अयोध्या न सिर्फ रूप बदल रही है बल्कि रूप को ही पहचान बना रही है। सदियों तक जिसकी पहचान प्रवाह और प्रार्थना रही है, अब भव्य भवन उसकी पहचान होंगे। यह अलग बात है कि पुनरुद्धार उस पहचान को धूमिल ही करेगा जिसे अयोध्या कहा जाता है। संतों के पद की रज उठाकर लोग घर ले जाते हैं। उस रज को वाहनों से रौंदा जाए यह तो कहीं से धर्म नहीं है।