उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद अब कांग्रेस संगठन के पुनर्गठन के काम में जुट गई है। इसके लिए नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश की जा रही है। हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सभी चुनावी राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों से इस्तीफा ले लिया था। इसके बाद कई राज्यों में नए प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किए जा चुके हैं जबकि उत्तर प्रदेश का मामला अभी फंसा हुआ है।
अभी तक प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी अजय कुमार लल्लू देख रहे थे जिन्होंने प्रियंका गांधी के राज्य की प्रभारी रहते हुए उनके साथ काफी संघर्ष किया था।
लेकिन बावजूद इसके पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा और वह सिर्फ 2 सीटें ही जीत सकी। पार्टी का वोट फ़ीसद भी बेहद कम रहा और वह 3 फीसद वोट भी हासिल नहीं कर सकी।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उदयपुर में 13 से 15 मई तक होने जा रहे चिंतन शिविर से पहले कांग्रेस उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष के नाम का एलान कर सकती है।
उत्तर प्रदेश में लंबे वक्त तक एकछत्र राज करती रही कांग्रेस बीते 32 साल से सूबे की सत्ता से बाहर है। जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह जैसे युवा नेता भी प्रदेश में पार्टी से किनारा कर चुके हैं। ऐसे में इतने बड़े प्रदेश में संगठन को चलाने के लिए पार्टी को जातीय, क्षेत्रीय समीकरणों के साथ ही धन-बल से मजबूत नेता भी चाहिए जो पार्टी के निराश व हताश कार्यकर्ताओं में जान फूंक सके व संगठन को सक्रिय रखे।
इन नेताओं के हैं नाम
प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चुनावी दौड़ में जिन नेताओं के नाम हैं उनमें पीएल पूनिया, निर्मल खत्री, वीरेंद्र चौधरी और आचार्य प्रमोद कृष्णम का नाम शामिल है। पीएल पूनिया दलित समाज से आने के साथ ही पूर्व सांसद व नौकरशाह भी रहे हैं और इस वजह से उन्हें प्रशासनिक मामलों का अच्छा अनुभव है। जबकि निर्मल खत्री पहले भी प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं।
वीरेंद्र चौधरी ओबीसी वर्ग से आते हैं और पूर्वी उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं और विधायक रहे हैं जबकि आचार्य प्रमोद कृष्णम प्रियंका गांधी के राजनीतिक सलाहकारों में शुमार हैं और आध्यात्मिक गुरु होने के साथ ही ब्राह्मण चेहरे भी हैं।
यह तय है कि प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी उसी नेता को मिलेगी जिसे प्रियंका गांधी का राजनीतिक आशीर्वाद हासिल होगा। देखना होगा कि प्रियंका किस नेता को इस पद के लिए चुनती हैं।
केंद्र में यूपीए की सरकार के दौरान राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जिंदा करने के लिए काफी मेहनत की थी और इसका कुछ असर लोकसभा चुनाव 2009 में दिखाई भी दिया था। लेकिन उसके बाद कांग्रेस फिर से पस्त होती चली गई और 2019 में वह सिर्फ रायबरेली सीट जीत सकी और राहुल गांधी खुद अमेठी की सीट से चुनाव हार गए।
बहाना होगा पसीना
केंद्र में सरकार बनाने के लिए उत्तर प्रदेश में मजबूत पकड़ होना जरूरी है लेकिन कांग्रेस उत्तर प्रदेश में लगभग शून्य होने के कगार पर है। ऐसे में जिस भी नेता को पार्टी की कमान मिलेगी उसे लोकसभा चुनाव 2024 तक दिन रात एक करना होगा और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ जमीन पर उतर कर लड़ाई लड़नी होगी तभी वेंटिलेटर पर पड़ी कांग्रेस को कुछ ऑक्सीजन मिल सकती है।
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