दिसंबर महीने में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वालों पर पुलिस द्वारा लगाए गए हत्या के प्रयास और हिंसा का केस जब कमज़ोर पड़ने लगा तो पुलिस ने अब उन पर नये मुक़दमे लगाने शुरू कर दिए हैं। यह मामला उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रपुर का है। जब कई मामलों में पुलिस सबूत ही नहीं जुटा पाई और कोर्ट ने इन मामलों में जेल में बंद किए गए लोगों को ज़मानत पर रिहा करना शुरू किया तो पुलिस ने अब उनके ख़िलाफ़ किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 लगा दिया है। यानी पुलिस ने अब आरोप लगाए हैं कि प्रदर्शन करने वालों ने प्रदर्शन के लिए बच्चों का इस्तेमाल किया था। पुलिस की यह कार्रवाई 107 लोगों पर एफ़आईआर दर्ज करने के क़रीब एक माह बाद हुई है।
सीएए: हिंसा के केस कमज़ोर हुए तो प्रदर्शन में बच्चों को आगे करने का मुक़दमा
- उत्तर प्रदेश
- |
- 24 Jan, 2020
दिसंबर महीने में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वालों पर पुलिस द्वारा लगाए गए हत्या के प्रयास और हिंसा का केस जब कमज़ोर पड़ने लगा तो पुलिस ने अब उन पर नये मुक़दमे लगाने शुरू कर दिए हैं।

'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, पुलिस ने 33 लोगों के ख़िलाफ़ किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम की धारा 82 (3) लगाई है। इसके तहत दोषी पाये जाने पर सात साल की सज़ा हो सकती है। इन सभी आरोपियों के नाम 21 दिसंबर को मुज़फ़्फ़रनगर के सिविल लाइन्स थाने में दर्ज कराई गई एफ़आईआर में भी हैं। उस एफ़आईआर में 3000 अज्ञात लोगों पर भी केस दर्ज किया गया था।