लोकसभा चुनावों में शर्मनाक प्रदर्शन के बाद उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री योगी विरोधियों के हमले तेज हो गए हैं। बीते कई सालों से नेतृत्व परिवर्तन की आस लगाए बैठे भाजपा के धड़े को ये एक सुनहरे मौके की तरह दिख रहा है और वो मत चूको चौहान की तर्ज पर चौतरफा वार की मुद्रा में हैं। हालांकि योगी खेमे की ओर से इसका भरपूर मुकाबला किया जा रहा है और लोकसभा चुनावों में हार की ठीकरा केंद्रीय नेतृत्व पर फोड़ा जा रहा है। हाल में संपन्न हुयी प्रदेश भाजपा की कार्यसमिति की बैठक से पहले और उसके दौरान दोनो धड़ों के एक-दूसरे पर हमले तेज होते दिखे। योगी विरोधी खेमे को मजबूती प्रदेश में सहयोगी दलों से भी मिल रही है जो योगी पर वार का कोई मौका छोड़ते नहीं दिख रहे हैं।
लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में भाजपा को करारी हार मिली और वह समाजवादी पार्टी से पिछड़ कर वह 33 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर आ गयी। हार के बाद भाजपा ने सीटवार समीक्षा की और हारे प्रत्याशियों सहित कार्यकर्त्ताओं से बात कर रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में कई अन्य कारणों के अलावा भितरघात, प्रशासन के भाजपा कार्यकर्त्ताओं की अनदेखी, बेलगाम नौकरशाही सहित कई कारण योगी के खिलाफ जाते हैं। हालांकि प्रत्याशियों के चयन, रणनीति में कमजोरी और कार्यकर्त्ताओं में उत्साह की कमी को भी कारण बताया गया है। रिपोर्ट के आ जाने के बाद भी उत्तर प्रदेश में किसी ने हार की जिम्मेदारी नही ली है और न ही आगे बढ़कर इस्तीफे की पेशकश की है। प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, प्रदेश प्रभारी धर्मपाल से लेकर सभी आला अधिकारी सहित मुख्यमंत्री अपनी जगह काम कर रहे हैं और हार की ठीकरा दूसरे के सर फोड़ने की कवायद में जुटे हैं।
आलाकमान से दूरी बढ़ती जा रही
सात साल से भी ज्यादा समय पहले जब योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए तो उसमें बड़ा हाथ अमित शाह का माना जा रहा था। हालांकि कुछ ही दिनों के बाद दोनो के रिश्ते सहज नहीं रह गए। कई मौके एसे भी रहे जब ये टकराहट अपने चरम पर पहुंची। चाहे वह आईएएस की नौकरी छोड़ प्रदेश की राजनीति में आए एके शर्मा को मंत्री बनाने का मामला रहा हो या दारा सिंह चौहान व ओम प्रकाश राजभर को एनडीए में लाने व प्रदेश में मंत्री बनाना रहा हो। प्रदेश में विधानसभा या विधान परिषद से लेकर राज्यसभा के लिए प्रत्याशियों के चयन में आलाकमान ने योगी को दरकिनार ही रखा। हालात यहां तक पहुंचे कि प्रदेश में आज तक कार्यवाहक डीजीपी काम कर रहे हैं और योगी को अपनी पसंद का मुख्य सचिव साढ़े सात साल बाद मिल सका है।
लोकसभा चुनावों में जिस तरह से अमित शाह ने कमान संभाली और हार के बाद जिस तरह से योगी खेमा उन्हें जिम्मेदार ठहराने की कवायद में जुटा है उससे भी रिश्तों में खटास बढ़ती जा रही है। संयोग ही नहीं है कि मुख्यमंत्री योगी से असहज रिश्ते रखने वाले दोनो उप मुख्यमंत्री हों या सहयोगी दलों के संजय निषाद, ओम प्रकाश राजभर हों अथवा हाल ही सपा से आकर व उपचुनाव हारकर भी मंत्री बनाए गए दारा सिंह चौहान हों, इन सभी से गर्मजोशी से अमित शाह से मिलते हुए तस्वीरें अक्सर प्रचारित होती हैं।
सरकार से लेकर संगठन तक मुख्यमंत्री पर हमलावर
कुछ परोक्ष और बहुत से लोग अपरोक्ष रूप से लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली को जिम्मेदार बता रहे हैं। पूर्व मंत्री मोती सिंह, बदलापुर (जौनपुर) के विधायक रमेश मिश्रा सहित कई नेताओं ने तो अपनी बात सार्वजनिक रूप से रखी पर तमाम हारे हुए प्रत्याशियों ने समीक्षा के दौरान भी प्रदेश सरकार की कार्यशैली को जिम्मेदार बताया है। भाजपा कार्यसमिति की बैठक में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के संगठन के सरकार से बड़ा व सर्वोपरि होने के बयान को इसी से जोड़ा जा रहा है जिस पर खूब तालिया बजी और उनसे इसे दोहराने को कहा गया।
