लोकसभा चुनाव ख़त्म होने के बाद अब निगाहें उत्तर प्रदेश में होने वाले 12 विधानसभा सीटों के उपचुनाव पर टिक गयी हैं। लोकसभा चुनावों में बीजेपी की प्रचंड जीत को जहाँ मोदी मैजिक का करिश्मा माना जा रहा है तो वहीं उपचुनाव मुख्यमंत्री योगी के लिए लिटमस टेस्ट सरीखा होगा। हालाँकि बँटा हुआ विपक्ष, कोई सत्ता विरोधी लहर का न होना, पस्त हौसले के साथ लड़ने वाले प्रतिद्वंद्वियों के चलते मुक़ाबला बीजेपी के लिए आसान माना जा रहा है। लेकिन पूर्व में हुए उपचुनावों के नतीजों के चलते पार्टी कोई जोख़िम नहीं लेना चाहती है।
किसी भी दूसरे राजनैतिक दल से पहले बीजेपी ने इन उपचुनावों की तैयारी शुरू कर दी है। हर सीट के लिए प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति हो या टिकट देने का पैमाना तय करना हो, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ख़ुद इन सारे मामलों में व्यक्तिगत रुचि ले रहे हैं। बीजेपी की निगाह उपचुनावों में 12 में से कम 11 सीटों पर जीत हासिल करने पर लगी है।
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11 सीटें जहाँ विधायकों के लोकसभा के लिए चुने जाने के चलते खाली हुई हैं वहीं 12वीं सीट (हमीरपुर) विधायक अशोक चंदेल के हत्या के मामले में सजा पाने के चलते रिक्त हो गयी है। बीजेपी के आठ विधायक सांसद बने हैं तो सहयोगी अपना दल के प्रतापगढ़ विधायक संगमलाल गुप्ता भी सांसद बन गए हैं। रामपुर से एसपी सांसद आज़म ख़ान ने अपनी विधायकी छोड़ी है तो जलालपुर के बीएसपी विधायक अंबेडकरनगर से सांसद बन गए हैं। प्रदेश सरकार में मंत्री रही व कैंट से विधायक रीता बहुगुणा जोशी अब इलाहाबाद से, प्रदेश में मंत्री सत्यदेव पचौरी कानपुर से तो फिरोज़ाबाद से विधायक रहे मंत्री एसपी सिंह बघेल आगरा से सांसद बन गए हैं। बेल्हा, बहराइच के विधायक अक्षयवर गोंड, मानिकपुर से विधायक आरके पटेल बांदा से और गंगोह विधायक प्रदीप चौधरी कैराना से सासंद बन चुके हैं।
बाराबंकी जैतपुर के विधायक उपेंद्र सिंह बाराबंकी के सांसद निर्वाचित हुए हैं तो वहीं अलीगढ़ के इगलास क्षेत्र के बीजेपी विधायक राजवीर सिंह दिलेर हाथरस सीट पर सांसद का चुनाव जीते हैं।
पुराने कार्यकर्ताओं पर दाँव लगाएगी पार्टी
बीजेपी ने साफ़ कर दिया है कि जिन विधायकों ने अपनी सीट खाली की है उन पर उनके परिजनों को टिकट नहीं दिया जाएगा। परिजनों का मतलब भी साफ़ करते हुए पार्टी ने कहा है कि माँ, बीबी, बच्चे सहित क़रीबी रिश्तेदारों को भी टिकट नहीं दिया जाएगा। इससे साफ़ है कि इनमें से कई सीटों पर जीते हुए सांसद अपने घर के लोगों के लिए पैरवी में जुटे थे।
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लोकसभा चुनाव जीतने वाले प्रदेश के दो मंत्री अपने बच्चों के लिए टिकट माँग रहे हैं तो एक अन्य अपनी पत्नी की पैरवी में लगे हैं। बुंदेलखंड में तो बीजेपी के एक नेता पार्टी से टिकट न मिलने पर बेटे को बीएसपी से भी लड़ाने की जुगत बैठा रहे हैं। कानपुर में खाली हुई गोविंदनगर सीट के लिए प्रदेश सरकार में एक वर्तमान तो एक पूर्व मंत्री लगे हुए हैं। राजधानी लखनऊ की सीट पर भी यही हाल है। यहाँ चर्चा में राजनाथ सिंह के क़रीबी हैं प्रदेश सरकार में एक मंत्री अपनी पत्नी या साले के लिए जोर लगा रहे हैं। सीट खाली करने वाले सांसद ने अपने बेटे के लिए दावा ठोंका है। इन सबके बीच प्रदेश बीजेपी नेतृत्व ने साफ़ कहा है कि उपचुनावों में टिकट जिताऊ व पुराने कार्यकर्ता को ही दिया जाएगा।
