अगर कोई आपसे यह सवाल पूछेगा कि क्या कोई हत्यारा हत्या की वारदात को अंजाम देने के बाद सबूत छोड़ेगा तो आपका सीधा जवाब होगा - नहीं। लेकिन अगर कोई हत्यारा ऐसा करेगा तो उसका इसके पीछे कोई मक़सद ज़रूर रहा होगा। शायद वह लोगों को यह बताना चाहता होगा कि उसने क़त्ल क्यों किया? शायद यह भी कि वह लोगों को ख़ौफ़ से भर देना चाहता होगा कि अगर आइंदा किसी ने ऐसा किया, जिसकी वजह से उसने हत्या की है, तो उसका भी यही अंजाम होगा। हम बात कर रहे हैं हिंदू समाज पार्टी के अध्यक्ष कमलेश तिवारी के हत्यारों के बारे में।
हत्यारों ने कमलेश तिवारी को क्यों मारा, इस बारे में एक बात साफ़ हो चुकी है कि तिवारी के 2015 में पैगंबर साहब को लेकर दिये गये एक विवादित बयान के कारण ही उनकी हत्या की गई थी। इस बात को पहले यूपी पुलिस के डीजीपी ओपी सिंह ने कहा और उसके बाद गुजरात एटीएस ने भी। लेकिन हत्यारों ने आख़िर इतने सारे सबूत क्यों छोड़े, इसे लेकर बात की जानी ज़रूरी है।
अशफाक़ मेडिकल रिप्रजेंटेटिव था और उसने पूरी रणनीति बनाकर ही तिवारी की हत्या की। अशफाक़ ने अपने पुराने ऑफ़िस के एक साथी रोहित कुमार सोलंकी के आधार कार्ड में फर्जीवाड़ा करके हिंदू समाज पार्टी ज्वाइन की और तिवारी को अपने विश्वास में लेना शुरू किया। मोइनुद्दीन एक फूड सप्लाई कंपनी में काम करता था।
गुजरात एटीएस ने कहा है कि तिवारी की हत्या करने के बाद जब ये लोग भागे और इनके पास पैसे ख़त्म हो गये तो इन्होंने अपने परिवार को फ़ोन किया और पैसे माँगे। एटीएस की ओर से हत्यारों और इनके परिवार वालों पर निगाह रखी जा रही थी और इसी आधार पर इन्हें गुजरात-राजस्थान के बॉर्डर से दबोच लिया गया।
एटीएस के मुताबिक़, हत्यारों को दबोचने में इसलिए सफलता मिली क्योंकि उन्होंने लखनऊ, कानपुर और सूरत में काफ़ी संख्या में सबूत छोड़े थे। पुलिस ने जाँच के दौरान इस बात को महसूस किया कि हत्यारे ख़ुद ही अपनी पहचान ज़ाहिर करना चाहते थे। पुलिस को जो सबूत मिले वे इस तरह थे।
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अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, जिस दिन अशफाक़ और मोइनुद्दीन कमलेश तिवारी से मिलने गए, वे सूरत की स्थानीय दुकान से मिठाई ख़रीदकर ले गये और साथ ही इसका बिल भी ले गये। इस बिल के सहारे पुलिस को यह संकेत मिल गया कि हत्यारों का संबंध सूरत से है। लेकिन हत्यारों ने ऐसा किया क्यों, उन्हें डिब्बे के साथ बिल लाने की क्या ज़रूरत थी। इससे लगता है कि वे अपनी पहचान को सामने लाना चाहते थे।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, तिवारी के घर पहुंचने के बाद दोनों हत्यारे उनकी पत्नी किरन और तिवारी के कार्यालय के सहयोगी सौराष्ट्रजीत सिंह से भी मिले। किरन ने पुलिस को बताया था कि सामने आने पर वह हत्यारों को पहचान लेगी। तिवारी के हत्यारों को अगर किसी की तरह का डर होता तो वे अपनी पहचान को छिपाने की कोशिश करते लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, तिवारी से मिलने से पहले अशफाक़ और मोइनुद्दीन कानपुर से ख़रीदे गये एक सिम से लगातार उनके संपर्क में बने रहे। इस सिम को ख़रीदने के लिए अशफाक़ ने अपनी ओरिजनल आईडी दी। पुलिस ने जाँच के दौरान उस दुकान के सीसीटीवी कैमरों की फ़ुटेज से मिले हत्यारों के चित्र को दूसरे सीसीटीवी कैमरों की फ़ुटेज से मिलाया, तो अशफाक़ और मोइनुद्दीन पकड़े गये। यह बहुत बड़ा सवाल है कि क्या अशफाक़ को यह पता नहीं रहा होगा कि सिम के लिए ओरिजनल आईडी देने से वह पुलिस के हत्थे चढ़ सकता है।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, लखनऊ में रुकने के दौरान अशफाक़ और मोइनुद्दीन ने जिस होटल में कमरा बुक कराया, वह तिवारी के घर से सिर्फ़ तीन किमी. दूर था। होटल में कमरा बुक कराने के लिए उन्होंने अपनी ओरिजनल आईडी दी और इसमें उनका असली नाम और पता था। हत्यारों ने ऐसा क्यों किया? क्या उन्हें पता नहीं था कि यह उनके लिए मुसीबत बन जायेगा। हत्या करने के बाद अशफाक़ और मोइनुद्दीन फिर से होटल पहुंचे और वहां से निकलने के बाद उन्होंने खून से सने हुए भगवा कुर्ते, चाकू सब वहीं छोड़ दिये। आख़िर इतना बड़ा सबूत हत्यारों ने वहां क्यों छोड़ दिया।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, होटल की सीसीटीवी फ़ुटेज से पता चलता है कि संदिग्धों ने होटल में आते और जाते वक्त रिसेप्शन पर मौजूद स्टाफ़ से बात की थी। स्टाफ़ ने बताया कि अशफाक़ और मोइनुद्दीन, दोनों ने अपनी पहचान को छिपाने की बिलकुल भी कोशिश नहीं की और उन्हें बताया कि वे सूरत से हैं और बाबा अब्बास की मज़ार जाने का रास्ता भी पूछा। होटल के स्टाफ़ के एक सदस्य ने बताया कि जब उन्होंने उनसे कहा कि वह नहीं जानते कि यह मज़ार कहां पर है तो उन्होंने चौक की दिशा पूछी। स्टाफ़ के सदस्य ने कहा कि उन्हें हत्या के बाद में पता चला कि यह मज़ार ख़ुर्शीद बाग इलाक़े में है और यह कमलेश तिवारी के घर के नजदीक है।
अख़बार के मुताबिक़, तिवारी की हत्या से पहले उनके घर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों में साफ़ दिखाई दिया कि दो लोग उनके घर के बाहर घूम रहे हैं, ये दोनों अशफाक़ और मोइनुद्दीन थे और इन्होंने अपना चेहरा भी नहीं ढका हुआ था। मतलब यह हुआ कि उन्हें अपनी पहचान के सामने आने का कोई डर नहीं था।
ये सारे सबूत इस बात को साफ़ करते हैं कि कमलेश तिवारी के हत्यारे अपनी पहचान को क़तई छुपाना नहीं चाहते थे और इसीलिए वे सबूत छोड़ते गए। अशफाक़ और मोइनुद्दीन के तिवारी की हत्या में शामिल होने से सवाल यह खड़ा होता है कि क्या मुसलिम समाज का एक छोटा नौजवान तबक़ा धीरे-धीरे रैडिक्लाइज हो रहा है।
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