यह अकारण नहीं है कि लोकसभा चुनावों के बाद सरकार के भीतर व पार्टी में ही शासन की नीतियों व कार्यशैली की मुखर आलोचना का दौर शुरु हो गया है। जाहिर है इन सबके निशाने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही हैं।
सहयोगी दल भी घेर रहे हैं योगी को
केंद्रीय मंत्री की शपथ लेने के बाद से कभी आरक्षण को लेकर तो कभी भर्तियों पर सहयोगी अपना दल की अनुप्रिया पटेल उत्तर प्रदेश की सरकार को घेर रही हैं। शिक्षक भर्ती, आरक्षण की अनदेखी हो या अपने क्षेत्र मिर्जापुर की समस्या, अनुप्रिया लगातार योगी सरकार के मुखालिफ बातें कर रही हैं। एक अन्य सहयोगी दल सुहेलदेव राजभर भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के ओमप्रकाश राजभर ने तो अपने बेटे के चुनाव हारते ही प्रदेश सरकार पर सवाल उठा दिए थे। भाजपा की कार्यसमिति के बैठक के अगले दिन उप मुख्यमंत्री केशवदेव मौर्य से मिलने पहुंचे निषाद पार्टी के संजय निषाद ने बुलडोजर नीति व उसकी टाइमिंग पर सवाल खड़े किए। उन्होंने मौर्य को पिछड़ों का सबसे बड़ा नेता बताया। कुल मिलाकर योगी विरोधियों की एक रणनीति सहयोगी दलों के जरिए भी उन्हें घेरने की है जिसमें वो कामयाब भी हो रहे हैं।
योगी खेमा बता रहा केंद्रीय नेतृत्व को जिम्मेदारः प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की मुहिम चला रहे दिल्ली से लेकर लखनऊ तक बैठे लोगों के सामने योगी खेमे के कई तर्क हैं। सबसे पहला तर्क तो ये ही कि 2014 व 2019 में जीत की सेहरा अपने सर बांधने वाले 2024 की हार की जिम्मेदारी से कैसे बच सकते हैं। दूसरा तर्क है कि प्रत्याशी चयन में न तो मुख्यमंत्री से कोई सलाह ली गयी न ही उनकी मर्जी चली फिर हार की जिम्मेदारी उन्हें कैसे ठहराया जा सकता है। जाहिर है कि योगी खेमा लोकसभी चुनावों के प्रदर्शन के लिए उन्हें नहीं बल्कि केंद्रीय नेतृत्व को जिम्मेदार टहराना चाहता है। इतना ही नहीं योगी खेमे की वकालत करने वाले कई टिप्पणीकार अमित शाह से नजदीकी रिश्ता रखने वाले दिल्ली के एक मीडिया महारथी को भी लोकसभा में टिकट बंटवारे से लेकर प्रदेश में नेतृत्व बदलने की मुहिम का सुत्रधार बता रहे हैं।
विकल्प को लेकर संशय
अब यह तथ्य सार्वजनिक हो चुका है कि प्रदेश के मुखिया और भाजपा आलाकमान (यों कहें कि अमित शाह) के बीच रिश्ते सामान्य नहीं हैं और तल्खी दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है। इन हालात में सबसे बड़ा सवाल है कि योगी नहीं तो कौन और यहीं पर आकर तमाम चीजें बदल जाती हैं। इससे पहले जून 2021 में जब योगी को बदलने की कवायद चली थी तो विकल्प में कमजोर नामों के चलते परवान नहीं चढ़ पायी थी। वर्तमान में भी योगी के विकल्प के तौर पर भाजपा के पास कोई कद्दावर नाम नहीं हैं।बौने हैं दावेदारी करने वाले
राजनैतिक टीकाकार योगी के उत्तराधिकारी होने की कतार में बसे आगे उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के कद पर सवाल खड़ा करते हैं। प्रो. रविकांत कहते हैं कि भूलना नहीं चाहिए कि मौर्य विधानसभा चुनाव भी हार गए थे और इस लोकसभा चुनाव में उनकी अपनी सीट भाजपा गंवा चुकी है। अन्य लोगों का कहना है कि उप मुख्यमंत्री तो अब पिछड़ों की छोड़ दे बल्कि अपनी मौर्य जाति के ही सर्वमान्य नेता नहीं रह गए हैं। दूसरे उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ही हालात बहुत बेहतर नहीं है। इनके अलावा प्रदेश भाजपा में किसी का कद योगी के आसपास नहीं दिखता है।
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