पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जिन 16 लोकसभा सीटों के लिए पहले और दूसरे चरण में चुनाव होने हैं वहाँ इस बार मुक़ाबला काफी दिलचस्प होने वाला है। पहले चरण में 19 अप्रैल को पीलीभीत, सहारनपुर, कैराना, मुज़फ़्फ़रनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद और रामपुर में वोट डाले जायेंगे। दूसरा चरण एक सप्ताह बाद 26 अप्रैल को होगा जब अमरोहा, मेरठ, बाग़पत, ग़ाज़ियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा में वोट डाले जायेंगे।
ग़ौरतलब बात ये है कि इस बार के चुनावों में किसी पार्टी या गठबंधन की कोई लहर दिखाई नहीं दे रही है और चुनाव प्रचार कहीं नज़र नहीं आ रहा है। आम लोगों का कहना है कि इतना नीरस चुनाव प्रचार तो उन्होंने कभी देखा ही नहीं। केंद्र और प्रदेश दोनों जगह सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी में भी वह उत्साह नहीं दिखाई देता जैसा 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों और 2017 या 2022 के विधानसभा चुनावों में दिखाई देता था।
इसके बरक्स बीजेपी में अंदरूनी क़लह और भितरघात लगभग हर लोकसभा क्षेत्र में बहुत साफ़ नज़र आ रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों का दौरा करने के बाद बीजेपी की यह अंतर्क़लह मुझे साफ़ नज़र आयी। पिछले दिनों मेरठ, मुज़फ़्फ़रनगर, ग़ाज़ियाबाद और बुलंदशहर का दौरा करने के बाद हर संसदीय सीट पर मुझे बीजेपी के दो गुट साफ़ नज़र आये। एक गुट मोदी-अमित शाह का है जो पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों को जिताने की कोशिश कर रहा है तो दूसरा गुट मुख्यमंत्री योगी का है जिसमें स्थानीय नेता शामिल हैं और जो पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों को जी जान से हराने में लगा हुआ है।
गौतमबुद्ध नगर संसदीय सीट के खुर्जा विधान सभा क्षेत्र में बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने मुझे बताया कि वहाँ "बीजेपी में ठाकुर बनाम ब्राह्मण की लड़ाई ज़ोरों पर है और उसका पूरा फ़ायदा बीएसपी उम्मीदवार राजेंद्र सिंह सोलंकी को मिल रहा है।" इससे बीजेपी उम्मीदवार महेश शर्मा की मुश्किलें काफी बढ़ गयी हैं। यहाँ सपा उम्मीदवार काफी कमज़ोर है।
दिलचस्प बात यह है कि ग़ाज़ियाबाद ज़िले में हिन्दू राजपूतों के अलावा मुस्लिम राजपूतों की भी एक बड़ी आबादी है और वह भी जातिवाद के इस असर से बाहर नहीं निकल पाई है। मुस्लिम राजपूत वोटरों का मानना है कि इस बार वह मोदी-अमित शाह को सबक़ सिखाने के लिए एक मुश्त होकर बीजेपी के खिलाफ वोट करेंगे।
बहुचर्चित कैराना सीट शामली और सहारनपुर ज़िलों के विधान सभा क्षेत्रों को मिलाकर बनाई गयी है। यहाँ से प्रदीप चौधरी बीजेपी के निवर्तमान सांसद हैं। उनका मुक़ाबला लंदन से पढ़कर आयी समाजवादी पार्टी की युवा इक़रा हसन से है। प्रदीप चौधरी गुर्जर जाती से हैं और सहारनपुर के रहने वाले हैं।
