कोरोना काल में बहुत बुरा दौर देख चुके उत्तर प्रदेश की नई मुश्किल गांवों में फैल चुका संक्रमण और लगातार हो रही मौतें हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश के गांवों में स्वास्थ्य सुविधा के क्या हालात हैं, उस पर टिप्पणी की है। अदालत ने कहा है कि गांवों और छोटे शहरों में स्वास्थ्य सुविधाएं राम भरोसे हैं।
जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजित कुमार की बेंच कोरोना के मरीजों को बेहतर सुविधाएं देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी और इस दौरान उन्होंने पूरे प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था के बारे में बात करते हुए छोटे शहरों और गांवों का जिक्र करते हुए ये टिप्पणी की।
अदालत ने कहा, “बीते कुछ महीने में हमने देखा है कि उत्तर प्रदेश का स्वास्थ्य ढांचा बेहद कमजोर है। जब यह स्वास्थ्य ढांचा सामान्य हालात में लोगों को चिकित्सा सुविधा नहीं दे पाता तो इसका इस महामारी में फ़ेल होना निश्चित ही था।”
अदालत ने कहा कि यह हैरानी भरी बात है कि बिजनौर जिले में कोई भी लेवल 3 का अस्पताल नहीं है। अदालत ने कहा कि इस जिले के तीन सरकारी अस्पतालों में केवल 150 बेड हैं और कुल BIPAP मशीने हैं और हाई फ़्लो वाले नसल कैनुला केवल 2 हैं।
BIPAP मशीन एक प्रकार का मास्क होता है, जिसे नाक पर लगाते हैं। हाई फ़्लो वाले नेसल कैनुला को भी नाक पर लगाया जाता है। इन दोनों का ही इस्तेमाल मरीज के फेफड़ों में ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए किया जाता है।
सीएचसी के हालात ख़राब
अदालत ने कहा कि हम किसी इलाक़े में गांवों की आबादी 32 लाख मानें तो इतनी आबादी के लिए केवल 10 कम्युनिटी हेल्थ सेंटर (सीएचसी) हैं और इसका मतलब यह है कि एक सीएचसी पर तीन लाख लोगों का दबाव है और तीन लाख लोगों के लिए सिर्फ़ 30 बेड हैं। अदालत ने कहा कि इन सीएचसी में न तो BIPAP मशीनें हैं और हाई फ़्लो वाले नेसल कैनुला की सुविधा भी नहीं है।
अदालत ने कहा कि इसी तरह सीएचसी में ऑक्सीजन सिलेंडर और ऑक्सीजन कन्सन्ट्रेटर के मामले में भी स्थिति ख़राब है और इस बात का भी पता नहीं है कि इन सिलेंडर और कन्सन्ट्रेटर को ऑपरेट करने वाले जानकार लोग सीएचसी में हैं या नहीं।
ख़तरा भांपने में रहे फ़ेल
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बीते हफ़्ते ही कहा था कि चुनाव आयोग, उच्च अदालतें और सरकार इस बात को भांपने में फ़ेल साबित हुए कि कुछ राज्यों में चुनाव और उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव की अनुमति देने के क्या घातक नतीजे हो सकते हैं।
अदालत ने गांवों में फैल चुके कोरोना संक्रमण पर भी टिप्पणी की थी और कहा था कि पहली लहर में ग्रामीण इससे बच गए थे लेकिन इस बार यह गांवों में भी पैर पसार चुका है। अदालत ने कहा था कि उत्तर प्रदेश सरकार के लिए गांवों में टेस्ट करना, इंफ़ेक्शन का पता लगाना और इलाज करना बेहद कठिन साबित होगा।
गांवों में पहुंचा संक्रमण
उत्तर प्रदेश में कोरोना का संक्रमण अब गांवों में कहर बरपा रहा है। राज्य के कई गांवों से ख़बरें आ रही हैं कि लोग खांसी-बुखार, सिरदर्द-बदन दर्द से बुरी तरह परेशान हैं और गांवों में मौतें भी बहुत हो रही हैं। लेकिन अभी भी टेस्टिंग, आइसोलेशन, स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल है और अदालत ने इसीलिए गांवों, छोटे शहरों में सब कुछ राम भरोसे बताया है।
पंचायत चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश के गांवों की हालत बुरी तरह बिगड़ गई है। कई गांवों में बुखार के बाद मौतें हुई हैं और हालात बिगड़ने के बाद स्वास्थ्य महकमे को याद आती है कि अब इस गांव में सैनिटाइजेशन या टेस्टिंग होनी चाहिए।
नदियों में बहते मिले शव
उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे बसने वाले शहरों में बीते दिनों कई शव बहते हुए मिले। उन्नाव से लेकर ग़ाज़ीपुर और चंदौली से वाराणसी और भदोही में दर्जनों शव गंगा में मिले। इन शवों के फ़ोटो और वीडियो जब सोशल मीडिया पर वायरल हुए तो यूपी सरकार की ख़ासी किरकिरी हुई। इसके बाद प्रशासन चेता और इन शवों को गंगा से निकालकर दफ़नाया गया। इन शवों को लेकर कहा जा रहा है कि इन संख्या हज़ारों में है हालांकि इसकी आधिकारिक रूप से पुष्टि नहीं हुई है।
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