उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सियासी ज़मीन को मजबूत करने के लक्ष्य को लेकर मैदान में उतरीं पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने बड़ा बयान दिया है। प्रियंका ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी को हराना उनकी पार्टी का लक्ष्य है और वोटों के बंटवारे को रोकने के लिए गठबंधन के मद्देनज़र विकल्प खुले हुए हैं।
प्रियंका उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की प्रभारी भी हैं, ऐसे में उनके इस बयान से यह संकेत जाता है कि अगर संभावना बनती है तो कांग्रेस प्रदेश में कुछ दलों से गठबंधन कर सकती है। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में महज 7 महीने का वक़्त बचा है।
ओवैसी के कारण मुश्किल!
उत्तर प्रदेश में ताज़ा सूरत में कांग्रेस का गठबंधन अखिलेश यादव की एसपी या फिर ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व वाले भागीदारी संकल्प मोर्चा से हो सकता है। राजभर कई बार कह चुके हैं कि वे बीजेपी को हराने की सोच रखने वाले किसी भी दल से गठबंधन के लिए तैयार हैं। भागीदारी संकल्प मोर्चा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर उसे भी सियासी फ़ायदा हो सकता है और इस मोर्चे में शामिल दलों को भी लेकिन इस मोर्चे में ओवैसी के होने के कारण शायद कांग्रेस की बात न बने।
कांग्रेस बीजेपी से नाराज़ चल रही निषाद पार्टी से दोस्ती का हाथ आगे बढ़ा सकती है। इसके अलावा वह शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) से भी गठबंधन कर सकती है।
बदतर हुई हालत
आज़ादी के बाद लंबे वक़्त तक उत्तर प्रदेश में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस पिछले तीस साल से सत्ता से बाहर है। हालात इस क़दर ख़राब हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में एसपी के साथ गठबंधन करने के बाद भी कांग्रेस सिर्फ़ 7 सीटों पर जीत हासिल कर सकी थी। लोकसभा चुनाव 2019 में राहुल गांधी अमेठी जैसी गांधी परिवार की परंपरागत सीट से चुनाव हार गए थे।
इसके बाद लंबा वक़्त कोरोना लॉकडाउन की वजह से जाया हो गया लेकिन अब जो सात महीने का वक़्त है, उसमें प्रियंका गांधी को पूरा जोर लगाना होगा, तभी पार्टी कुछ हद तक सम्मानजनक प्रदर्शन कर पाएगी।
लेकिन यहां देखना होगा कि उत्तर प्रदेश में गठबंधन करना कभी भी कांग्रेस के लिए सुखद नहीं रहा है। कांग्रेस ने 1996 के विधानसभा चुनावों में बीएसपी के साथ गठबंधन किया था। इस चुनाव के बाद जो कांग्रेस पस्त हुई, आज तक खड़ी नहीं हो पाई।
2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने बहुत कोशिश की कि कांग्रेस को जिंदा किया जाए लेकिन सफलता नहीं मिली। हालांकि 2009 के लोकसभा चुनाव में 80 राज्यों वाले इस प्रदेश में पार्टी को 21 सीटों पर जीत मिली थी।
2017 का नतीजा हमारे सामने है और 2019 में जब एसपी-बीएसपी-आरएलडी का गठबंधन बना था तो कांग्रेस के भी इसमें शामिल होने की तैयारी थी लेकिन सम्मानजनक सीटें न मिलने की वजह से पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा।
उत्तर प्रदेश की सियासत में जो ताज़ा सूरत-ए-हाल है उसमें विपक्षी दलों का एकमात्र लक्ष्य बीजेपी को सत्ता में वापस आने से रोकना है। वह इस बात को दोहराते भी हैं लेकिन ऐसा करने की दिशा में आगे नहीं बढ़ते।
कार्यकर्ता का दर्द
हालांकि प्रियंका के लखनऊ आगमन पर कांग्रेस के तमाम फ्रंटल संगठनों के कार्यकर्ताओं में जबरदस्त जोश दिखाई दिया और बड़ी संख्या में कार्यकर्ता घरों से निकले। लेकिन राजनीति में जीत और सत्ता की ताक़त बहुत ज़रूरी है। वरना बिना सत्ता और कमज़ोर संगठन के कार्यकर्ता कब तक लाठी खाएगा, मुक़दमे झेलेगा और वह भी उत्तर प्रदेश में जहां का हाल जिला पंचायत और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में पूरे देश ने देखा है।
उत्तर प्रदेश की सत्ता से बीजेपी को हटाने का सपना अगर विपक्षी दल देखते हैं तो उन्हें मज़बूत गठबंधन बनाना ही होगा और लोगों को यह भरोसा दिलाना होगा कि यह गठबंधन बीजेपी को हरा सकता है, तभी जनता इसके उम्मीदवारों को वोट देगी, वरना सत्ता विरोधी वोट बंट जाएगा और इसका नतीजा आप जानते हैं।
अखिलेश भी बना रहे गठबंधन
दूसरी ओर, अखिलेश यादव भी छोटे दलों का गठबंधन बनाने में जुटे हैं। अखिलेश का आरएलडी के साथ गठबंधन है और वह भागीदारी संकल्प मोर्चा के साथ भी बात कर रहे हैं। अखिलेश महान दल के साथ भी बातचीत कर चुके हैं। अखिलेश गठबंधन की अहमियत के बारे में बता चुके हैं हालांकि वह बड़े दलों के साथ गठबंधन से इनकार कर चुके हैं लेकिन सियासत में अगले पल क्या हो जाए, इस बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता।
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