर्वांचल के कुछ जिलों में अच्छा असर है और बीजेपी उन्हें एक बार फिर से अपने साथ लाना चाहती है। अगर ओमप्रकाश राजभर और महान दल सपा गठबंधन से अलग होते हैं तो निश्चित रूप से यह अखिलेश यादव के लिए एक बड़ा झटका होगा। सपा गठबंधन में सुभासपा को 18 सीटें मिली थी और उसने 6 सीटों पर जीत हासिल की थी।
देखना होगा कि अखिलेश यादव गठबंधन के सहयोगी दलों को मना पाने में कामयाब होते हैं या नहीं।
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