पार्टी ने मंत्रियों को इन सीटों का प्रभारी बनाते समय कहा है कि आने वाले कुछ महीनों में उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा समय उपचुनाव वाले क्षेत्रों में गुजारना होगा और सीट जिता कर लाने पर ही उनकी कुर्सी बचेगी।
मायावती की होगी अग्निपरीक्षा
एसपी के साथ गठबंधन तोड़ने के साथ ही पहली बार लंबे अरसे के बाद बीएसपी उपचुनाव में हिस्सा लेने जा रही है। मायावती इन चुनावों में यह साबित करना चाहती हैं कि दरअसल प्रदेश में बीजेपी की टक्कर एसपी से नहीं बल्कि उन्हीं से है। मुसलिम मतों पर उनके दावे की भी परीक्षा इन्हीं उपचुनावों में होगी तो सोशल इंजीनियरिंग को भी परखा जाएगा।मायावती ने उपचुनावों के लिए बैठकों का सिलसिला शुरू कर दिया है। आगामी मंगलवार को बीएसपी सुप्रीमो बरेली, चित्रकूट, कानपुर और झांसी मंडलों की बैठक लेंगी तो 6 जुलाई को लखनऊ मंडल के कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोलेंगी।
‘करो या मरो’ की तर्ज पर लड़ने का मंसूबा बना माया इन उपचुनावों में अन्य पिछड़ी जातियों को ख़ुद के साथ लाने का पूरा प्रयास करेंगी। लंबे समय के बाद मायावती ने बीएसपी की भाईचारा कमेटियों को सक्रिय किया है। मुसलिमों को पार्टी के साथ बनाए रखने की ज़िम्मेदारी लोकसभा में पार्टी के नेता दानिश अली को सौंपी गयी है।
कांग्रेस भी सक्रिय, अखिलेश सन्नाटे में
लोकसभा चुनावों में अकेले लड़कर मुँह की खाने के बाद भी कांग्रेस ने फिर से उपचुनावों के लिए कमर कस ली है। पार्टी ने उपचुनावों वाले क्षेत्रों का ब्यौरा जुटाने के साथ ही वहाँ प्रियंका गाँधी की टीम के सक्रिय सदस्यों को भेज आकलन करना शुरू कर दिया है। कांग्रेस ने उपचुनाव वाले क्षेत्रों में प्रभारी बना दिए हैं और ग्राउंड रिपोर्ट लेना शुरू कर दिया है।
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कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उपचुनावों में कुछ भी दाँव पर न होने के चलते जहाँ बड़ी तादाद में नौजवानों व निष्ठावान कार्यकर्ताओं को उतारने की योजना है, वहीं कुछ चुनिंदा सीटों पर ख़ास फ़ोकस करने का इरादा है।
कांग्रेस लखनऊ कैंट, सहारनपुर में गंगोह, चित्रकूट में मानिकपुर, बाराबंकी में जैतपुर, प्रतापगढ़ सदर, रामपुर सदर जैसी सीटों पर ख़ास जोर लगाएगी। इनमें से कैंट व जैतपुर सीटों पर उसका प्रदर्शन बीते कुछ चुनावों में बढ़िया रहा है।
इस सबसे इतर एसपी में उपचुनावों को लेकर गतिविधियाँ नदारद हैं। पार्टी ने न तो अब तक इन उपचुनावों के लिए कोई तैयारी बैठक की है और न ही किसी नेता को प्रभारी बनाया गया है। एसपी नेताओं का कहना है कि हार के बाद मुखिया अखिलेश यादव लंदन रवाना हो गए हैं। गठबंधन टूटने के बाद उपचुनावों को लेकर क्या रणनीति रखनी है अभी साफ़ नहीं हो पाया है। इतना ज़रूर है कि लोकसभा चुनावों के दौरान महागठबंधन की हिस्सेदार राष्ट्रीय लोकदल के साथ मिलकर उपचुनाव लड़ा जाएगा। रालोद को लड़ने के लिए कम से कम एक सीट दी जाएगी।
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