जितना अजीबोगरीब तर्क 'लव जिहाद' का है, उतनी ही अजीबोगरीब कार्रवाई उत्तर प्रदेश पुलिस की लगती है। युवक और युवती के अंतरधार्मिक शादी करने के मामले में पूरे परिवार और रिश्तेदारों तक की गिरफ़्तारी के मामले आ रहे हैं। क्या इसकी कल्पना की जा सकती है कि लड़की-लड़के ने शादी की और उस परिवार के 14 लोगों को जेल भेज दिया जाए? और कारण सिर्फ़ इतना हो कि युवक और युवती को पुलिस ढूँढ नहीं पा रही हो!
दरअसल, इस मामले में इसलिए ऐसी कार्रवाई हो रही है कि यह 'लव जिहाद' के दायरे में आता है। 'लव जिहाद' यानी योगी सरकार का ग़ैरक़ानूनी धर्मांतरण क़ानून।
यह एटा ज़िले में अंतरधार्मिक शादी से जुड़ा मामला है। क़रीब एक महीने पहले 21 वर्षीय युवती घर से चली गई थी। कथित तौर पर उसने धर्मांतरण कर लिया और एटा ज़िले के ही जलेसर में जावेद अंसारी से शादी कर ली। लड़की के पिता की रिपोर्ट के आधार पर 17 दिसंबर यानी पिछले गुरुवार को एफ़आईआर दर्ज की गई। उन्होंने यह मुक़दमा तब दर्ज कराया जब दिल्ली से कथित तौर पर जावेद के वकील से युवती के धर्मांतरण और शादी की जानकारी देने वाले कागजात मिले। रिपोर्ट के अनुसार, जलेसर पुलिस ने ग़ैरक़ानूनी धर्मांतरण क़ानून के तहत पूरे परिवार पर मुक़दमा दर्ज किया है।
इस मामले में अब तक कम से कम 14 लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है। जावेद सहित पाँच लोगों की गिरफ़्तारी की जानी बाक़ी है। प्रत्येक पर 25 हज़ार रुपये का इनाम घोषित किया गया है। इनमें से अधिकतर जावेद के दूर के रिश्तेदार हैं। जावेद पर आरोप है कि उन्होंने लड़की को अगवा किया है और ग़ैरक़ानूनी रूप से धर्मांतरण किया है।
'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' की रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय पुलिस में सूत्रों ने कहा कि ये गिरफ़्तारियाँ फरार जोड़े पर दबाव बनाने के लिए की गई हैं ताकि दोनों ख़ुद को पुलिस के सामने पेश कर सकें। पुलिस उप अधीक्षक राम निवास सिंह ने कहा है, 'अब तक 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस की तीन टीमें महिला को खोजने और फरार आरोपियों को गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही हैं।'
इतना ही नहीं, जावेद की मदद करने वाले दिल्ली के वकील मुहम्मद हाशिम अंसारी ने आरोप लगाया है कि उन्हें इस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है।
'द वायर' की रिपोर्ट के अनुसार हाशिम अंसारी ने आरोप लगाया है कि उनके परिवार के क़रीब 10 सदस्यों को गिरफ़्तार किया गया है।
उत्तर प्रदेश में अंतरधार्मिक शादियों पर उत्तर प्रदेश की पुलिस की कार्रवाई तब हो रही है जब अदालतें इसके ख़िलाफ़ फ़ैसले देती रही हैं और पुलिस के ख़िलाफ़ सख़्त टिप्पणी करती रही हैं। कलकत्ता हाई कोर्ट ने ही कहा है कि यदि अलग-अलग धर्मों के लोगों के विवाह में कोई महिला अपना धर्म बदल कर दूसरा धर्म अपना लेती है और उस धर्म को मानने वाले से विवाह कर लेती है तो किसी अदालत को इस मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
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जब अदालत कह रही है कि वह हस्तक्षेप नहीं कर सकती है तो फिर पुलिस या सरकार कैसे हस्तक्षेप कर सकती है?
इसके पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में कहा था कि धर्म की परवाह किए बग़ैर मनपसंद व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार किसी भी नागरिक के जीवन जीने और निजी स्वतंत्रता के अधिकार का ज़रूरी हिस्सा है। संविधान जीवन और निजी स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। इसी तरह एक दूसरे मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी कहा था कि किसी व्यक्ति का मनपसंद व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार उसका मौलिक अधिकार है, जिसकी गारंटी संविधान देता है। केरल हाई कोर्ट ने तो एक निर्णय में कहा था कि अलग-अलग धर्मों के लोगों के विवाह को 'लव-जिहाद' नहीं मानना चाहिए, बल्कि इस तरह के विवाहों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
इसके बावजूद बीजेपी के नेता 'लव जिहाद' का ज़िक्र करते रहे हैं। योगी आदित्यनाथ ने एक नवंबर को 'लव जिहाद' का ज़िक्र करते हुए कहा था कि जो कोई भी हमारी बहनों की इज्जत के साथ खिलवाड़ करेगा उसकी 'राम नाम सत्य है' की यात्रा अब निकलने वाली है। हालाँकि उन्होंने अपने बयान में किसी धर्म का नाम नहीं लिया था, लेकिन इस बयान से उनका इशारा साफ़ था और यह भी कि इसके परिणाम क्या होंगे।
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जिस 'लव जिहाद' शब्द का इस्तेमाल किया गया है, वह दरअसल बहुत ही विवादास्पद शब्द है। इसको लेकर सरकारी तौर पर ऐसी कोई रिपोर्ट या आँकड़ा नहीं है जिससे इसके बारे में कोई पुष्ट बात कही जा सके।
सरकार ने फ़रवरी में संसद को बताया था कि इस शब्द को मौजूदा क़ानूनों के तहत परिभाषित नहीं किया गया और किसी भी केंद्रीय एजेंसी द्वारा कोई मामला दर्ज नहीं किया गया था। लेकिन अधिकतर दक्षिणपंथी और ट्रोल इन शब्दों के माध्यम से यह बताने की कोशिश करते रहे हैं कि मुसलिम एक साज़िश के तहत हिंदू लड़कियों को फँसा लेते हैं, उनसे शादी करते हैं और फिर धर्म परिवर्तन करा लेते हैं।
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