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गो हत्या मामला: NSA के तहत हिरासत को हाई कोर्ट ने किया रद्द

गो हत्या के एक मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (एनएसए) के तहत हिरासत में रखे गए तीन लोगों को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रिहा कर दिया है। अदालत इस मामले में इरफ़ान, रहमतुल्लाह और परवेज़ की ओर से दायर की गई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इन तीनों को पिछले साल जुलाई में उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में गो हत्या के मामले में गिरफ़्तार किया गया था। 

अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा, “अपने घर में गुपचुप तरीक़े से तड़के गो कशी करना ग़रीबी या रोज़गार न होना या फिर भूख के कारण किया गया काम हो सकता है और यह क़ानून और व्यवस्था का मुद्दा भी हो सकता है लेकिन इसे उस तरह नहीं लिया जा सकता जिस तरह किसी जगह पर सार्वजनिक रूप से पशुओं का वध किया जाता है।” 

5 अगस्त को दिए अपने इस फ़ैसले में अदालत ने कहा कि इस निष्कर्ष पर पहुंचने लायक सबूत नहीं हैं कि हिरासत में रखे गए लोग भविष्य में फिर से ऐसा करेंगे। ये तीनों ही लोग पिछले साल अगस्त से जेल में थे। 

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पुलिस ने सूचना मिलने पर इरफ़ान, रहमतुल्लाह और परवेज़ के घर पर तड़के छापा मारा था। तब परवेज़ और इरफ़ान को गोमांस के साथ पकड़ लिया गया था। अदालत ने इस बात का संज्ञान लिया कि इस ख़बर के इलाक़े में फैलते ही हिंदू समुदाय के लोग वहां इकट्ठे हो गए और सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगड़ गया था। 

तीनों पर यूपी गोवध रोकथाम अधिनियम, 1955 और आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013 की धारा 7 की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।

सुनवाई के दौरान अभियुक्तों के वकील ने कहा कि जब से उनके मुवक्किल हिरासत में हैं, पुलिस ने उनके ख़िलाफ़ गैंगस्टर्स एक्ट के तहत एक और एफ़आईआर दर्ज कर दी है। उन्होंने कहा कि अपने घर में चुपचाप गोमांस काटने की एक घटना की वजह से अभियुक्तों को हिरासत में नहीं लिया जाना चाहिए था। 

सरकारी वकील ने दलील दी कि गोमांस काटने से समाज के एक वर्ग की धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं।

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एनएसए का ग़लत इस्तेमाल 

उत्तर प्रदेश में एनएसए के इस्तेमाल पर सवाल उठते रहे हैं। ऐसे ही सवाल कोर्ट भी उठाता रहा है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने यूपी में जनवरी 2018 से लेकर दिसंबर 2020 तक के मामलों की पड़ताल कर बताया था कि एनएसए के तहत की गई कार्रवाई पर हैबियस कार्पस यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण के 120 मामलों में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 94 मामलों को सीधे खारिज कर दिया था और हिरासत में लिए गए आरोपियों को रिहा करने का आदेश दिया था। ये मामले 32 ज़िलों में सामने आए थे। 

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एनएसए के दुरुपयोग पर योगी सरकार को फटकार भी लगाई थी।
एनएसए एक ऐसा सख़्त क़ानून है, जो सरकार को बिना किसी आरोप या ट्रायल के लोगों को गिरफ़्तार करने का अधिकार देता है। उत्तर प्रदेश में इसका इस्तेमाल गो हत्या या गो कशी के मामलों में भी किया गया है। अधिकतर मामलों में तो अदालतों ने कहा था कि 'बिना सोचे-समझे' एनएसए लगाया गया। यही नहीं, अलग-अलग मामलों की एफ़आईआर में भाषा ऐसी थी जैसे इसे कॉपी-पेस्ट कर दिया गया हो। 
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क़मर वहीद नक़वी
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