क्या उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार शिक्षा का भगवाकरण कर रही है। दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने पोस्ट ग्रैजुएट यानी एम. ए. के स्तर पर नाथ संप्रदाय पढ़ाने का फ़ैसला किया है।
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने पोस्ट ग्रैजुएट यानी एम. ए. के स्तर पर नाथ संप्रदाय पढ़ाने का फ़ैसला किया है। यह एम. ए. में नियमित कोर्स के रूप में तो होगा ही, इसका सर्टिफिकेट कोर्स भी कराया जाएगा। नाथ संप्रदाय दर्शन शास्त्र, पर्यटन, सांस्कृतिक व धार्मिक अध्ययन के छात्रों को पढ़ाया जाएगा।
सरकार पर सवाल
यह महत्वपूर्ण इसलिए है कि नाथ संप्रदाय हिन्दू धर्म के शैव मत के तहत एक संप्रदाय है। क्या यह महज संयोग है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसी संप्रदाय के हैं। वह मुख्यमंत्री के अलावा गोरखनाथ मंदिर के महंत भी हैं।
हिन्दू धर्म के एक संप्रदाय से जुड़े अध्ययन- अध्यापन का काम एक धर्मनिरपेक्ष सरकार जनता के पैसे से करेगी। इससे कई सवाल खड़े होते हैं।
गोरक्षनाथ इंस्टीच्यूट
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, विश्वविद्यालय ने अंतरराष्ट्रीय स्तर का एक शोध संस्थान भी स्थापित करने का फ़ैसला किया है। बता दें कि विश्वविद्यालय के तहत महायोगी गुरु गोरक्षनाथ शोधपीठ पहले से ही काम कर रहा है। इसे महायोगी गुरु गोरक्षनाथ इंस्टीच्यूट फ़ॉर कल्चर एंड डेवलपमेंट स्टडीज़ के तहत रखा जाएगा। गोरखपुर विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर राजेश सिंह ने सोमवार को इसकी विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस साल ही 5 कोर्स शुरू किए जाएँगे। जैसे-जैसे बुनियादी सुविधाएं विकसित होती जाएंगी, नए पाठ्यक्रम जुड़ते चले जाएंगे।
शोध केंद्र
तय योजना के अनुसार नाथ संप्रदाय से जुड़े संस्थान के अलावा बौद्ध अध्ययन केंद्र, वैदिक अध्ययन, संस्कृति व धार्मिक अध्ययन केंद्र और भाषा अध्ययन केंद्र भी बनाए जाएंगे।उन्होंने कहा कि फिलहाल इसके लिए संबंधित शिक्षक नहीं है। शुरू में दूसरे विश्वविद्यालयों से कुछ शिक्षक लाए जाएंगे, बाद में नियमित नियुक्ति होगी। इसी तरह भाषा के लिए विदेशों से कुछ शिक्षक बुलाए जाएंगे।
पैसे की कमी नहीं
वाइस चांसलर राजेश सिंह ने कहा कि पैसे की किल्लत नहीं होगी क्योंकि इसके लिए केंद्र के उच्च शिक्षा केंद्र से पैसे लिए जाएंगे। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि मुख्यमंत्री ने स्वयं इस परियोजना में दिलचस्पी ली है और उन्हें बजट को लेकर आश्वस्त किया है। उन्होंने नाथ संप्रदाय के कोर्स की कामयाबी पर भरोसा जताते हुए कहा कि दूसरे विषयों के छात्र अपने विषय के साथ 6 महीने का सर्टिफिकेट कोर्स कर सकते हैं। मसलन, दशर्न शास्त्र का छात्र अपने विषय के साथ नाथ संप्रदाय का सर्टिफिकेट कर सकता है।
कोर्स
वाइस चांसलर का मानना है कि दो साल के एम. ए. कोर्स की कामयाबी तय है क्योकि थाईलैड और दूसरे देशों से छात्र इसकी पढ़ाई करने आ सकते हैं। इसके अलावा कर्नाटक ने भी इसमें दिलचस्पी ली है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश की सरकार नाथ संप्रदाय पर एक इनसाइक्लोपीडिया भी तैयार कर रही है। इसका पहला खंड दिसंबर तक बन कर तैयार हो जाएगा। इस काम में लगभग 30-40 विद्वान लगे हुए हैं, जो गोरखपुर के मंदिर से तो हैं ही, दूसरे राज्यों से भी हैं। सरकार ने एक लाइब्रेरी भी बनाने का निर्णय लिया है, यह सामान्य लाइब्रेरी और डिजिटल लाइब्रेरी, दोनों ही होगा। सारा पाठ्यक्रम गोरक्षनाथ ग्लोबल इंस्टीच्यूट करेगा।
सरकार यह काम ऐसे समय कर रही है जब राज्य के शिक्षा की बदहाली की चर्चा सब जगह है। स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं, स्कूल व कॉलेज में कई जगह भवन व दूसरी ज़रूरी सुविधाएं नहीं हैं।
भगवाकरण
सवाल यह उठता है कि जब राज्य सरकार के पास पैसे की किल्लत है तो वह ऐसी परियोजना क्यो शुरू कर रही है? क्या यह इसलिए किया जा रहा है कि मुख्यमंत्री स्वयं नाथ संप्रदाय के हैं?यह कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी सोची समझी रणनीति के तहत अपने आदर्श लोगों पर थोपने के एजंडे पर काम कर रही है। एक उदाहरण नागपुर विश्वविद्यालय का है। राष्ट्रसंत तुकदोजी महाराज राष्ट्रीय नागपुर विश्वविद्यालय ने अब अपने छात्रों को आरएसएस का इतिहास पढाने का फ़ैसला किया है।
पहले के उदाहरण
विश्वविद्यालय ने बीते साल ही बी. ए. इतिहास के द्वितीय वर्ष के सिलेबस में आरएसएस को पढ़ाने का निर्णय किया था। इतिहास के पाठ्यक्रम के तीसरे हिस्से में ‘राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका’ को जोड़ा गया। इसके पहले हिस्से में कांग्रेस पार्टी की स्थापना, राजनीति का स्वरूप, जवाहर लाल नेहरू का सामने आना और उनका विकास है तो दूसरे हिस्से में असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन और भारत छोड़ो आन्दोलन शामिल किया गया है। इसी तरह तीसरे हिस्से में कैबिनेट मिशन और राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका को रखा गया है। विश्वविद्यालय के बोर्ड ऑफ़ स्टडीज़ के सदस्य सतीश चापले ने पीटीआई से इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि इतिहास में यह नया ट्रेंड है। उन्होंने कहा कि मार्क्सवाद, नया मार्क्सवाद और नया आधुनिकतावाद भी पढाया जाता है।
उन्होंने सिलेबस में आरएसएस को शामिल किए जाने के फ़ैसले को सही ठहराते हुए कहा कि राष्ट्रवादी विचारधारा और लाला लाजपत राय जैसे नेता भी इतिहास के हिस्सा रहे हैं। इसके पहले इस विश्वविद्यालय में 2003-04 के दौरान इतिहास एम. ए. के छात्रों को आरएसएस के बारे में पढ़ाया जाता था।
इसी तरह नई शिक्षा नीति पर भी सरकार पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि वह शिक्षा का भगवाकरण कर रही है। उसका कई स्तरों पर और कई जगहों पर विरोध भी हुआ।
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