इसी संसदीय सीट के नानौता क़स्बे में 7 अप्रैल को छत्रिय महापंचायत हुई थी जिसमें बीजेपी की मुखालिफत करने का ऐलान किया गया। यहीं से बीजेपी के ख़िलाफ़ ठाकुरों का विरोध शुरू हुआ। यहाँ जाट मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग भी प्रदीप चौधरी से नाराज़ है, इससे इक़रा हसन के चुनाव जीतने के आसार बढ़ गए हैं। उल्लेखनीय है कि इक़रा हसन के पिता मुनव्वर हसन और माँ तब्बस्सुम हसन इस सीट से लोकसभा सदस्य रह चुके हैं और भाई नाहिद हसन इस समय कैराना से समाजवादी पार्टी के विधायक हैं। 2022 के विधानसभा चुनावों में शामली ज़िले की तीनों विधानसभा सीटें बीजेपी हार गयी थी।
मुज़फ्फरनगर लोकसभा सीट से केंद्र सरकार में राज्य मंत्री डॉ. संजीव बालियान बीजेपी उमीदवार हैं। वे 2014 और 2019 में चुनाव जीत चुके हैं लेकिन काफी विवादस्पद हैं। उनका मुक़ाबला समाजवादी पार्टी के हरेंद्र मलिक से है जो कई बार विधायक और राज्यसभा सदस्य भी रह चुके हैं। हालाँकि संजीव बालियान दस वर्षों से सांसद हैं लेकिन उन्हें दो स्थानीय कद्दावर ठाकुर नेताओं संगीत सोम और सुरेश राणा का अंदरूनी विरोध झेलना पड़ रहा है। हालाँकि ये दोनों पिछले विधानसभा चुनाव हार गए थे। कैराना और मुज़फ्फरनगर सीटों पर ठाकुरों ने रैली कर बीजेपी के ख़िलाफ़ वोट करने का ऐलान कर दिया है और बीएसपी ने दारा सिंह प्रजापति को अपना उम्मीदवार बनाया है। आमतौर पर प्रजापति जाति के मतदाता बीजेपी का समर्थन करते हैं लेकिन इस बार शायद उनके वोट बीजेपी को न जाकर बीएसपी को जायें। इससे डॉ. संजीव बालियान की मुश्किलें काफी बढ़ गयी हैं।
बुलंदशहर की लोकसभा सीट, अनुसूचित जातियों के लिए सुरक्षित सीट है और हालाँकि यहाँ तीनों उम्मीदवार दलित हैं लेकिन यहाँ भी निवर्तमान बीजेपी सांसद डॉ. भोला सिंह को भितरघात का भारी सामना करना पड़ रहा है। सपा-कांग्रेस गठबंधन ने यहाँ से कांग्रेस पार्टी के शिवराम वाल्मीकि को अपना उम्मीदवार बनाया है जबकि बीएसपी ने नगीना से अपने सांसद गिरीश चंद्र जाटव को उम्मीदवार बनाया है। यहाँ ब्राह्मण बनाम ठाकुर की लड़ाई का फायदा बीएसपी उम्मीदवार को मिलता दिखाई पड़ रहा है क्योंकि इंडिया गठबंधन का उम्मीदवार यहाँ कमज़ोर है।
उत्तर प्रदेश में बीजेपी कार्यकर्ताओं से बातचीत करने पर यह साफ़ हो जाता है कि मोदी-अमित शाह बनाम योगी के बीच खाई लगातार बढ़ती जा रही है और इसने ब्राह्मण बनाम ठाकुर का रूप भी ले लिया है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समर्थकों का मानना है कि यदि प्रधानमंत्री मोदी पिछले के मुक़ाबले इस बार ज़्यादा बहुमत से सत्ता में आते हैं तो मुख्यमंत्री योगी का हटना तय है। जबकि मोदी-अमित शाह समर्थकों का कहना है कि यदि मुख्यमंत्री योगी के पर नहीं कतरे गए तो वह फिर प्रधानमंत्री मोदी को सीधे सीधे चुनौती देने लगेंगे।
उल्लेखनीय है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विपक्ष के उम्मीदवार काफ़ी कमज़ोर हैं और कोई भी अपने बलबूते जीतने का दावा नहीं कर सकता लेकिन उन्हें बीजेपी की भितरघात का ज़बरदस्त फायदा मिल रहा है। ऐसे में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई सीटों के नतीजे चौंकाने वाले साबित हो सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पिछले चार दशक से लगभग सभी आम चुनाव कवर कर चुके हैं।)
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