यूपी में 18 ओबीसी जातियों को एससी (अनुसूचित जाति) का दर्जा देने का मुद्दा फिर से गरमा सकता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 31 अगस्त बुधवार को अपने फैसले में 18 ओबीसी जातियों को एससी का दर्जा देने के तीन सरकारी आदेशों को रद्द कर दिया। जो तीन सरकारी आदेश रद्द किए गए, उनमें से दो आदेश अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के कार्यकाल में और तीसरा आदेश योगी आदित्यनाथ की बीजेपी के कार्यकाल में जारी किए गए थे। 2017 और 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2019 के आम चुनाव में कुछ निषाद समेत कई ओबीसी जातियों को एससी का दर्जा देने के मुद्दे पर जबरदस्त राजनीति हुई थी।
2024 के आम चुनाव से पहले यह मुद्दा फिर गरमा सकता है। लेकिन इस राजनीतिक कहानी का मर्म ये है कि इन 18 ओबीसी जातियों के मौसम में हर बार ठगा जाता है, वादे किए जाते हैं और फिर मामला अदालत में जाता है तो सब फुस्स हो जाता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को जो फैसला सुनाया, उस पर यूपी की बीजेपी सरकार प्रतिक्रिया तक नहीं दे सकी, जिसमें ओबीसी कोटे के तहत कई मंत्री और डिप्टी सीएम बने हुए हैं।
क्या हुआ हाईकोर्ट में
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 31 अगस्त को दिए गए अपने फैसले में कहा कि सिर्फ केंद्र सरकार के अधिकार में है कि वो अनुसूचित जाति की सूची में किस जाति को शामिल करे या किसे नहीं करे। इसलिए 18 ओबीसी जातियों को एससी सूची में लाने के तीनों सरकारी आदेश रद्द किए जाते हैं।
इन ओबीसी जातियों को मिला था दर्ज
यूपी में सपा और बीजेपी ने समय-समय पर जिन जातियों को एससी सूची में शामिल किया था, उसमें मंझावर, कहार, कश्यप,केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार,प्रजापति,धीवर,बिन्द, भर, राजभर, धीमन, बाथम, तुरा, गोदिया, मांझी और मछुआ हैं। सपा सरकार के समय जो दो आदेश हुए थे, उसमें निषाद शामिल नहीं थे। संजय निषाद के दबाव बनाने पर बीजेपी ने निषाद को भी इसमें डाला। यहां बताना जरूरी है कि कहार, कुम्हार, प्रजापति एक ही जाति है लेकिन अलग-अलग लोग अलग नाम में अपने साथ इन जातियों को लिखते हैं, इसीलिए .यूपी सरकार ने ये नाम डाले थे। इसी तरह भर, राजभर, बिन्द, धीवर भी एक ही जाति है, लेकिन इनके तमाम लोग अपने नाम में अलग-अलग तरह से लिखते हैं। मल्लाह, केवट, निषाद, मंझावर एक ही बिरादरी है लेकिन अलग-अलग लोग अलग-अलग प्रयोग करते हैं। लेकिन हर नाम वाला खुश रहे तो राजनीतिक दलों ने उन्हें खुश करने में पूरी ईमानदारी बरती।
कब-कब हुई पहलः लगभग 18 वर्षों से यह मुद्दा सरकार, राजनीतिक दलों और कोर्ट के बीच फुटबॉल बना हुआ है। समाजवादी पार्टी की सरकार ने 18 ओबीसी जातियों को एससी का दर्जा देने के लिए 21 और 22 दिसंबर 2016 को दो आदेश जारी किए। 2017 में यूपी विधानसभा के चुनाव होने वाले थे और सिर्फ चंद महीने पहले ये आदेश अखिलेश यादव की सरकार ने जारी किए थे। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा बुरी तरह हार गई। बीजेपी सत्ता में आ गई। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन गए। बीजेपी सरकार ने सपा सरकार के उन दोनों आदेशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया। 2019 में आम चुनाव तय थे। संजय निषाद की निषाद समाज पार्टी, अपना दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने इसे मुद्दा बना दिया। 24 जून 2019 को योगी सरकार ने केंद्र को कुछ ओबीसी जातियों को एससी सूची में शामिल करने के लिए पत्र लिखा और एक आदेश भी जारी किया।
जाति की राजनीति
यूपी के सभी राजनीतिक दलों की राजनीति अब जाति आधारित हो गई है। 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव इसका गवाह रहा। हालांकि उससे पहले बाकी चुनावों में भी जाति हावी रही लेकिन पिछले चुनाव की यादें ज्यादातर लोगों के दिलोदिमाग में रहती हैं। इसलिए 2022 के यूपी चुनाव के जरिए राज्य में जातियों के चुनाव खेल को समझा जा सकता है।
निषाद समाज पार्टी का बीजेपी से 2017 में चुनावी गठबंधन था। पिछला पांच साल इस पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने बीजेपी के भरोसे पर गुजारा। अक्टूबर 2021 में जब बीजेपी ने दोबारा से यूपी चुनाव का दंगल शुरू किया तो उसे एहसास हो गया कि बीजेपी के हालात इतने अच्छे नहीं हैं। उसी दौरान हालात को भांपते हुए संजय निषाद ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की रैली लखनऊ में कराई। वहां उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि अगर निषाद, मछुआ, मझावर, केवट, मल्लाह को एससी का दर्जा नहीं मिला तो वो बीजेपी से गठबंधन तोड़ लेंगे। उधर, सपा का गठबंधन बीजेपी छोड़कर आए ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा से हो गया था। बीजेपी इससे दहली हुई थी। संजय निषाद ने इसके बाद दबाव बनाना शुरू किया। सीएम योगी ने फौरन केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इन जातियों को एससी सूची में शामिल करने का आग्रह किया।
निषाद समाज के नेता दिल्ली बुलाए गए। उनकी मुलाकात बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और यूपी प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान से कराई गई। बीजेपी ने यूपी में इसकी जमकर मार्केंटिंग की। फिर यूपी सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करके निषाद, मल्लाह, मछुआ, मझावर, केवट को एससी का दर्जा दे दिया।
हाईकोर्ट के फैसले के बाद इन जातिवादी पार्टियों के नेता अब किस मुंह से अपने समाज के सामने जाएंगे, यह तो पता नहीं लेकिन अब उनकी राजनीति फिर गरमाएगी। बहुत मुमकिन है कि निषाद पार्टी 2024 से पहले मांग रखे कि केंद्र में बीजेपी की सरकार है तो वो इन ओबीसी जातियों को एससी का दर्जा क्यों नहीं देती। यह मुद्दा फिर से राजनीतिक रूप लेगा। बस वक्त का इंतजार है।
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