इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के दौरान नाबालिगों की कथित अवैध हिरासत पर योगी सरकार से जवाब तलब किया है। कोर्ट का यह फ़ैसला एक याचिका पर सुनवाई के दौरान आया है। उसमें आरोप लगाया गया है कि तब नाबालिगों को अवैध हिरासत में रखा गया और उनको प्रताड़ित किया गया था।
वह याचिका एक एनजीओ हक़ सेंटर फ़ॉर चाइल्ड राइट्स की एक रिपोर्ट के आधार पर दायर की गई थी जिसमें कहा गया है कि सीएए-एनआरसी प्रदर्शन के दौरान उत्तर प्रदेश- ख़ासकर, मुज़फ्फरनगर, बिजनौर, संभल और लखनऊ- में नाबालिगों को अवैध हिरासत में रखा गया था।
ये वे ज़िले हैं जहाँ पर नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के ख़िलाफ़ पिछले साल दिसंबर महीने में बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए थे और हिंसा की घटनाएँ हुई थीं। उस दौरान सैकड़ों लोगों को गिरफ़्तार किया गया था। तब रिपोर्टें आई थीं कि जिन लोगों को हिरासत में लिया गया था उनमें से कई नाबालिग थे और उनमें से अधिकतर स्कूली छात्र थे। हालाँकि पुलिस ने इससे इनकार किया था। लेकिन तब कई रिपोर्टों में यह दावा किया गया था कि जिनको हिरासत में लिया गया है उनके आधार कार्ड सहित दूसरे कागजातों के अनुसार वे नाबालिग थे।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार तब दो परिवारों ने आरोप लगाया था कि उनके बच्चों की उम्र 16 और 17 साल थी। रिपोर्ट के अनुसार उनमें से एक बच्चे के आधार कार्ड पर जन्म तिथि 2003 दर्ज थी। तब यानी पिछले साल दिसंबर में उसकी उम्र 16 हुई थी। उस रिपोर्ट में मुज़फ़्फरनगर और संभल में भी हिरासत में लिए गए गई लोगों के नाबालिग होने के दावे किए गए थे।
बाद में ऐसी रिपोर्टें आई थीं कि जिन लोगों को तब पुलिस ने पकड़ा था उनमें से अधिकतर सबूतों के अभाव में जेल से रिहा कर दिए गए थे। तब भी पुलिस पर सवाल उठे थे कि क्या पुलिस ने बिना सबूत के ही लोगों को प्रदर्शन के दौरान हिंसा और तोड़फोड़ के आरोपों में पकड़ लिया था।
जब नाबालिगों के हिरासत में रखे जाने की रिपोर्टें छपी थीं तो हक़ सेंटर फ़ॉर चाइल्ड राइट्स ने इसकी पड़ताल की और इस पर रिपोर्ट तैयार की। 'यूपी पुलिस द्वारा सीएए विरोधी प्रदर्शन को ख़त्म करने के लिए निर्दोषों के साथ क्रूरता - हिरासत, अत्याचार और नाबालिगों के अपराधीकरण' नाम की इस रिपोर्ट को पहली बार 31 जनवरी, 2020 को प्रकाशित किया गया था। इसी रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी।
मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की पीठ ने राज्य को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम के प्रावधानों के संबंध में राज्य से हर ज़िले से संबंधित सभी विवरण दाखिल करने के लिए कहा। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए अब अगली तारीख 14 दिसंबर तय की है।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की रिपोर्ट से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने नाबालिगों को अवैध रूप से पकड़ना और प्रताड़ित करना न्याय अधिनियम 2015 का गंभीर उल्लंघन है।
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