अयोध्या न सिर्फ रूप बदल रही है बल्कि रूप को ही पहचान बना रही है। सदियों तक जिसकी पहचान प्रवाह और प्रार्थना रही है, अब भव्य भवन उसकी पहचान होंगे। यह अलग बात है कि पुनरुद्धार उस पहचान को धूमिल ही करेगा जिसे अयोध्या कहा जाता है। संतों के पद की रज उठाकर लोग घर ले जाते हैं। उस रज को वाहनों से रौंदा जाए यह तो कहीं से धर्म नहीं है।
बदल रही अयोध्या क्या धार्मिक रह पाएगी?
- उत्तर प्रदेश
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- 6 Jan, 2023

अयोध्या जैसी धार्मिक नगरी का विकास हो रहा है तो पूरा जोर सड़क पर, भवन पर, बिजली पानी व अन्य सुविधाओं पर है जबकि ये सब धर्म क्षेत्र के लिए बहुत आवश्यक नहीं होते। ना ही ये धर्म नगरी की पहचान होते हैं।
क्या जरुरी है कि संतों के चरणों की रज को वाहनों से रौंदा जाए। प्रार्थनाओं से पोषित वीथियों के मौन, शांति को हॉर्न के शोर से पीड़ित किया जाए। प्रभु के शयन में भी बाधा उत्पन्न होगी। आराधकों की प्रार्थनाएं भी विचलित होती हैं।
अयोध्या के घर-घर में मंदिर हैं या यूं कहिए कि हर मंदिर घर है। जब घर के सामने सड़क बना दी जाएगी और उससे उठने वाले शोर से घर/मंदिर के अंदर साधनारत व्यक्ति की प्रार्थना खंडित होगी। प्रार्थना खंडित होगी तो अंदर से तमस निकलेगा। यह ना तो ऊर्जाओं के लिए अच्छा है और ना ही व्यवस्थाओं के लिए। धर्म क्षेत्र आने का मतलब है कि सब चिंताओं को छोड़कर आना।