अब से 25 साल पहले जब लखनऊ में समाजवादी पार्टी कार्यालय में मुलायम सिंह यादव और बसपा संस्थापक कांशीराम ने साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस की थी तो बाहर उत्साहित कार्यकर्ता नारा बुलंद कर रहे थे...मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम।
बदल चुके हैं दोनों दलों के मुखिया
आज 25 साल बाद इतिहास अपने आपको दोहरा रहा है। दो दशक से भी ज़्यादा समय तक रहे तल्ख संबंधों के बाद शनिवार को सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती लखनऊ के ताज होटल में एक साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस को संबोधित करेंगे। इन 25 सालों में उत्तर प्रदेश के इन दोनों प्रमुख दलों के मुखिया बदल गए हैं और आपसी खटास, मिठास में बदलती दिख रही है। सपा और बसपा दोनों ने अपनी ओर से अलग-अलग पत्रकारों को इस साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस का न्यौता भेजा है और वह भी साझा हस्ताक्षरों के साथ। इस निमंत्रण पर सपा के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी और बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा का नाम निवेदकों में है।
फूलपुर-गोरखपुर में माया का समर्थन
रिश्तों में जमी बर्फ के पिछलने की शुरुआत पिछले साल उत्तर प्रदेश में फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा उप-चुनाव से हो गई थी, जब मायावती ने सपा प्रत्याशियों को बिना शर्त समर्थन दिया था। हालाँकि उसके बाद कैराना के उपचुनाव में मायावती की चुप्पी और लंबे समय तक दोनों नेताओं में किसी मुलाक़ात के न होने के चलते सपा-बसपा गठबंधन को लेकर असमंजस बना रहा।
हाल ही में संपन्न हुए मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से बसपा का गठबंधन न होने के बाद जिस तरह से अखिलेश व मायावती ने एक सुर में बयान दिए तो लगा कि दोनों में नजदीकियाँ बरकरार हैं।
महागठबंधन को लेकर नए साल में ठोस शुरुआत तब हुई, जब बीते सप्ताह दिल्ली में अखिलेश और मायावती मिले और पहली बार सीटों के बँटवारे को लेकर बातचीत शुरू हुई। बाद में खनन मामले को लेकर सीबीआई के छापों के बाद मायावती ने ख़ुद अखिलेश यादव को फ़ोन कर हिम्मत दी और अपना समर्थन देने का वादा किया।
एकजुटता दिखाने की क़वायद
शुक्रवार को पहली बार साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर सपा-बसपा प्रमुख सीटों के बँटवारे, प्रत्याशियों के फ़ॉर्मूले और आगे की रणनीतियों का ख़ुलासा न कर केवल एकजुटता प्रदर्शित करेंगे। सीटों के बँटवारे से लेकर अन्य चीजों को, आने वाले दिनों में सार्वजनिक किया जाएगा। हालाँकि दोनों दलों में सीटों की संख्या व कई महत्वपूर्ण बातों पर सहमति पहले ही बन चुकी है। पहली साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कांग्रेस को लेकर भी नरम रुख ही रखा जाने की उम्मीद है और दोनों दल अपनी ओर से विपक्षी एकता को लेकर किसी दुराग्रह का प्रदर्शन करने से बचेंगे।
यूपी में महागठबंधन को लेकर लंबे समय से अटकलों का दौर जारी था। लेकिन नए साल में दिल्ली में अखिलेश और मायावती की मुलाक़ात के बाद यह लगभग तय हो गया कि लोकसभा चुनाव में दोनों दल साथ आएँगे।
जन्मदिन पर होगा शक्ति प्रदर्शन
मायावती के जन्मदिन के मौक़े पर 15 जनवरी को सपा-बसपा अपनी पूरी ताक़त के साथ दिखेंगे और मंच पर कई अन्य दलों के नेताओं को इकट्ठा कर शक्ति प्रदर्शन किया जाएगा। मायावती को जन्मदिन की बधाई देने के लिए जहाँ सपा प्रमुख अखिलेश यादव मौजूद रहेंगे, वहीं तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी, जनता दल सेक्युलर, राष्ट्रीय लोकदल व राजद जैसे कई दलों के नेता भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे। इस दिन महागठबंधन को लेकर कोई महत्वपूर्ण एलान भी किया जा सकता है।
रालोद की माँग पर निकालेंगे रास्ता
महागठबंधन के जूनियर पार्टनर राष्ट्रीय लोकदल की 3 की जगह 5 लोकसभा सीटों की माँग को लेकर भी अखिलेश यादव व मायावती अगले सप्ताह तक बीच का रास्ता निकाल लेंगे। दरअसल, अखिलेश यादव ने रालोद को 4 तो मायावती ने 3 सीटों को लेकर हामी भरी है जबकि जयंत चौधरी ने 5 सीटें माँगी हैं।
जयंत महागठबंधन में बागपत, कैराना, मथुरा, मुज़फ़्फरनगर और बुंलदशहर सीटें माँग रहे हैं। बसपा बुलंदशहर व मुज़फ़्फरनगर की सीट नहीं देना चाहती है जबकि सपा बुलंदशहर की सीट को लेकर अड़ी है। दोनों दलों के नेताओं का कहना है कि मुज़फ़्फरनगर को लेकर अंतत: समझौता हो जाएगा।
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