अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के फैसले के बाद जमीन की कीमतों में उछाल का लाभ उठाकर कुछ अफ़सरों और नेताओं के जमीन खरीद कर बेचने के मामले में कांग्रेस हमलावर हो गई है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस मामले में प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर बीजेपी और योगी सरकार को आड़े हाथों लिया है।
प्रियंका गांधी ने कहा कि 2017 में एक ज़मीन किसी शख्स ने 2 करोड़ रुपये में ख़रीदी और इस ज़मीन का 10 हज़ार वर्ग मीटर का हिस्सा राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को 8 करोड़ में बेच दिया। जबकि ज़मीन का दूसरा हिस्सा जो 12 हज़ार वर्ग मीटर का था, वो रवि मोहन तिवारी को 2 करोड़ में बेच दिया गया और यह हिस्सा पहली ज़मीन को बेचने के 19 मिनट बाद बेचा गया। इस ज़मीन को बेचने के मामले में संघ के नेता अनिल मिश्रा और ऋषिकेश के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय गवाह हैं।
प्रियंका ने कहा कि लेकिन पांच मिनट बाद इसी 2 करोड़ की ज़मीन को साढ़े 18 करोड़ रुपये में ट्रस्ट को बेच दिया गया। उन्होंने पूछा कि यह घोटाला नहीं है तो क्या है।
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि इस मामले की जांच जिलाधिकारी के स्तर पर हो रही है जबकि इस ट्रस्ट को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बनाया गया था इसलिए जांच भी सुप्रीम कोर्ट के स्तर पर होनी चाहिए क्योंकि जिलाधिकारी के स्तर का इंसान मेयर को नहीं डांट सकता।
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि राम मंदिर के आसपास जितनी भी ज़मीनें हैं, उनकी लूट हो रही है और बीजेपी के नेता, सरकारी अफ़सर इस लूट में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि लूट के ऐसे कई मामले हैं।
मामले में विवाद बढ़ने के बाद अपर मुख्य सचिव राजस्व मनोज कुमार सिंह ने जांच कमेटी के गठन का एलान करते हुए कहा है कि विशेष सचिव (राजस्व) इस मामले की जांच करेंगे और एक हफ्ते में रिपोर्ट सौंपेंगे।
बता दें कि 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने बुधवार को एक रिपोर्ट छापी थी जिसमें कहा गया था कि नवंबर 2019 में बाबरी मसजिद-राम जन्मभूमि मंदिर विवाद पर फ़ैसला आते ही अयोध्या में ज़मीन खरीदने की होड़ लग गई।
अख़बार के मुताबिक़, महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट (एमआरवीटी) ने राम मंदिर से सिर्फ पांच किलोमीटर की दूरी पर 21 बीघा यानी लगभग 52 हज़ार वर्ग मीटर ज़मीन नियमों का उल्लंघन कर दलितों से खरीदी।
उत्तर प्रदेश रेवेन्यू कोड रूल्स के अनुसार कोई भी ग़ैर-दलित ज़िला मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति के बगैर किसी दलित से ज़मीन नहीं खरीद सकता। लेकिन एमआरवीटी ने लगभग एक दर्जन दलितों से यह ज़मीन खरीदी। उसके बाद उसने यह जमीन बेच दी।
ट्रस्ट से जमीन खरीदने वालों में विधायक, रेवेन्यू विभाग के लोग, पूर्व आईएएस अफ़सर, ज़िला मजिस्ट्रेट के रिश्तेदार थे।
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