आर्थिक रूप से दुर्बल यानी ईडब्लूएस कोटे से प्रदेश सरकार के सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी पाने वाले यूपी के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी के भाई ने खासी छीछालेदर के बाद बुधवार को इस्तीफा दे दिया। राजस्थान के वनस्थली विद्यापीठ में नौकरी कर रहे मंत्री के भाई ने ईडब्लूएस का कोटा लगाकर राजकीय सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी हासिल की थी। मंत्री के भाई अरुण द्विवेदी की पत्नी भी उच्च शिक्षा विभाग में शिक्षक हैं। इतना ही नहीं, सगे छोटे भाई मंत्री जी के साथ संयुक्त परिवार में रहते हैं और अच्छी खासी हैसियत व खेती बाड़ी भी रखते हैं।
संघ के क़रीबी और खुद की ईमानदार छवि पेश करते रहने वाले बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी के भाई को ईडब्लूएस कोटे से नौकरी मिलने के बाद बवाल मचा हुआ था। राजभवन से लेकर प्रदेश सरकार में लोगों ने इसको लेकर शिकायती पत्र भेजा था। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने इसको लेकर सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के कुलपति से जवाब तलब किया था। हालाँकि इस सबके बाद भी मंत्री भाई की नौकरी का बचाव करते रहे और इसे सही ठहराते रहे।
इस्तीफे में भी किया मंत्री भाई का बचाव
बीते तीन दिनों से अख़बारों, टेलीविजन चैनलों और सोशल मीडिया में हो रही थू-थू के बाद आख़िरकार बुधवार सुबह मंत्री सतीश के भाई अरुण द्विवेदी ने अपना इस्तीफ़ा कुलपति के पास भेज दिया। कुलपति ने इस्तीफ़े को तुरंत स्वीकार भी कर दिया। इस्तीफा भेजने के बाद एक बयान जारी कर अरुण द्विवेदी ने कहा कि उन्हें नौकरी योग्यता के आधार पर मिली थी और इसमें उनके मंत्री भाई की कोई भूमिका नहीं रही। उन्होंने कहा कि 2019 में सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में आवेदन के समय उन्हें ईडब्लूएस का प्रमाणपत्र जारी हुआ था और उसमें कुछ ग़लत नहीं था। हालाँकि उन्होंने यह नहीं बताया कि क्या उस समय उनके परिवार की हैसियत ग़रीब की थी अथवा नहीं। मंत्री सतीश द्विवेदी के बचाव में अरुण ने कहा कि वह ईमानदार व साफ़ छवि के हैं व नौकरी दिलवाने में उनका कोई हाथ नहीं है।
प्रमाणपत्र पर भी सवाल क्यों?
सतीश द्विवेदी के भाई अरुण द्विवेदी को ईडब्लूएस का प्रमाणपत्र 2019 में जारी हुआ था और यह एक साल के लिए वैध होता है। हालाँकि संयुक्त परिवार में रहने वाले अरुण की आर्थिक हैसियत कभी भी दुर्बल नहीं रही है। इतना ही नहीं, ईडब्लूएस कोटे से नौकरी हासिल करने वाले अरुण इससे पहले राजस्थान के वनस्थली विद्यापीठ में प्रोफेसर की नौकरी कर रहे थे और उनकी पत्नी भी उच्च शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं। अब अरुण का कहना है कि ईडब्लूएस का प्रमाण पत्र जारी होने के बाद उन्होंने शादी की, लिहाजा कुछ ग़लत नहीं किया। उधर सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के कुलपति सुरेंद्र दुबे ने पूरा मामला खुलने के बाद कहा कि उन्हें ईडब्लूएस प्रमाण पत्र की वैधता के बारे में जानकारी नहीं है।
प्रमाणपत्र जारी करने वाले लेखपाल ने कहा है कि यह केवल एक साल के लिए वैध था और बाद में उसके आधार पर कोई लाभ नहीं दिया जा सकता है।
जानिए परिवार की हैसियत
क्या नियम है ईडब्लूएस प्रमाणपत्र का
नियमों के मुताबिक़ सवर्ण वर्ग के उन लोगों को आर्थिक रूप से दुर्बल (ईडब्लूएस) का प्रमाणपत्र दिया जाता है जिनके पास कुल जमीन 5 एकड़ से कम हो और अपने पास गांव में 1000 वर्गफुट या शहर में 900 वर्गफुट का आवासीय भूखंड या मकान से ज़्यादा न हो। साथ ही परिवास की वार्षिक आय 8 लाख रुपये से कम होनी चाहिए। इसके ठीक उलट मंत्री के जिस भाई अरुण द्विवेदी की विश्वविद्यालय में नियुक्ति पर विवाद है वह वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान में अध्यापन कार्य कर रहे थे और लगभग 75, 000 मासिक वेतन पा रहे थे। उनकी पत्नी जो पहले वनस्थली विद्यापीठ में अध्यापन कार्य कर रही थीं वो वर्तमान में एम एस डिग्री कॉलेज, मोतिहारी, बिहार में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।
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