एक्टिविस्ट और छात्र नेता आफरीन फातिमा के पिता जावेद मोहम्मद उर्फ जावेद पंप पर यूपी पुलिस ने
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) लगा दिया है। बीजेपी नेता नूपुर शर्मा की पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के बाद इलाहाबाद में 10 जून को हिंसा हुई थी। प्रयागराज पुलिस ने उस मामले में कारोबारी जावेद मोहम्मद को मुख्य साजिशकर्ता बताते हुए गिरफ्तार किया था। उनकी गिरफ्तारी के दो दिन के अंदर ही इलाहाबाद प्रशासन ने करेली में उनके घर को अवैध निर्माण बताते हुए गिरा दिया था।
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (प्रयागराज) शैलेश कुमार पांडे ने जावेद मोहम्मद पर एनएसए लगाने की पुष्टि की है।
प्रयागराज पुलिस ने 54 वर्षीय व्यवसायी और कार्यकर्ता जावेद मोहम्मद पर आरोप लगाया था कि वह हिंसा के पीछे मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक थे, अन्य आरोपियों से पूछताछ के दौरान उनकी कथित भूमिका सामने आने के बाद एनएसए लगा। अधिकारियों ने दावा किया कि जावेद ने "बंद" का आह्वान किया था और लोगों से व्हाट्सएप संदेशों के माध्यम से घटनास्थल पर पहुंचने के लिए कहा था। जावेद को स्थानीय लोग 'पंप' के नाम से जानते हैं।
गिरफ्तारी के एक दिन बाद, प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) ने जावेद के आवास के कथित 'अवैध निर्माण' की शिकायत मिलने के बाद घर को अवैध तरीके से ध्वस्त कर दिया। पीडीए ने कहा कि पूछताछ के दौरान यह पाया गया कि घर के निर्माण में कई मानदंडों का उल्लंघन हुआ है। जावेद की जमानत अर्जी फिलहाल प्रयागराज की सेशन कोर्ट में लंबित है।
जावेद और उनकी बेटी आफरीन फातिमा शहर के नागरिक समाज के प्रमुख सदस्य और वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया की सदस्य हैं। आफरीन फातिमा एएमयू और बाद में जेएनयू में छात्र नेता रहीं। वो तमाम राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपनी आवाज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बुलंद करती रहती हैं। दरअसल, पिता जावेद मोहम्मद से ज्यादा आफरीन फातिमा सरकार की आंखों की किरकिरी बनी हुई हैं। हाल ही में टाइम मैगजीन ने इलाहाबाद की घटना पर उनका लेख प्रकाशित किया था। अल जजीरा चैनल ने उनका इंटरव्यू किया था।
इलाबाद में जावेद पंप की पत्नी के जिस मकान को गिराया गया, इलाहाबाद नगर निगम से उस घर का नक्शा पास था। सभी जरूरी टैक्स जमा थे। उस घर को गिराए जाने की निन्दा तमाम पूर्व जजों ने की थी। दुनिया भर में यह मुद्दा चर्चा का विषय बना था। आफरीन ने टाइम मैगजीन में लिखा था कि भारत में बुलडोजर अब अल्पसंख्यकों को डराने का हथियार बन चुका है और देश का बहुसंख्यक समाज इस पर चुप है।
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